नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को सूचित किया कि भारत में विदेशी नागरिक किराए की कोख नहीं ले सकते हैं। सरकार ने न्यायालय में बुधवार को दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि किराए की कोख सेवा सिर्फ भारतीय दंपतियों के लिए ही उपलब्ध है।
हलफनामे के अनुसार सरकार किराए की कोख के व्यावसायीकरण का समर्थन नहीं करती है। कोई भी विदेशी भारत में किराए की कोख की सेवा नहीं ले सकता है।
किराए की कोख सिर्फ भारतीय दंपतियों के लिए ही उपलब्ध होगी। सरकार ने न्यायालय से कहा है कि उसने विदेशियों के लिए व्यावसायिक किराए की कोख की खातिर मानव भ्रूण आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया है।
हाल ही में, विदेशी व्यापार महानिदेशालय ने कृत्रिम गर्भाधान के लिए भारत में मानव भ्रूण आयात की अनुमति देने संबंधी अपनी 2013 की अधिसूचना वापस लेने का निर्णण किया था।
केन्द्र ने स्पष्ट किया कि अनुसंधान कार्य के लिए भ्रूण के आयात पर प्रतिबंध नहीं होगा। हलफनामे में कहा गया है कि किराए की कोख की सेवाओं के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध लगाने और इसे दंडित करने हेतु पर्याप्त प्रावधान किए जाएंगे।
इस बीच, पीठ ने किराए की कोख के मामले में न्यायालय में दाखिल होने वाले केन्द्र के संभावित जवाब का विवरण के बारे में उस खबर पर अप्रसन्नता व्यक्त की जिसमें कहा गया था कि सरकार दूसरे देशों के दंपत्तियों को भारत में किराए की मां के माध्यम से बच्चे की अनुमति नहीं देगी।
न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश एनवी रमण ने शीर्ष अदालत में जवाब दाखिल होने से पहले एक अखबार में किराए की कोख के व्यावसायीकरण के बारे में सरकार के दृष्टिकोण का विवरण प्रकाशित होने पर नाराजगी जाहिर की।
शीर्ष अदालत में हलफनामा दाखिल होने से पहले ही इसके प्रमुख अंश एक अंग्रेजी समाचार पत्र में लीक होने को गंभीरता से लेते हुए न्यायाधीशों ने तल्ख शब्दों में कहा कि हमें आपसे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए।
आप हलफनामा रजिस्ट्री में दाखिल कीजिए। पीठ ने सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि यह जवाब न्यायालय में दाखिल करने की बजाय इसे रजिस्ट्री में दाखिल कीजिए।
इस समाचार के अनुसार केन्द्र सरकार अपने हलफनामे में किराए की कोख के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध लगाएगी और दूसरे देशों के दंपतियों को किराए की कोख की मां के माध्यम से बच्चे प्राप्त करने की अनुमति नहीं देगी।
इससे पहले, न्यायालय ने किराये की कोख के व्यावसायीकरण को कानून के दायरे में लाने का निर्देश देते हुए मानव भू्रण के कारोबार पर चिंता व्यक्त की और सरकार से कहा था कि मानव भ्रूण के आयात की नीति पर फिर से गौर किया जाए।
न्यायालय ने कहा था कि आप मानव भ्रूण के कारोबार की अनुमति दे रहे हैं जबकि किराए के कोख के व्यावसायीकरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए परंतु देश में किसी कानूनी मान्यता के बगैर ही यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।
केन्द्र ने 2013 में एक अधिसूचना जारी करके कृत्रिम गर्भाधान के लिए मानव भ्रूण के आयात की अनुमति दी थी। इस अधिसूचना ने विदेशी दंपतियों को जमा फ्रोजेन मानव भ्रूण भारत लाकर उसे किराए की कोख को देने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
इस मामले को लेकर वकील जयश्री वाड ने न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका में कहा गया है कि भारत एक तरह से बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री बन गया गया है क्योंकि बड़ी संख्या में विदेशी दंपती किराए की कोख की तलाश में यहां आ रहे हैं।