दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए आम आदमी पार्टी के एक आंदोलनात्मक कार्यक्रम में जिस प्रकार से कथित जनहितैषी अरविन्द केजरीवाल के समक्ष एक किसान ने पेड़ से लटककर अपनी जीवन लीला समाप्त की है, उससे आम आदमी पार्टी की राजनीति की जमकर छीछालेदर हो रही है।
वैसे वर्तमान में राजनीति का जो स्तर दिखाई देता है, उसमें जनभावना कम और स्वार्थ ज्यादा दिखाई देता है।
आम आदमी पार्टी को कम से कम दिखावे के लिए ही सही अपनी सभा को निरस्त कर ही देना चाहिए था। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं ने ऐसा न करके जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया है, वह भारत की राजनीति में काले पन्ने पर जरूर दर्ज किया जाएगा।
आम आदमी पार्टी के इस कार्यक्रम में जहां दिल्ली की पूरी सरकार थी तो वहीं देशभक्ति जनसेवा की दुहाई देने वाली पुलिस भी उपस्थित थी।
राजस्थान के किसान द्वारा आत्महत्या किए जाने के इस मामले में किसको दोषी माना जाए, यह सवाल आज राजनीति की गहरी खाई में गोता लगाता हुआ दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी सहित सभी दलों को जैसे कुछ कहने का अवसर मिल गया हो।
वर्तमान में आम आदमी पार्टी की राजनीति और उनके सरकार चलाने के तरीकों का अध्ययन किया जाए तो यह तो साबित हो रहा है कि केजरीवाल ने आम जनता को जिस प्रकार के सपने दिखाए थे, सरकार वैसा कुछ भी नहीं कर रही है। इतना ही नहीं अब तो आम आदमी पार्टी के नेताओं को भी यह स्पष्ट रूप से लगने लगा है कि हमने जनता से जो वादे किए हैं वे पूरे हो ही नहीं सकते।
तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने स्वये इस बात को स्वीकार किया है कि हमारी सरकार जनता से किए गए वादों को पूरा नहीं कर सकती। केजरीवाल की इस बात से यह साफ हो जाता है कि चुनाव के समय केजरीवाल ने आम जनता से झूंठ बोला था, यानि राजनीति की शुरूआत ही झूंठ पर आधारित थी। इस प्रकार के राजनीतिक संत्रास से त्रस्त होकर ही दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को छप्पर फाड़कर समर्थन दिया, लेकिन केजरीवाल द्वारा इस प्रकार की स्वीकारोक्ति करना क्या जनता के साथ विश्वासघात नहीं है।
जंतर मंतर पर किसान द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर यह एक बार फिर से सिद्ध हो गया है कि केजरीवाल की सरकार को आम जनता के दर्द से कुछ भी वास्ता नहीं है, वे तो केवल सरकार बनाने भर की ही राजनीति कर रहे थे, अब सरकार बन गई तो केजरीवाल एंड कंपनी राजा बनकर राजनीति करने का खेल खेलने पर उतारू हो गई है।
भारत के सारे राजनीतिक दल मन से नहीं तो केवल दिखावे भर के लिए किसान आत्महत्या मामले को लेकर संवेदनशील हो जाते, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए इसके कोई मायने नहीं हैं। किसान द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद भी उन्होंने अपना कार्यक्रम जारी रखा और अपनी भड़ास निकालने का असंवेदनशील खेल खेला।
इससे यह भी प्रमाणित हो गया कि आम आदमी पार्टी को किसानों के जीवन से कोई मतलब नहीं हैं, उन्हें ता बस अपनी राजनीति ही करना है। अब सवाल उठता है कि जीवन महत्वपूर्ण है या फिर राजनीति? जाहिर है केजरीवाल ने राजनीति को प्रथम स्थान दिया। केजरीवाल साहब पहले तो किसान की आत्महत्या मामले को भाजपा और पुलिस का नाटक बता रहे थे, लेकिन किसान की जीवनलीला समाप्त हो गई तब भाजपा और पुलिस की साजिश का हिस्सा बता दिया।
यहां पर यह सवाल भी पैदा होता है कि अगर यह पुलिस द्वारा रचा गया नाटक होता तो यह प्रकरण केवल नाटक तक ही सीमित रहता, किसान इसमें अपनी जान नहीं देता, केवल जान देने का नाटक ही करता, लेकिन किसान ने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया।
धन्य है केजरीवाल जी उन्हें तो अब भी इस खेल में नाटक ही दिखाई दे रहा है। जबकि सच तो यह है कि राजस्थान के गजेन्द्र नामक किसान केजरीवाल के कार्यक्रम में कुछ उम्मीदें लेकर गया था, कि शायद अब मेरी सुनवाई हो जाएगी, लेकिन किसान को लगा होगा कि केजरीवाल तो केवल भाषण के सहारे और एक दूसरे पर आरोप लगाने वाली राजनीति करके अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, तब किसान को उम्मीद के सारे रास्ते बन्द दिखाई दिए होंगे और उसने इस भयानक रास्ते पर चलने का मानस बनाया होगा। हद तो उस समय हो गई जब केजरीवाल के मुंह से किसानों के पक्ष में एक बात भी नहीं निकली।
आम आदमी पार्टी के कार्यक्रम में किसान द्वारा आत्महत्या करने के मामले में यह कहा जाए तो ज्यादा तर्कसंगत ही होगा कि यह मामला हत्या का ही है, क्योंकि कार्यक्रम स्थल पर जब बचाने के सारे इंतजाम मौजूद थे, तब किसान को बचाने के उपक्रम क्यों नहीं किए गए। मुख्यमंत्री केजरीवाल अग्रिशमन दल के कर्मियों को बुलाने का आदेश भी दे सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, यह जांच के बाद ही चल पाएगा, लेकिन इस सारे मामले में केजरीवाल की सरकार पूरी तरह से दोषी है। पूरी सरकार के ऊपर हत्या का प्रकरण दर्ज होना चाहिए।
-सुरेश हिन्दुस्थानी