नई दिल्ली। बीते बुधवार को जब रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर अर्जित पटेल वित्त मंत्रालय की संसद की स्थायी समिति के समक्ष पेश हुए तो सदस्यों के तीखे सवालों से बचाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह खुद ब खुद आगे आ गए।
डॉ सिंह जो कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री से पहले आरबीआई के गवर्नर रह चुके हैं, उन्होंने पटेल को सलाह दी थी कि ऐसे किसी सवाल का जवाब न दें जो केंद्रीय बैंक और उसकी स्वायत्ता के लिए परेशानी का सबब बन जाए।
बता दें कि जानकारों का मानना है कि नोटबंदी के बाद आरबीआई की छवि और उसकी स्वायत्ता पर बुरा असर पड़ा है। वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के सांसद दिग्विजय सिंह ने जब पटेल से पूछा कि अगर नकदी निकासी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया जाए तो क्या माहौल ‘अराजक’ हो जाएगा।
इस पर सिंह ने पटेल को समझाया कि ‘आपको इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहिए।’ गौरतलब है कि हाल ही में आरबीआई ने एटीएम से पैसे निकालने की सीमा को 4500 प्रति दिन से बढ़ाकर 10 हज़ार रुपए कर दी है। हालांकि एक बचत खाते से हफ्ते में अभी भी 24 हज़ार रुपए ही निकाले जा सकते हैं।
गुरुवार को आरबीआई प्रमुख ने समिति को बताया कि नई करेंसी में 9.23 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम में डाले जा चुके हैं। उर्जित पटेल ने संसदीय समिति को यह भी बताया कि नोटबंदी पर चर्चा पिछले साल जनवरी से जारी थी।
आरबीआई गवर्नर का यह बयान समिति को पहले दिए गए उस लिखित बयान के उलट है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री द्वारा 8 नवम्बर को 500 और 1000 रुपए के नोटों को प्रचलन से हटाने की घोषणा से सिर्फ एक दिन पहले 7 नवम्बर को सरकार ने आरबीआई को बड़े रद्द नोटों को रद्द करने की ‘सलाह’ दी थी।
वहीं पिछले साल नवम्बर में डॉ सिंह ने संसद में पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले को ‘प्रबंधन की विशाल असफलता’ है और यह संगठित एवं कानूनी लूट-खसोट का मामला बताया था।
उन्होंने कहा था कि वह नोटबंदी के उद्देश्यों को लेकर असहमत नहीं हैं, लेकिन इसके बाद बहुत बड़ा कुप्रबंधन देखने को मिला, जिसे लेकर पूरे देश में कोई दो राय नहीं।