वाराणसी। विश्व की धार्मिक सांस्कृतिक राजधानी काशी में कहावत है ‘सात वार नौ त्यौहार’ यानी सप्ताह में दिन तो सात होते हैं पर बनारस में उनमें नौ त्यौहार पड़ते हैं। फक्कण पन के साथ मौज मस्ती में रहने वाले इस शहर के वाशिन्दे अपनी इस प्रवृत्ति को हर पल जीने की कोशिश में तमाम दुश्वारियों के बीच लगे रहते हैं।
संतान की कामना के लिए रामेश्वर पंचकोशी तीर्थ पर अगहन माह के छठे दिन बुधवार को यह नजारा एक बार फिर लोटा भंटा मेले में देखने को मिला। हरहुआ रामेश्वर स्थित वरूणा नदी के कछार में अलसुबह से पूरे दिन तक वाराणसी सहित आसपास के जिले और पड़ोसी बिहार से भी श्रद्धालु आते रहे।
बड़ागांव से लेकर जंसा के बीच दस किमी के क्षेत्र में वरूणा के कछार में अहरा जलता रहा। परम्परानुसार लोगों ने वरूणा में स्नान के बाद भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग रामेश्वरम महादेव के दर पे मत्था टेका और प्रसाद के रूप में बाटी चोखा चढ़ाया और इस महाप्रसाद को मित्र-दोस्तों ओर परिवार के साथ ग्रहण किया।
हजारों निसंतान श्रद्धालु परिवार सहित मंगलवार की शाम ही मेला क्षेत्र में पहुंच चुके थे। पुरी रात वरूणा के कछार में खुले आसमान के नीचे गुजारा और तड़के ही वरूणा में स्नान घ्यान के बाद अहरा गोहरी की आंच पर खीर, बाटी-चोखा बनाया, और उसी पर हांडी में दाल पकाई। और इस प्रसाद को लेकर रामेश्वर महादेव को अर्पित किया। और उनसे वंश बेल में वृद्धि के लिए गुहार लगायी।
रामेश्वर महादेव मंदिर के महन्त पंडित अनूप तिवारी ने बताया कि यह प्राचीन मंदिर काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव है। वरुणा नदी के तट पर बसे इस मंदिर पर अहगनवदी छठ के मौके पर प्राचीन लोटा भंटा मेला लगता है।
बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण (जो एक ब्राह्मण था) का वध करने के बाद प्रायश्चित के लिए अन्न का त्याग कर दिया था। इसके बाद उन्होंने काशी के रामेश्वरम इस क्षेत्र में आकर वरुणा नदी के किनारे शिवलिंग की स्थापना किया।
उन्होंने लोटे में ही भंटे का चोखा और बाटी बनाकर भोलदानी को भोग लगाया और व्रत तोड़कर रात में आराम किया। तब से रामेश्वर क्षेत्र में श्रद्धालु वरुणा नदी में स्नान कर भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करते हैं।
तीर्थ पुरोहित भोला गुरू ने बताया कि पंचकोशी यात्रा का काफी धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं ने भी यह यात्रा की थी और उसी से जुड़ी इस लोटा भंटा मेले की कहानी भी है।
महाभारत के युद्ध के बाद पांडव जब परम गति पाने के लिए निकले तो वे भी यहां पहुंचे। लेकिन, उन्होंने रामेश्वर महादेव पर रात नहीं बिताई, जो कि यहां का नियम है। इससे रामेश्वर महादेव नाराज हो गए। इसके बाद इसके प्रायश्चित के लिए वहां से लौटे। वरुणा में स्नान के बाद रामेश्वर महादेव की पूजा की और फिर बाटी चोखे का प्रसाद बनाया।