रीवा। नारी चेतना मंच ने कहा है कि भारत में विवाह की न्यूनतम आयु सीमा पुरुष और स्त्री के लिए क्रमश: 21 व 18 वर्ष निर्धारित है । इसमें कोई भी पक्ष यदि कानूनन न्यूनतम आयु सीमा को पूरा नहीं करता है तो विवाह की स्थिति शून्य है । देश की सर्वोच्च अदालत में नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंधों को दुष्कर्म माना जाए या नहीं इस पर बहस चल रही है ।
नारी चेतना मंच की नेत्री बीनू दुबे, मीना वर्मा, मीरा पटेल, सुधा सिंह, कलावती रजक, ऊषा सोनी, नजमुन्निशा, प्रेमवती शर्मा, प्रेमलता सोंधिया, आशा श्रीवास्तव, राजमती पटेल,सभापति सोंधिया, इंदुनिशा खान आदि ने कहा है कि कानूनी रूप से देखा जाए तो विवाह की न्यूनतम आयु पूरा नहीं होने पर विवाह शून्य की स्थिति बनती है तब नाबालिग लड़की पत्नी कैसे हो सकती है। ऐसे में नाबालिग लड़की से विवाह के नाम पर बनाए गए संबंधों को वैध नहीं ठहराया जा सकता है । इन संबंधों को दुष्कर्म माने या ना माने पर इसे सद्कर्म तो नहीं कहा जा सकता है ।
भारत में बाल विवाह एक विकराल सामाजिक बुराई है जिसे रोकने के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सीमा तय की गई है वहीें बाल विवाह को लेकर दण्डात्मक प्रावधान भी हैं । इधर सामाजिक जागरण , बदलते परिवेश और बाल विवाह संबंधी दण्डात्मक प्रावधानो के चलते बाल विवाहों पर काफी अंकुश लगा है ।
एक तरफ जब बाल विवाहों को सामाजिक अपराध की श्रेणी में रखा जा रहा है तब नाबालिग स्थिति में पुरुष और स्त्री के बीच स्थापित शारीरिक संबंधों के लिए किसी तरह की छूट, कानूनी शिथिलता की बात सरासर गलत है । इससे बाल विवाहों को रोकने के प्रयास कमजोर होंगे ।
पीओसीएसओ में प्रावधान है कि नाबालिग के साथ यौनाचार बलात्कार का अपराध है और उसके दायरे से पुरुष और नाबालिग पत्नी के शारीरिक संबंधों को बाहर नहीं रखा जा सकता है ।
दरअसल विवाह शून्य की स्थिति में नाबालिग से बनाए गए शारीरिक संबंधों को किसी रूप से सही नहीं ठहराया जाना चाहिए । ऐसे संबंधों को सद्कर्म तो नहीं कहा जा सकता है । यदि ऐसे संबंधों को कानूनी मान्यता मिलती है तब विवाह की न्यूनतम सीमा का निर्धारण अर्थहीन होगा वहीं बाल विवाहों को बढ़ावा मिलेगा ।
स्री-पुरुष के बीच सहमति से बने संबंधों के लिए यदि कानून में न्यूनतम आयु सीमा में छूट देकर परिभाषा बदली जाती है तो बाल विवाहों को भी कैसे रोका जा सकेगा क्योंकि तब वह अपराध की श्रेणी में नहीं होगा ।