डोमकल (मुर्शिदाबाद)। मुर्शिदाबाद के डोमकल में होने वाले डकैत काली पूजा का दिलचस्प इतिहास रहा है। लोग आज भी डकैत काली से जुडी कहानियों पर विश्वास करते है और उन्हें जाग्रत देवी मानते हैं।
कहा जाता है कि डकैत काली पूजा की शुरूआत करीब तीन सौ साल पहले हुई थी। उस वक्त यह इलाका जंगलों से घिरा था और यहां डकैतों का साम्राज्य चलता था।
सर्वप्रथम डकैतों ने ही यहां मां काली की आराधना शुरू की थी, इसीलिए इसका नाम ‘डकैत काली‘ पड़ गया। पूजा करने के बाद डकैत आभूषणों के साथ ही मांं काली की प्रतिमा जल में विसर्जित कर देते थे।
कहा जाता है कि प्रतिमा विसर्जन के बाद कई बार पानी में उतर कर आभूषण ढूंढने की कोशिश की गई लेकिन कभी कुछ नहीं मिला।
यहां काली की पूजा टीन के शेड़ में हुआ करती थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार बारिश की रात में किसी ने टीन का शेड चुरा लिया। अगले दिन गांव में एक ही परिवार के सात लोगों की मौत हो गई।
बाद में उसी घर से चोरी गए टीन बरामद किए गए। इस घटना के बाद गांव वालों ने मिल कर मंदिर का निर्माण किया जिसमे डकैत काली की स्थापना की गई। इस मंदिर में कभी ताला नहीं लगाया जाता।
डकैत काली पूजा कमिटी के एक सदस्य ने बताया कि एक बार भगवती ने गांव में किसी के सपने में आकर यह आदेश दिया था कि उनके मंदिर में ताला नहीं लगाया जाए। इसके बाद से स्थायी तौर पर मंदिर का ताला खोल दिया गया।
डकैत काली की एक विशेषता यह भी है कि किसी मुस्लिम के घर का गुड चढाए बगैर उनकी आराधना संपन्न नहीं होती। इसके पीछे की कहानी यह है कि एक बार मंदिर के पास पेड़ के नीचे एक मुस्लिम गुड विक्रेता विश्राम कर रहा था।
कहा जाता है कि भगवती ने उससे गुड मांग कर खाया था। तभी से उनकी पूजा के दौरान मुसलमान के घर का गुड चढाने की परंपरा बन गई है।
यह सच है कि इस प्रकार की मान्यताओं का कोई तार्किक आधार नहीं है लेकिन यह भी सही है कि भक्ति तर्क से नहीं आस्था से होती है और डोमकल ही नहीं पूरे मुर्शिदाबाद जिले के लोगों की डकैत काली में भरपूर आस्था है।