सिरोही। याद होगा एक पखवाडे पहले का मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का वो संकल्प जो उन्होंने भ्रष्टाचार की शिकायत के लिये हैल्पलाइन नम्बर जारी करते हुए जताया था, कि भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाली शिकायतों को तुरंत कार्रवाई होगी। उनका मकसद था भ्रष्टाचार के लिए जीरो टोलरेंस, लेकिन सिरोही में क्या हो रहा है। अभी भी भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं है।
सिरोही नगर परिषद के ताजा सीसीटीवी घोटाले पर हल्ला मचने के बाद जो काम रुक गया था, वह पिछ्ले शुक्रवार को फिर से शुरू कर दिया गया। इसके बिजली के कनेक्शन लगाने के लिए शुक्रवार को बस-स्टैण्ड, सरजवाव दरवाजे पर सडक को ड्रिलिंग करके खोदा जा रहा था। दरअसल, मंत्री के कहने के बाद भी जांच को 27 अक्टूबर तक करके नहीं देना, फरवरी में जो जांच करके दी उसमें भी गोलमोल निष्कर्ष डालना, इस रिपोर्ट को जयपुर भेजे एक महीना होने के बाद भी इसमें शामिल अधिकारियों और कार्मिकों पर अब तक कार्रवाई नहीं होन कहीं ना कहीं प्रभारी मंत्री और स्थानीय विधायक के साथ भाजपा के सभापति की भूमिका पर भी लोग सवालिया निशान लगाने लगे हैं। वैसे चार मार्च को हुए धरने के दौरान कांग्रेस के पूर्व विधायक यह आरोप लगा चुके हैं कि नगर परिषद के भ्रष्टाचार के पैसे से भाजपाइयों ने चुनाव लडा है, यह कार्रवाई नहीं होना वसुंधरा राजे के संकल्प के प्रति स्थानीय विधायक की गंभीरता भी दिखा रहा है कि वे अपनी मुख्यमंत्री की सरकार के छवि के प्रति कितने संवेदनशील हैं। इस प्रकरण से लोग ये कयास लगाने लगे है कि इनमे कौन-कौन शमिल हो सकते है और यही हालात रहे तो विधायक बनने के लिये गाव से शहरी राजनीति मे आये चौबे जी को मतदाता नगर परिषद के पिछ्ले बोर्ड के जनप्रतिनिधियो की तरह दूबे जी बना देगी और धूमिल छवि के साथ उन्हे विधायक तो दूर गाव के वार्ड पंच के चुनाव मे भी मुश्किलो का सामना करने की स्थिति मे ला देगी।
जयपुर भेजी जांचों का हश्र मालूम
जो स्थिति है उससे यही प्रतीत होता है कि सिर्फ यहां पर जांच करके अधिकारी और नेता सिर्फ सिरोही की जनता को धोखा देने का प्रयास किया है। यदि मुख्यमंत्री की मंशा और सरकार की छवि का खयाल होता तो जिला कलक्टर की रिपोर्ट आते ही प्रभारी मंत्री यह निर्देश देते कि इस मामले में एफआईआर करवाएं और भाजपा के सभापति इस रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करते।
यदि मुख्यमंत्री की मंशा का आदर होता तो सिरोही नगर परिषद के सीसीटीवी कैमरे के घोटाले के आरोपी या तो अपनी जमानतों के लिये दौड रहे होते या फिर जेल में होते। जिला कलक्टर कार्यालय से सीसीटीवी कैमरे की जो जांच की गई थी, उसमें जो निष्कर्ष लिखा वह संदेह के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता है। इस जांच में पूरे मामले में मिलीभगत और अनियमितता की बात तो कही, लेकिन एक पूर्व नियोजित सोच के अनुसार राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव में निष्कर्ष में यह दलील लिख दी गई कि इस मामले में उच्च स्तरीय जांच करवाने पर और भी गड़बडियां मिल सकती हैं।
सिरोही नगर परिषद की पुरानी जांचों का डीएलबी में क्या हश्र हुआ यह जानते हुए भी प्रभारी मंत्री का जिला कलक्टर को ऐसा करने देना भी संदेह में है, क्योंकि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कांग्रेस की सरकार में जब कांग्रेस बोर्ड की भ्रष्टाचार की शिकायतों के लिए वर्तमान मंत्री विधायक के रूप में डीएलबी अधिकारियों से मिले थे तब भी डीएलबी अधिकारियो ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो पभारी मंत्री ने इस जांच को डीएलबी जाने कैसे दिया, और यदि अतिविश्वास मे जाने दिया भी तो अब मंत्री होते हुए भी एक महीना बीतने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होना हास्यास्पद है। इतना ही नहीं इस मामले में हंगामा करने वालो की रिपोर्ट आने के बाद की खामोशी पर लोग भी सवालिया निशान लगाने लगे हैं, जबकि वह रिपोर्ट लेकर इस्तगासा दर्ज करवा सकते थे।
