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demonetization: govt persistence might bring recession in india
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नोटबंदी: अर्थव्यवस्था में मंदी नहीं ला दे करंसी नोट का हिस्सा कम होने की दलील

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नोटबंदी: अर्थव्यवस्था में मंदी नहीं ला दे करंसी नोट का हिस्सा कम होने की दलील
Rs 500, Rs 1000 notes valid till November 24
demonetisation of Rs 500, Rs 1000 notes
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सबगुरु न्यूज-नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद एक निजी चैनल पर अपने एक घंटे की चर्चा में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि विकसित देशों में कुल जीडीपी का 4 प्रतिशत तक करंसी नोट हैं। यह बात उन्होंने अमूमन 8 नवम्बर के बाद हर टीवी चैनल पर कही है। दरअसल, वित्त मंत्री या यूं कहें कि सरकार इस बात की पुनरावृत्ति अप्रत्यक्ष रूप से करंसी नोटों को जीडीपी के चार से छह प्रतिशत तक लाने की ओर इशारा तो नहीं है। सरकार  बाजार में करंसी नोटों को कम करके प्लास्टिक करंसी को बढावा देने के पीछे यह मूल मकसद तो नहीं है। एक तरह से उनकी अप्रत्यक्ष कोशिश यह लग रही है कि करेंसी नोटों को जीडीपी के 12 प्रतिशत से चार से आठ प्रतिशत तक लाया जाए।

दरअसल, वित्त मंत्री अरूण जेटली की सोच शायद सही हो, लेकिन भारत जैसे देश के लिए यह किसी सूरत में फिजिबल नहीं है। नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के नोटों को रिप्लेस करने के बाद आने वाला पैसा भी फिर से बैंकों की बजाय लोगों की तिजोरियों में ही जाएगा, फिर चाहें वो व्हाइट मनी ही क्यों न हो।किसी भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए करंसी नोटों के बैंक की बजाय बाजार और उपभोक्ता की जेब में रहने के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है।
अब वित्तमंत्री के करंसी नोटों के विकसित देशों में जीडीपी के चार प्रतिशत होने के मुद्दे पर आते हैं। अमेरिका और चीन की 2016 की जीडीपी 18.6 ट्रिलियन (1 ट्रिलियन मतलब दस खरब) डॉलर है, वहीं ब्रिटेन की 2015 की जीडीपी 2.849 डॉलर है। इसी तरह भारत की 2016 की अनुमानित जीडीपी 2.25 टिलियन डॉलर है। इन सभी देशों की जीडीपी का चार प्रतिशत निकाला जाए तो अमेरिका और चीन में 0.744 ट्रिलियन डॉलर करेंसी के रूप में है।

इसे भारतीय नोटों में गिनें तो 44.64 ट्रिलियन रुपये होता है। इसी तरह ब्रिटेन की 0.114 ट्रिलियन डॉलर यानि 6.84 ट्रिलियन रुपये करंसी के रूप में बाजार में होते हैं। यदि भारत में जीडीपी का 12 प्रतिशत करेंसी नोटों की गणना करें तो वर्तमान में जीडीपी के अनुसार 16.4 ट्रिलियन रुपये करंसी नोटों के रूप में बाजार में उपलब्ध है। यानि कि विकसित देशों का चार प्रतिशत भारत के 12 प्रतिशत करंसी नोटों की स्थिति में भी कई गुना हो रहा है।

इसे जनसंख्या से भाग देवें तो प्रतिव्यक्ति के पास खर्च करने के लिए भारतीयों के पास दुनिया के उक्त तीन देशों के लोगों से भी कम पैसा बचता है। इसका सीधा मतलब यह है कि इन देशों में लोगों के पास बाजार को गतिमान करने के लिए खर्च करने के लिए करेंसी नोटों की उपलब्धता चार प्रतिशत की स्थिति में भी प्रति भारतीय से बहुत ज्यादा है। इतने करेंसी नोट उपलब्ध होने के बाद भी यहां पर 80 प्रतिशत प्लास्टिक करंसी का इस्तेमाल और होता है। तो इन अर्थव्यवस्थाओं के आकार का अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब यदि सरकार भारत के बाजार में करंसी नोटों की उपलब्धता 4 से 6 प्रतिशत तक लाने पर आमादा होती है तो भारत में कैश करंसी 5.4 ट्रिलियन रुपये होती है जो ब्रिटेन से भी कम हो जाएगी। इससे भारतीयों की खरीद के लिए जेब में उपलब्ध कैश करंसी की उपलब्धता ब्रिटेन के नागरिकों से भी बहुत कम हो जाएगी।

ऐसे में बाजार में खरीदारी पर पडने वाले असर को स्पष्ट समझा जा सकता है। विकसित देशों में 80 प्रतिशत लोगों के प्लास्टिक करंसी इस्तेमाल किए जाने के बाद भी इतनी तरलता करेंसी के रूप में मौजूद है। जो उनकी खरीद क्षमता को बढाती है। संभवतः सरकार का यह कदम करेंसी नोटों के संधारण और मुद्रण से होने वाले वित्तीय घाटे को कम करना इसका प्रमुख कारण हो सकता है।

लेकिन यदि  वित्तमंत्री के बयान के अनुसार यदि भारत भी केश करेंसी को चार प्रतिशत तक लाता है तो लोगों के पास दुनिया की सबसे बडी अर्थव्यवस्थाओं के लोगों से भी कम करेंसी बाजार में खर्च करने के लिए बचेगी ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर ज्यादा पड सकता हैं।
-परीक्षित मिश्रा