नई दिल्ली। मुख्यमंत्री केजरीवाल का 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने का प्रयोग विवादों में घिरता नजर आ रहा है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक और मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय बताने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई एक जुलाई को होगी।
राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रविंद्र कुमार ने केजरीवाल सरकार में नियुक्त किए गए 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।
याचिका में कहा गया है कि 13 मार्च को केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया, जो विभिन्न मंत्रियों की मदद करेंगे वह पूरी तरह गैर-कानूनी और संविधान के खिलाफ है। ऐसे में सारी नियुक्तियों को रद्द किया जाना चाहिए।
याचिका में संविधान की धारा 239 एए का जिक्र किया गया है। यही मुद्दा दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रहा है। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले पर विचार करना जरूरी है, लिहाजा दिल्ली सरकार दो हफ्तों में जवाब दे।
केजरीवाल के इस फैसले पर भाजपा भी सवाल खडा कर चुकी है। भाजपा ने इन नियुक्तियों को केजरीवाल द्वारा असंतुष्ट विधायकों को सरकारी सुविधा देकर मुंह बंद करने की कवायद करार दिया था।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में तीन से ज्यादा संसदीय सचिव नियुक्ति नहीं किए और इसके लिए भी हमें केंद्र से इजाजत लेनी पड़ती थी।