नई दिल्ली।दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की बदनसीबी जारी है । 1998 के बाद से भाजपा दिल्ली में सत्ता पाने के लिए छटपटाती रही लेकिन सफलता नहीं मिली। 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मा पर चुनाव लडा था लेकिन उसकी बदनसीबी ने साथ नहीं छोडा ।
मोदी भी दिल्ली में भाजपा के बदनसीबी को दूर नहीं कर पाये । मोदी ने दिल्ली में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि वह नसीब वाले है इसलिए दिल्ली में उनको चुने बाकि दल बदनसीब हैं उनको चुनने से कोई लाभ नहीं हैं ।
भाजपा को उम्मीद थी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिस प्रकार से जादू हरियाणा,झारखंड,महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में चला वही जादू दिल्ली में भी चल जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ पार्टी का सूपडा दिल्ली से साफ हो गया। दिल्ली में भाजपा के हार का आलम यह रहा है कि मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी भी भाजपा के गढ कृष्णा नगर से चुनाव हार गईं। पार्टी दिल्ली में सत्ता में आना तो दूर मुख्य विपक्षी दल भी नहीं।
पार्टी को उम्मीद थी कि मोदी के भरोसे दिल्ली में उनकी नैया पार लग जायेगी। दिल्ली के पूरे चुनाव की रणनीति मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के इर्द गिर्द घूमती रही। दिल्ली में भाजपा के हार के मुख्य कारण उनकी रणनीतिक भूल रही है।
भाजपा ने इस बार आम आदमी पार्टी ‘आप‘ को अपना विपक्षी तो माना पर उसको आंकने में गलती कर दी। प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय नेता और प्रदेश स्तर के नेता भी सीर्फ केजरीवाल को निशाने पर रखे।पिछले चुनाव में भी भाजपा ने आप को एनजीओ समझने की भूल की थी।
वहीं आप नेताओं ने सिर्फ जनता के बारें में बात की। बिजली पानी की बात की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भी निशाने पर भी केजरीवाल ही रहे। भाजपा की पूरी रणनीति अरविन्द केजरीवाल को घेरने को रही। भाजपा जनता की बात विधानसभा चुनाव में नहीं की।
यही कारण है भाजपा की सीट 2013 में जो कि 32 थी जो घटकर इस बार मात्र तीन रह गई वह भी उस हाल में जब प्रधानमंत्री सहित पूरी केन्द्र सरकार दिल्ली चुनाव में लगी हुई थी। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में भाजपा को लोकसभा के सातो सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा का उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में भी वह लोकसभा के परिणाम को दुहरा सकती है,लेकिन ऐसा नही हो सका और भाजपा में सत्ता से महरूम रह गई।