नई दिल्ली। 2016 के शारदीय नवरात्रों का प्रारम्भ एक अक्टूबर के दिन आश्विन मास, शुक्ल पक्ष की तिथि से प्रारम्भ होगा। नवरात्र के प्रथम दिन उपवास कर, कलश की स्थापना की जाती है।
शास्त्रों के अनुसार उपवासों को प्रारम्भ करने के लिए कलश स्थापना करना उपवास के लिए शुभ माना जाता है। जिस प्रकार देवों में सबसे पहले गणेश की पूजा की जाती है।
उसी परम्परा के अनुसार उपवास प्रारम्भ करने से पहले कलश स्थापना की जाती है। नवरात्र के पहले दिन माता के प्रथम रुप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री है और इसी कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। प्रथम दिन ही शैलपुत्री की पूजा कलश स्थापना से शुरू किया जाता है।
पूजा में शैलपुत्री माता को लाल रंग की साड़ी से तैयार किया जाता है और गाय के शुद्ध घी से पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन लाल रंग पहनकर पूजा करना शुभ मानते है।
कलश स्थापना विधि
कलश की स्थापना नवरात्र के पहले दिन किया जाता है। इसमे सर्वप्रथम गंगाजल से उस स्थान को शुद्ध किया जाता है जहां कलश की स्थापना करते है। शुद्ध किए गए स्थान पर सात रंग की मिट्टी मिलाकर एक पीठ तैयार किया जाता है।
कलश के उपर आम के पल्लव और नारियल रखते है और कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, सिक्के रखे जाते हैं। इसी तरह के पांच कलश तैयार किए जाते हैँ। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी में काटा जाता है। कलश स्थापना के बाद शैलपुत्री माता के कथा के साथ पूजा प्रारम्भ की जाती है।
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