Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
चिकित्सा के देवता माने जाते हैं धन्वन्तरि - Sabguru News
Home Business चिकित्सा के देवता माने जाते हैं धन्वन्तरि

चिकित्सा के देवता माने जाते हैं धन्वन्तरि

0
चिकित्सा के देवता माने जाते हैं धन्वन्तरि
Dhanvantari is an avatar of Vishnu in Hinduism
Dhanvantari is an avatar of Vishnu in Hinduism
Dhanvantari is an avatar of Vishnu in Hinduism

हमारे देश में सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारम्भ धनतेरस से हो जाता है। इसी दिन से घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था।

भगवान धन्वन्तरि पीतल का कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या।

दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परन्तु जब यमराज ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग अंागन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं।

धन्वन्तरि को हिन्दू धर्म में देवताओं के वैद्य माना जाता है। ये एक महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण त्रयोदशी के दिन हुआ था।

इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था। इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं।

इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे।

सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले शल्य चिकित्सक थे। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।

आयुर्वेद के सम्बन्ध में सुश्रुत का मत है कि ब्रह्माजी ने पहली बार एक लाख श्लोक के, आयुर्वेद का प्रकाशन किया था जिसमें एक सहस्र अध्याय थे। उनसे प्रजापति ने पढ़ा तदुपरांत उनसे अश्विनी कुमारों ने पढ़ा और उन से इन्द्र ने पढ़ा। इन्द्रदेव से धन्वंतरि ने पढ़ा और उन्हें सुन कर सुश्रुत मुनि ने आयुर्वेद की रचना की। इसके उपरान्त अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों के तन्त्रों को संकलित तथा प्रतिसंस्कृत कर चरक द्वारा चरक संहिता के निर्माण का भी आख्यान है।

महाभारत तथा पुराणों में विष्णु के अंश के रुप में उनका उल्लेख प्राप्त होता है। उनका प्रादुर्भाव समुद्रमंथन के बाद निर्गत कलश से अण्ड के रुप मे हुआ। समुद्र के निकलने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग निश्चित कर दें।

इस पर विष्णु ने कहा कि यज्ञ का विभाग तो देवताओं में पहले ही हो चुका है अत: यह अब संभव नहीं है। देवों के बाद आने के कारण तुम (देव) ईश्वर नहीं हो। अत: तुम्हें अगले जन्म में सिद्धियां प्राप्त होंगी और तुम लोक में प्रसिद्ध होगे। तुम्हें उसी शरीर से देवत्व प्राप्त होगा और द्विजातिगण तुम्हारी सभी तरह से पूजा करेंगे। तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन भी करोगे।

द्वितीय द्वापर युग में तुम पुन: जन्म लोगे इसमें कोई सन्देह नहीं है। इस वर के अनुसार पुत्रकाम काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न हो कर जब भगवान ने उसके पुत्र के रुप में जन्म लिया और धन्वंतरि नाम धारण किया। धन्व काशी नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे। वे सभी रोगों के निवराण में निष्णात थे।

उन्होंने भरद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में विभक्त कर अपने शिष्यों में बांट दिया। वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहां अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहां धन्वंतरि को अमृत कलश मिला, क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना गया।

– रमेश सर्राफ