इसलिये जांच जयपुर भेजने की जल्दबाजी
सीसीटीवी कैमरे की जांच को कार्रवाई की मंशा से डीएलबी में भेजा गया हो, ऐसा नहीं है। दरअसल, घोटाले में शामिल तमाम लोग इस बात से वाकिफ थे कि यदि यह जांच डीएलबी भिजवा दी जो इसे बाबूओं से दफतरदाखिल करवा दिया जा सकता है। नगर परिषद चुनावों से पहले हुई पत्रकार वार्ता में जब मंत्री को ही इस मामले में पत्रकारों ने इस प्रकरण में शामिल होने की लोगों की चर्चा के बारे में बताया तो राज्यमंत्री ने भी तुरंत इसकी जांच के लिए कलक्टर को पत्रकार वार्ता स्थल से ही फोन कर दिया और जांच के लिए कह दिया। अब मंत्री जी ने कह दिया था तो जांच तो होनी थी, फिर इन लोगों ने जांच रिपोर्ट में ऐसी गली दे दी कि इसे डीएलबी भेजने का रास्ता साफ हो गया। डीएलबी जाते ही स्टोर से ठेके उठाने वाले दलाल डीएलबी में इन जांचों को आगे नहंी आने देते। इसकी एवज में उन्हें नगर निकायों से स्टोर के टेंडर मिल जाते हैं। सिरोही में मोबाइल टाॅयलेट, कवर्ड ट्रेक्टर ट्राॅली आदि की अनियमितता उसी का एक हिस्सा है।
तीन रुपये भी खर्च नहीं कर सकते सभापति
कुछ दिन पहले सीसीटीवी कैमरे की रिपोर्ट टीवी चैनल्स पर चली। इसमें सभापति ताराराम माली के बयान भी दिखाए गए। उनका कहना था कि जांच रिपोर्ट जिला कलक्टर कार्यालय से उनके पास नहीं आई है। जबकि तीन पेज की इस रिपोर्ट को एक रुपये प्रति पेज के आधार पर कोई भी व्यक्ति यह रिपोर्ट ले सकता है। इसके लिए कलक्टरी में नकल का फार्म भरकर एडीएम कार्यालय में देने की आवश्यकता भर है और इस पर तीन रुपये का नकल का टिकिट लगाकर रिकाॅर्ड शाखा सिर्फ तीन दिन में यह जांच रिपोर्ट दे सकती है।वैसे एफआईआर दर्ज करवाने में बहानेबाजी करने और सीसीटीवी कैमरे लगाने में अनियमितता होने पर भी इनकी मौजूदगी में ही केबलिंग की तैयारी करने से वर्तमान सभापति की निष्पक्षता पर भी कांग्रेस के बाद, भाजपा के नेता और स्थानीय लोग सवालिया निशान लगाने लगे हैं। वैसे भी नीम के पेडों की कटाई, जलदाय विभाग चैराहे पर लगी हाइमास्ट लाइट को लगाने के स्थान, खाली काॅलोनी में सडक बनाने के मामले में आंख बंद रखने जैसे मुददों पर वर्तमान बोर्ड भी लोगों के संदेह के दायरे में आ चुका है। रही सही कसर भाजपाइयों के कांग्रेसियों की तरह नगर परिषद में ठेकेदारी करने के पंजीयन ने पूरी कर दी। सवाल तो यह भी उठने लगा है कि 22 मार्च की रात को नगर परिषद बंद होने के बाद सत्ताधारी पार्टी का एक प्रमुख पदाधिकारी नगर परिषद के पिछले गेट से निकलते हुए कैसे नजर आए।
सांसद को बिल्कुल नजरअंदाज किया
दरअसल, सांसद ने नगर परिषद सभापति ताराराम माली के पद संभालते ही नगर परिषद में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति अपनी मंशा जता दी थी। उन्होंने नगर परिषद सभापति को पत्र लिखकर नगर परिषद में से पूर्व बोर्ड के हुए कामों को निरस्त करने और भुगतान रोकने के लिए एक पत्र भी दे दिया था, लेकिन पार्टी पदाधिकारियो ओर खुद पार्टी के साफ छवि के नेताओ को लग रहा है कि मंत्री और सांसद के कोल्डवार में मंत्री को चुनते हुए नगर परिषद ने सांसद को किनारे लगा दिया है। वैसे सांसद भी इस नगर परिषद के सदस्य है और प्रभारी मंत्री के इस मामले ढिलाई बरतने पर वह कलक्टर की जांच रिपोर्ट के आधार पर इस मामले को पुलिस में दर्ज करवा सकते हैं।
हम नहीं करवा रह काम…
सीसीटीवी कैमरों को बिजली के कनेक्शन से जोडने के लिए नगर परिषद ने डिमाण्ड भरी हुई है। इनके कनेक्शन करने की स्वीकृति मिल गई तो कनेक्शन लगाएंगे, लेकिन इसके लिए फिटिंग नगर परिषद को ही करवाने को कहा हुआ है। सीसीटीवी कैमरे के लिए जो सडकें खोदी जा रही हैं, वह हम नहीं खुदवा रहे हैं। नगर परिषद खुदवा रही होगी।
आई.डी. चारण
एईएन, डिस्कॉम, सिरोही।