लखनऊ। विधानसभा चुनाव-2017 से पहले समाजवादी पार्टी (सपा) में जातीय सन्तुलन साधने के तहत निष्कासित नेताओं की वापसी का दौर भी शुरू भी शुरू हो गया है। इसके तहत सोमवार को सीतापुर के विधायक रामपाल यादव का पार्टी से निष्कासन रद्द कर दिया गया।
प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने लगभग आठ महीने पहले लखनऊ में अवैध निर्माण के आरोपों को लेकर विधायक रामपाल यादव को छह साल के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया था, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उनकी घर वापसी हो गई।
विधायक रामपाल यादव लखनऊ के जियामऊ में अवैध बिल्डिंग के निर्माण को लेकर सुर्खियों में आए थे। हाईकोर्ट ने इस बिल्डिंग के अवैध निर्माण को रोकने का आदेश दिया था, लेकिन सत्तारूढ़ दल के विधायक होने के कारण रामपाल लगातार अपनी मनमानी करते रहे और उन्होंने अपने समर्थकों के साथ अवैध निर्माण तोड़ने आए लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों और पुलिसकर्मियों से बदसलूकी भी की।
हालांकि बाद में उनकी गिरफ्तारी हुई और कोर्ट ने उन्हें चौदह दिन की न्यायिक हिरासत में भी भेजा। विधायक की इस करतूत के कारण पार्टी और सरकार दोनों की काफी किरकिरी हो रही थी, जिसके बाद विधायक को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद विधायक रामपाल के सीतापुर में अवैध तरीके से बने स्पर्श होटल को भी गिराया गया।
इससे बौखलाए विधायक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर हमला भी बोला था, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को लेकर वह विनम्र बने रहे। वहीं सोमवार को अपना निष्कासन रद्द होने के बाद एक बार फिर उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर शब्द बाण छोड़े और कहा कि मुख्यमंत्री की कृपा से ही डायनामाइट लगाकर उनका होटल गिराया गया, जबकि मैं पूरी तरह निर्दोष था।
रामपाल की पार्टी में वापसी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए एक और झटका माना जा रहा है। उन्होंने खुद रामपाल को बाहर का रास्ता दिखाया था, लेकिन अब उनके चाचा शिवपाल यादव ने इसे पलटते हुए यह निर्णय लिया है।
इससे पहले गायत्री प्रजापति को राष्ट्रीय सचिव बनाकर भी अखिलेश की नाराजगी की परवाह नहीं की गई। अमर सिंह को भी राज्यसभा में भेजने से लेकर पार्टी के संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाने पर अखिलेश नाखुश थे।
एक तरफ जहां दागियों और बाहुबलियों को चुनाव की जरूरत मानकर पार्टी में शामिल करने से लेकर टिकट दिया जा रहा है, वहीं अखिलेश के समर्थक नेताओं का निष्कासन अभी भी रद्द नहीं किया गया है, जबकि वह काफी पहले ही स्वयं पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव से इसकी अपील चुके हैं।
दरअसल पार्टी में चुनाव से पहले अब शक्ति का मुख्य केन्द्र संगठन बन गया है और इसकी कमान शिवपाल यादव के हाथ में है, इसलिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके समर्थकों को तरजीह नहीं मिल रही है और यही पार्टी के अन्दरूनी विवाद की जड़ बना हुआ है।