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कानपुर। दीपावली के त्योहार में सभी लोग धन की तमन्ना रखते हैं लेकिन अंधविश्वास के चलते कछुआ की बलि दिए जाने का शिगूफा छोड़ दिया गया है। इसके चलते अचानक एक हफ्ते से बाजारों में चोरी छिपे कछुओं की बिक्री बढ़ गई।
पिछली दीपावली में जहां अंधविश्वास के चलते हजारों की तादाद में उल्लुओं की बलि दी गई थी, वहीं इस बार तांत्रिकों ने धन-वैभव हासिल करने और विभिन्न तरह के दोषों को मिटाने के लिए और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कछुआ की बलि देने का शिगूफा छोड़ दिया है।
इससे इस साल बेकनगंज, चमनगंज, परेड, नजीराबाद थाने के हिन्दू कबिस्तान के पास, नौबस्ता और मसवानपुर में बाहरी जिलों से आकर तस्कर मुंहमांगी कीमत पर कछुओं की बिक्री की गई।
तांत्रिक दीपावली की रात को सिद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। अंधविश्वास की वजह से कुछ लोग 20 पैर वाले कछुए की जान के पीछे पड़े हैं। तांत्रिक कछुए की हत्या कर इसके पैर के नाखून व गर्दन के साथ ही हर अंग का अपनी ‘तंत्र क्रिया’ में प्रयोग करते हैं।
जानकारों के मुताबिक अघोरपंथ से जुड़े लोग इस जीव की बलि देते हैं और तांत्रिकों के बहकावे में आकर कुछ आम लोग भी तंत्र क्रियाओं के लिए कछुआ की बलि दे देते हैं।
एडीएम सिटी अविनाश सिंह ने बताया कि कछुआ की हत्या करना वन अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। अगर कोई व्यक्ति कछुआ की हत्या करते हुए पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
इसके साथ ही उन्होंने शहरवासियों से अपील की है कि इस तरह के अंधविश्वास से दूर रहें।