नई दिल्ली। आयकर विभाग द्वारा काले धन की जांच के प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। इससे ईमानदार करदाताओं को बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं है।
नोटबंदी के बाद सरकार को मिले आंकड़ों से कालाधन रखने वालों का पता लगा कर उन पर शिकंजा कसने की तैयारी की जा रही है। लेकिन जिससे इस बारे में जानकारी देने वाले की पहचान उजागर नहीं होगी। इससे सूचना के स्रोत का खुलासा नहीं होगा और आयकर अधिकारियों की जांच और प्रभावी हो जाएगी।
बजट में नियमों किए गए बदलाव के मुताबिक कालेधन की सूचना देने वाले की पहचान सीधे केवल न्यायलय को ही दी जाएगी। जीएसटी लागू होने के बाद कर की जटिलताएं कम होंगी। जिससे ईमानदार लोगों को फायदा मिलेगा।
जीएसटी से आयकर अधिकारियों के दखल में कमी आएगी लेकिन इससे केवल उन लोगों को ही लाभ मिलेगा जो कानून का पालन करते हैं। नोटबंदी के बाद मिली जानकारी से अगले दो सालों तक आयकर विभाग को ऐसे लोगों की जानकारी मिलती रहेगी। जिन्होंने कभी टैक्स नहीं दिया है या कभी आयकर रिटर्न नहीं भरा है।
ऐसा पूछे जाने पर कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आयकर अधिकारियों की जांच में कहीं ऐसे लोग प्रभावित न हों जिन्हें अपने बैंक में जमा धन के बारे में जानकारी दी जानी है।
आयकर अधिकारियों को अस्थाई रुप से संपत्ति जब्त करने के लिए दी जाने वाली शक्ति से भी कार्रवाई अधिक प्रभावी होगी। क्योंकि अब आरोपी को अपने कालेधन और संपत्ति को ठिकाने का लगाने का मौका ही नहीं मिलेगा।
पहले ऐसी संपत्ति को जब्त करने के लिए ऑर्डर लेना पड़ता था जिसमें अक्सर छह माह तक का समय लग जाता था। तब तक आरोपी कालाधन ठिकाने लगा देता था।
उल्लेखनीय है इससे पहले जिस व्यक्ति की कालेधन की जांच की जाती थी। उसे उस व्यक्ति के बारे में जानकारी दी जाती थी। जिसकी शिकायत के आधार पर जांच की जा रही है।