नई दिल्ली। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की लड़ाई के मामले को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने संविधान पीठ को रेफर कर दिया है।
जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मामले मे कानून और संविधान का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है इसलिए इस पर संविधान बेंच को विचार करना चाहिए। अब इस मामले को पांच जजों की बेंच सुनेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को इस बात की अनुमति दी कि वह इसे चीफ जस्टिस के यहां जल्द सुनवाई के लिए मेंशन कर सकते हैं क्योंकि विवाद की वजह से दिल्ली में प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
कोर्ट ने संविधान बेंच के लिए कानूनी सवाल भी तय नहीं किया और कहा कि संविधान बेंच इस पर नए सिरे से विचार करे। इस मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हम पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन हाईकोर्ट का ये फैसला कि उप राज्यपाल हमारी सलाह पर बाध्य नहीं हैं, वो गलत है।
दिल्ली सरकार ने कहा कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा था कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संविधान की गलत व्याख्या की है। हाईकोर्ट के फैसले से एक चुनी हुई सरकार अधिकारविहीन हो गई है।
उन्होंने कहा था कि संविधान की धारा 239एए में दिल्ली के लिए व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था के तहत दिल्ली की विधानसभा को ज्यादा अधिकार हासिल हैं। संसद विधानसभा के कानून में दखल दे सकती है लेकिन ये अधिकार उप-राज्यपाल को नहीं है। सुब्रह्ण्यम ने कहा था कि संविधान चुनी हुई सरकार के फैसलों को पलटने की अनुमति नहीं देता है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और कैबिनेट की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। ऐसे में कोई भी विवाद होने पर मामला राष्ट्रपति के पास जाना चाहिए। लेकिन दिल्ली में उपराज्यपाल खुद ही फैसलों को रोक देते हैं। दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उप राज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं।