नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की उपराज्यपाल नजीब जंग की सिफारिश पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मुहर लग जाने के बाद दिल्ली में चुनाव का मार्ग प्रशस्त हो गया है। मंत्रिमंडल की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई बैठक में दिल्ली विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने की उपराज्यपाल की सिफारिश को मंजूर कर लिया गया और इसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास भेजने का फैसला किया गया।…
राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के बाद चुनाव आयोग यह फैसला करेगा कि विधानसभा चुनाव कब कराए जाएं। इसके साथ ही दिल्ली में सरकार गठन को लेकर पिछले आठ माह से चली आ रही असमंजस की स्थिति खत्म हो गई है। अरविंद केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टीकी सरकार के इस्तीफा देने के बाद 19 फरवरी को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। इस्तीफा देने के साथ ही आप सरकार ने विधानसभा भंग करने की भी मांग की थी लेकिन विधान सभा भंग नहीं किए जाने पर उसने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
इस मामले में पिछला सप्ताह बहुत गहमागहमी वाला रहा। न्यायालय ने सुनवाई करते हुए पहले केन्द्र सरकार तथा उपराज्यपाल को फटकार लगाई लेकिन गत गुरूवार को हुई सुनवाई में सभी राजनीतिक दलों से बातचीत कर सरकार बनाने की संभावनाओं को टटोलने के जंग के प्रयासों की सराहना की और अंतिम सुनवाई 11 नवंबर के लिए तय की। जंग ने इसके बाद सोमवार को बीजेपी कांग्रेस और आप के नेताओं को सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार विमर्श के लिए बुलाया और तीनों दलों ने सरकार गठन पर असमर्थता व्यक्त करते हुए विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की राय व्यक्त की। इसके बाद उपराज्यपाल ने केन्द्र को अपनी सिफारिश भेज दी।
मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाने के बाद दिल्ली विधानसभा भंग हो जाएगी और इसी के साथ दिल्ली में तीन विधानसभा सीटों के लिए 25 नवंबर को होने वाले उपचुनाव भी नहीं होंगे। विधानसभा चुनाव कब होंगे, इसका फैसला चुनाव आयोग को करना है। आप ने झारखंड और जम्मू कश्मीर विधानसभा के साथ चुनाव कराने की मांग की है, लेकिन मौजूदा स्थिति में अगले साल जनवरी के अंत तक चुनाव होने की उम्मीद है।
पिछले साल 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में खंडित जनादेश आया था। भाजपा को अपने सहयोगी अकाली दल के साथ कुल 32 सीटें मिलीं और पार्टी बहुमत के आंकड़े 36 से चार कदम दूर रह गई। सबसे बडे दल के रूप में सरकार बनाने का न्योता मिलने पर भाजपा ने बहुमत नहीं होने की बात कहकर सरकार गठित करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद पहली बार चुनाव मैदान में उतरी आप ने अपने 28 और कांग्रेस के आठ विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई।
यह सरकार 49 दिन चली और विधानसभा में जनलोकपाल विधेयक पेश करने की अनुमति नहीं मिलने पर केजरीवाल की अगुआई वाली सरकार ने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। पिछले आठ माह से दिल्ली में राजनीतिक असमंजस की स्थिति बनी रही। मीडिया में कई बार ऎसी खबरें आई कि भाजपा सरकार बनाने के प्रयास कर रही है, लेकिन यह प्रयास फलीभूत नहीं हुए। हालांकि भाजपा बार- बार यह कहती रही कि उपराज्यपाल की तरफ से जब सरकार बनाने का न्योता मिलेगा तो वह उस पर उचित फैसला करेगी। आप ने भाजपा पर तोड़फोड़ से सरकार बनाने की कोशिश करने के कई बार आरोप भी लगाए।