नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस महीने के पहले सप्ताह में चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावना है और फरवरी के दूसरे सप्ताह में चुनाव होने की उम्मीद है। विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने जहां अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर रही है। वहीं दिल्ली में सरकार बनाने का दावा करने वाली भाजपा इस मामले में पिछड़ रही है। साथ ही जहां अन्य दल (कांग्रेस-आप) ने अपने-अपने नेतृत्व के पत्ते खोल रखे हैं वहीं भाजपा में संशय की स्थिति बनी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजय रथ पर सवार होकर दिल्ली में सरकार बनाने का सपना देख रही भाजपा ने प्रदेश चुनाव समिति का गठन तक नहीं किया है। चुनाव समिति का गठन नहीं होने से संभावित उम्मीदवार अपना आवेदन भी नहीं कर पा रहें हैं।
इससे टिकट की उम्मीद लगाए लोगों के दिलों की धड़कन ऊपर-नीचे हो रही है। भाजपा अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं कर पा रही है कि वह सभी पूर्व विधायकों को भी टिकट देगी या उसमें से कुछ का टिकट काटेगी। बदले माहौल में जीते विधायक भी अपने टिकट को लेकर आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं।
पार्टी सूत्रों बता रहें हैं कि कम से कम दस वर्तमान विधायकों की टिकट कट सकतें हैं। इनके स्थान पर दूसरे दल से आए नेताओं को या नए लोगों को टिकट मिल सकता है। 10 से 15 निगम पार्षदों को भी टिकट देने की बात चल रही है। यही कारण है कि भाजपा को अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करने में देरी हो रही है।
उधर, जिन विधायकों को टिकट नहीं मिलने की उम्मीद है वह बागवत के मूड में है। पार्टी को इसका भी डर सता रहा। भाजपा सूत्रों ने बताया की मोदी रथ पर पार्टी बेसक सवार है पर बगावत दिल्ली में विजय मंथर कर सकती है। यही कारण है कि भाजपा टिकटों के बंटवारें को अधिक से अधिक समय तक टालना चाहती है।