जयपुर। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच कोटा में हुई घटना को लेकर कहा है कि कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं है।
सीआई के साथ किए गए दुर्व्यवहार को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। यदि स्थानीय पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही थी तो उच्चाधिकारियों से शिकायत की जा सकती थी।
सत्ता पक्ष में आप हैं तो गृह मंत्री एवं मुख्यमंत्री तक शिकायत कर सकते थे। पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने लखनऊ से जयपुर पहुंचने पर अपने निवास पर आए मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए कहा कि कोटा प्रकरण में किन्हीं दो जातियों का सवाल नहीं है।
इस प्रकार के सवाल बनाए जाना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। सामने तो यह आया है कि सत्ता पक्ष में बैठे लोगों को अहम और घमण्ड के कारण यह सब कुछ हुआ।
मामले में गलती को ढूंढना जांच का विषय हो सकता है, मगर जांच में दोषी पाए जाने पर दोषी को सजा दी जानी चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जानकारी के अनुसार एक तरफ पेट्रोल पम्प पर आग लगी थी, दूसरी तरफ सत्तापक्ष भाजपा के नेता और पुलिस में पत्थरबाजी और लाठीचार्ज हो रही थी।
ये सभी लोग मिलकर यदि आग बुझाने में जिला प्रशासन का सहयोग करते तो आमजन में अच्छा संदेश जाता। गहलोत ने कहा कि जांच के लिए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष को भेजे जाने का कोई तुक नहीं था। वहां तो किन्हीं दो वरिष्ठ नेताओं को भेजा जा सकता था।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को तो सिर्फ आमजन में व्याप्त धारणा को ठीक करने और डैमेज कंट्रोल करने के लिए वहां भेजा गया था। विधानसभा सत्र को लेकर गहलोत ने कहा कि प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी से उनकी लम्बी चर्चाएं हुई हैं।
विधायक दल सभी मुद्दों को उठाएगा और सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया है कि विपक्ष की आवाज को दबाने का प्रयास नहीं करें। विपक्ष की संख्या कम हो सकती है। मगर उसकी आलोचना से भी सत्ता पक्ष और राज्य को लाभ मिलता है।
आलोचना के कारण सरकारी मशीनरी सजग होती है और वह काम करती है। अब तक का अनुभव बताता है कि सत्ता पक्ष ने विपक्ष को दबाये रखना और उसे बोलने नहीं देने की नीति अपना रखी है।
किसी भी बहाने मार्शल को बुला लेना और विपक्षी सदस्यों को धक्के देकर बाहर तक निकलवाया गया है। बुजुर्ग विधानसभा अध्यक्ष बार-बार गुस्सा करते हैं और मार्शल को बुलाते हैं। उससे मुख्यमंत्री खुश हो सकती हैं मगर उनके खुद के हित में नहीं है।