सूरत। सूरत के महुआ तहसील निवासी एक व्यक्ति के सड़क दुर्घटना में घायल होने तथा उपचार के दौरान सडक दुर्घटना के बाद ब्रेन डेड घोषित व्यक्ति के अंगदान से दो लोगों को जीवन मिला है। महुआ तहसील निवासी एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया थाा। अस्पताल में चिकित्सकों ने उसे ब्रैन डेड घोषित कर दिया। इसके बाद डोनेट लाइफ संस्था के सदस्यों ने मरीज के परिजनों को अंगदान के बारे में समझाया।
परिजनों की सहमति के बाद शहर में इतिहास रच गया और पहली बार हड्डी दान लेकर उसको बैंक में सुरक्षित रखा गया है। वहीं किडनी व लीवर के दान से दो को नया जीवन मिला।
मांडवी तहसील के डुंगरी (नलधरा) गांव निवासी धनसुख मीठ्ठल पटेल (58) तीन मई को सुबह साढ़े सात बजे जीम में कसरत करने के बाद मोटरसाइकिल से घर लौट रहे थे। तभी डुंगरी गांव नहर के पास अज्ञात मोटरसाइकिल चालक ने उनको टक्कर मार दी।
धनसुख को सिर में गंभीर चोट आई और वह बेहोश हो गए। उनको बारडोली सरदार स्मारक अस्पताल में भर्ती कराया गया। सीटी स्कैन से ब्रेन हैमरेज होने की जानकारी हुई। उनको सूरत के आशुतोष अस्पताल में रैफर कर दिया गया।
न्यूरोसर्जन डॉ. आशिष देसाई ने ऑपरेशन कर दिमाग से रक्त की गांठ को दूर किया। लेकिन उनकी तबीयत में अधिक सुधार नहीं हुआ। डॉ. देसाई ने गुरुवार को न्यूरोफिजिशियन डॉ. अनिरुद्ध के साथ धनसुख को ब्रेन डेड घोषित किया। डॉ. केतन देसाई ने डोनेट लाइफ के प्रमुख निलेश मांडलेवाला का सपर्क किया और धनसुख के ब्रेन डेड होने की जानकारी दी।
सूचना पाकर मांडलेवाला अस्पताल पहुंचे और मरीज की पत्नी नयना, पुत्र केवीन, पुत्री हेमांगी, हेतल, नीकीता तथा परिवार के अन्य सदस्यों से अंगदान के बारे में समझाया। मांडलेवाला ने परिजनों को हड्डी दान करने के लिए भी राजी कर लिया। जिसके बाद मांडलेवाला ने अहमदाबाद के आईकेडीआरसी के ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर प्रिया शाह तथा डॉ. प्रांजल मोदी से सपर्क कर किडनी व लीवर दान लेने के लिए बताया।
डॉ. प्रांजल की टीम सूरत पहुंची और दो किडनी व लीवर का दान स्वीकार किया। हड्डी का दान आशुतोष मल्टी स्पेश्यालिटी अस्पताल के डॉ. राजीव राज चौधरी ने स्वीकार किया। दोनों किडनी गांधीनगर निवासी जमनाबेन चौहाण (48) तथा लीवर गांधीधाम के निवासी मनोज खुबचंद भानुशाली (33) में ट्रांसप्लांट किए गए। जबकि चक्षुओं का दान लोकदृष्टि चक्षुबैंक के डॉ. प्रफुल शिरोया ने स्वीकार किया।
प्रोसेस के लिए भेजेंगे मुबई
भारत में पहली बार हड्डी बैंक 1988 में टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में शुरू हुआ था। उसके बाद 1999 में एस दिल्ली और 2004 में चैन्नई में शुरू हुआ। गुजरात में पहली बार आशुतोष अस्पताल में शुक्रवार को हड्डी का दान डॉ. राजीव राज चौधरी तथा उनकी टीम ने स्वीकार किया।
हड्डी स्वीकारने के बाद उसे साफ करके 40 डिग्री पर स्टोर करते मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में प्रोसेस करने के लिए भेजा जाता है। प्रोसेस के बाद वापस हड्डी आशुतोष अस्पताल में मंगवा ली जाएगी। दान में मिले हड्डी को कई तरह उपयोग किया जाता है। कैंसर के मरीजों और हड्डी टूटने के मरीजों में इसका उपयोग किया जा सकता है। हड्डी का आयुष 4 वर्ष का होता है।