डोनाल्ड ट्रंप के अमरीका के राष्ट्रपति निर्वाचित होने के साथ ही हिंदुस्तानियों के मन में एक स्वाभाविक सवाल उभर कर आ रहा है कि क्या आतंकवाद की साझा लड़ाई में पाकिस्तान की जगह भारत लेगा?
इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते कि पाकिस्तान की तरह भारत अपनी जमीन पर अमरीका सहित किसी भी देश को अपने सैनिक अड्डे बनाए जाने की इजाजत नहीं दे सकता लेकिन आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई में अब अमरीका से पाकिस्तान को मिलने वाली लाखों डालर की आर्थिक और सैन्य मदद पर हमेशा-हमेशा के लिए अंकुश जरूर लग जाएगा।
अभी तक इस अर्थिक और सैन्य मदद का दुरुपयोग किया जा रहा था। हाल ही में सीनेट में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों दलों के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य मदद दिए जाने का प्रस्ताव किया था। तब हिलेरी ने एक सीनेटर होने के नाते उस प्रस्ताव का विरोध किया था।
इस पर भारत सहित अमरीका में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। हालांकि भारत दौरे पर आए अमरीकी विदेश मंत्री जान कैरी ने भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा था कि आतंक का स्वरूप एक ही होता है, उसमें अच्छे – बुरे के रूप में पहचान किया जाना उचित नहीं है।
अब डोनाल्ड ट्रंप के पदासीन होने और इस्लामिक आतंक को पूरी तरह कुचल डालने के उनके मंतव्यों के मद्देनजर यह आस लगाई जा रही है कि भारतीय सरहद पार से आतंकवादियों के खिलाफ प्रभावी ढंग से रोक लग सकेगी।
डोनाल्ड ट्रंप ने कैलिफोर्निया में सैन बर्नार्डिनो में एक मुस्लिम दंपती की ओर से इस्लामिक एस्टेट के प्रभाव में आकर जब एक दर्जन से अधिक असहाय नागरिकों को असाल्ट राइफल से गोली का शिकार बनाया था, तब ट्रंप ने अमरीका में मुस्लिम समुदाय को अमरीका में आने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए जाने का बयान देकर अमेरिका के श्वेत समुदाय को एकजुट कर दिया था, जो आगे चल कर ट्रंप की जीत में सहायक बने।
यही नहीं, ट्रंप इस्लामिक एस्टेट को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा ने पिछले दो सालों में एक उभरती भारतीय इकानमी के लिए आर्थिक संबंधों की भले ही एक पहल की है, लेकिन इतना तय है कि उस पर एक मजबूत इमारत का सपना ट्रंप के साथ ही देखा जा सकता है, जो प्रवासी भारतीयों के साथ भारतीय व्यापारी देख रहा है।
इसमें अब कोई संदेह नहीं है कि अमरीकी निवेशक का, जिनका चीन से मोहभंग होने लगा है, वे अब बिलियन डालर की थैलियां लिए भारत में लगाने को उत्सुक हैं। उन्हें जरूरत है, तो सिर्फ इतनी कि भारत माकूल व्यापार के लिए तार्किक कर ढांचे और अनुकूल व्यापारिक माहौल तैयार करे।
अब यह भी कहा जाने लगा है कि डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस पहुंचने के चंद महीनों बाद ही निश्चित तौर पर चीन की तुलना में भारतीय निवेशकों के लिए अपने द्वार खोलने में कोई गुरेज नहीं करना चाहेंगे। अभी भारत और अमरीका के बीच मात्र 352 अरब डालर का कारोबार है, जिसे अगले दो तीन सालों में कम से कम दो-तीन गुणा बढ़ाया जा सकता है।
करप्शन और कालाधन पर रोक लगाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एतिहासिक फैसले का भी अमरीकी निवेशकों ने स्वागत किया है। कहा जा रहा है कि अमरीका और भारत के बीच कारोबार बढ़ेगा।
ट्रंप की इस जीत पर अमरीका के भारतीय बहुल राज्यों खासकर न्यूजर्सी, न्यूयार्क और कैलीफोर्निया के विभिन्न इलाकों में एक विशेष समुदाय में देर शाम तक जश्न का सा माहौल रहा।
हालांकि इस चुनाव में एक प्रतिशत से भी कम भारतीय मतदाताओं का ट्रंप को जिताने में कोई बड़ा योगदान नहीं रहा है, तो भी प्रवासी भारतीयों में हिंदू बहुल समुदाय में एक आम धारणा यह बताई जाती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ जो मोर्चा खोला है, उसे देखते हुए कश्मीर और बलोचिस्तान जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान को सबक सिखाए जाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा चीन के आर्थिक साम्राज्यवाद में लगातार बढ़ती नफरत से भारत और अमरीका के बीच व्यापार में बढ़ोतरी हो सकेगी।
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