![“एंडुलकर” की सुर्खियों ने दुखी हो गए थे सचिन तेंदुलकर “एंडुलकर” की सुर्खियों ने दुखी हो गए थे सचिन तेंदुलकर](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/03/tsachin.jpg)
former Indian cricketer and captain sachin tendulkar autobiography
नई दिल्ली। भारत और बांग्लादेश के बीच जब भी विश्वकप में मुकाबला होता है तो साल 2007 के टूर्नामेंट की कड़वी यादें ताजा हो जाती हैं। यही वह टूर्नामेंट है जिसके बाद बल्लेबाजी के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर के लिए “एंडुलकर” जैसी सुर्खियों का इस्तेमाल हुआ था और सचिन को इसका सबसे अधिक दुख हुआ था।
साल 2015 विश्वकप के ब्रांड एम्बेसेडर सचिन ने अपनी आत्मकथा “प्लेइंग इट माई वे” में 2007 विश्वकप में बांग्लादेश के खिलाफ मुकाबले का जिक्र करने के बाद यह बात कही थी। सचिन ने अपनी किताब में एंडुलकर नाम से अध्याय में लिखा कि हमारा मुख्य लक्ष्य विश्वकप जीतना था।
हम चार साल पहले फाइनल में पहुंचे थे और आखिरी बाधा में लड़खड़ा गए थे। इस बार हम उससे बेहतर करने के लिए बेताब थे। सचिन ने लिखाए हमनें मार्च के शुरू में जमैका में हालैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ दो अभ्यास मैच खेले थे। हालैंड के खिलाफ हमने 300 से ज्यादा रन बनाकर 182 रन की जीत दर्ज की थी जबकि हमारे गेंदबाजों ने वेस्टइंडीज को 85 रन पर लुढ़काया था और हम नौ विकेट से जीते थे।
हमारा पहला ग्रुप मुकाबला 17 मार्च को बांग्लादेश के खिलाफ था और हम अच्छी लय में दिखाई दे रहे थे लेकिन सात ही विपक्षी टीम को हल्के में लेने का कोई सवाल नहीं था। मास्टर ब्लास्टर ने लिखा कि यह मैच कई कारणों से मुश्किल था। जब हमने बल्लेबाजी की तो पिच से गेंदबाजों को मदद मिल रही थी और पहले 10 ओवर में शाट खेलना काफी मुश्किल था।
बांग्लादेश के तेज गेंदबाज मशरफे मुर्तजा ने अच्छी गेंदबाजी की और हमने जल्दी दो विकेट गंवा दिए। मैं उस विश्वकप में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी कर रहा था क्योंकि टीम प्रबंधन का मुझसे यही आग्रह था। सचिन ने लिखा, मैं चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने को लेकर सहज नहीं था।
मुझसे 2003 विश्वकप से पूर्व ऎसा कहा गया था लेकिन तब मैंने कहा था कि मैं ओपनर के रूप में ही ज्यादा योगदान दे सकता हूं। वेस्टइंडीज में टीम प्रबंधन का मानना था कि वहां विकेट धीमे हैं और मैं पारी के मध्य में स्पिनरों को बेहतर खेल सकता हूं। लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ और सभी कैरेबियाई विकेटों पर उछाल तथा मूवमेंट था। यह रणनीति उल्टे हम ही पर भारी पड़ गई।
उन्होंने कहा कि जल्द ही दो विकेट गंवाने के बाद मैं मैदान में उतरा और मैंने तथा सौरभ ने शुरूआती स्विंग को निकाल लिया। जब स्पिनर आक्रमण पर आए तो मैंने एक्सट्रा कवर के ऊपर से शाट खेलने की कोशिश की लेकिन लेफ्ट आर्म स्पिनर अब्दुर्र रज्जाक की गेंद मेरे बल्ले का अंदरूनी किनारा लेकर पैड से टकराई और स्टम्प्स में घुस गई।
मैंने विश्वकप में ऎसे स्टार्ट की उम्मीद नहीं की थी। मास्टर ब्लास्टर ने कहा, हालांकि सौरभ ने ओपनिंग करते हुए 66 रन बनाए लेकिन कप्तान राहुल 14 और धोनी शून्य पर आउट हो गए। यह ऎसा दिन था जब सब कुछ हमारे खिलाफ चल रहा था। हमने 191 का स्कोर बनाया इसके जवाब में तमीम इकबाल ने अपनी टीम को तेज शुरूआत दी और उन्होंने पांच विकेट शेष रहते लक्ष्य हासिल कर लिया।
सचिन ने लिखा कि बांग्लादेश से हार के बाद हमने सोचा कि अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। दो मैच बाकी हैं। हमने बरमूडा को 257 रन से हराया लेकिन श्रीलंका के खिलाफ 23 मार्च को निर्णायक मैच में हमें हार झेलनी पड़ी। हमारा पूरा ड्रेसिंग रूम स्तब्ध था। कई खिलाडियों की आंखों से आंसू निकल रहे थे। अधिकतर खिलाड़ी खामोश बैठे थे। मेरे लिए इस निराशा से पार पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। यह मेरे करियर का सबसे खराब क्षण था।
क्रिकेट के बादशाह ने लिखा कि जब हम स्वदेश लौटे तो मैंने सुना कि लोग खिलाडियों की प्रतिबद्धता पर संदेह कर रहे हैं और मीडिया हमारी आलोचना कर रहा था। हालांकि मीडिया के पास आलोचना करने का पूरा अधिकार है लेकिन यह कहना गलत होगा कि हमारा ध्यान केंद्रित नहीं था। हम अपने प्रशंसकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमपर देश द्रोही का ठप्पा लगाया जाए।
कई बार तो प्रतिक्रिया वास्तव में खौफनाक थी और कुछ खिलाड़ी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन ने लिखा, मुझे एंडुलकर जैसी हैडलाइंस ने बहुत दुख पहुंचाया। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 18 साल तक अपनी पूरी सेवा देने के बाद इस तरह की चीजों को देखना वाकई बहुत मुश्किल था।
तब मेरे दिमाग में रिटायरमेंट जैसा ख्याल आने लगा था। लेकिन मेरे परिवार और संजय नायक जैसे मित्रों ने मेरा हौसला बढ़ाया और एक सप्ताह बाद जाकर मैने कुछ रनिंग शुरू की ताकि मैं विश्वकप की कड़वी यादों को अपने दिमाग से निकाल सकूं।