कानपुर। विजयदशमी को वैसे तो पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाएगा लेकिन एशिया में श्रीलंका के बाद उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एकमात्र रावण के मन्दिर में पूजा व अर्चना की जाती है।
खास बात यह है कि साल में एक बार ही दशानन मन्दिर के पट खुलते है। कानपुर शहर के बीचो-बीच शिवाला स्थित कैलाश मंदिर में दशानन का सैकड़ो वर्ष पुराना मन्दिर है।
मां भक्त मंडल के संयोजक के.के. तिवारी ने बताया कि रावण का जन्म और मृत्यु एक ही दिन हुई, इसलिए अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को ही रावण के मंदिर के पटो को खोलकर शाम तक उन्हें वर्ष भर के लिए बंद कर दिया जाता है।
विजयदशमी के पावन दिन पर मंगलवार को दशानन का मन्दिर का पट भक्तों के लिए खोल दिया गया। साल में एक बार मन्दिर का पट खुलने से रावण की पूजा करने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ कैलाश मन्दिर में देखने को मिली।
मन्दिर में दशानन की पूजा करने आये शिवम का कहना है कि लंकापति रावण बहुत ही विद्वान और शंकर भगवान का सबसे प्रिय भक्त था।
मन्दिर के पुजारी का कहना है कि यह मन्दिर 1868 में स्थापित किया गया था, दशानन को प्रसन्न करने के लिए महिलाएं नीले पुष्प चढ़ाती है। यह भी एक मान्यता है कि इससे उनके पति की आयु लम्बी होगी।
लंकापति रावण को प्रसन्न करने के लिए शहर के साथ कई जनपदों से भक्त मन्दिर में पहुंचे। रावण का पूजन शहर में लगभग दो सौ वर्षों से हो रहा है।
दशानन भक्त लंकेश का पूजन कर उनसे वही शिक्षा मांगते है जो दशानन ने मृत्यु के समय प्रभु श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण को दी थी, यानी भक्त लंकेश को पूजकर समय का महत्व बुद्धि विवेक व् अहंकार को त्यागने का वरदान मांगते है। पूजन के दौरान नीले पुष्प व सरसों का तेल दशानन को अर्पित किया जाता है।
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