गोरखपुर। महंत अवैद्यनाथ का गोरखपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में काफी प्रभाव था। चार बार सांसद रहे अवैद्यनाथ ने 1998 में योगी आदित्यनाथ को अपना राजनीति वारिस बनाया था। योगी तभी से वह गोरखपुर का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।..
महंत अवैद्यनाथ पिछले दो माह से हरियाणा के मेंदांता अस्पताल में इलाज चल रहा था। रात करीब साढे आठ बजे उन्होंने गोरखनाथ मंदिर में अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना मिलने पर श्रद्धांजलि देने वाले मंदिर पहुंचने लगे।
गोरक्षपीठाधीश्वर अवैद्यनाथ जीवनभर आध्यात्म और हिन्दुत्व की भावना से ओत प्रोत रहे। वे बचपन से ही आध्याात्म से जुड़ गए थे। महंत का जन्म जन्म 18 मई 1919 को देवभूमि पौढी गढवाल के काण्डी नामक गांव में हुआ था। अवैद्यनाथ का सांसारिक नाम कृपाल सिंह विष्ट था। पिता रायसिंह विष्ट तीन भाई थे। महंत अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थे। बाल्य अवस्था में उनके माता-पिता की अकाल मृत्यु हो गई थी। परिवार के संरक्षण में आपकी दादी मां ने लालन पालन किया था।
उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा पूर्ण होते ही दादी मां का भी स्वर्गवास हो गया। बाल्य मन पर लगे आघात-प्रतिघात ने संसार के प्रति उदासीन बना दिया और मन में वैराग्य भाव ने गहरी पैठ बना ली जिसके परिणामस्रू प वे गृह त्याग करके रिषिकेश चले आए जहां किशोर कृपाल सिंह विष्ट का सम्पर्क अनेक साधु-महात्माओं से हुआ।
वैराग्य से जाग्रत चेतना के कारण उनका रू झान भारतीय धर्म-दीन एवं मानव जीवन के गूढ रहस्यों को समझने में रम गया। इससे उत्पन्न जिज्ञासा को शान्त करने के लिए किशोर कृपाल सिंह विष्ट ने देवभूमि उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा काशी सहित अनेक स्थानों का भ्रमण किया। इस दौरान आपको अनेक उच्च कोटि के साधु-सन्तो का सानिध्य मिला।
कि शोरावस्था में ही उन्होंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। वह यात्रा उनके सन्यासी जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुई। उस समय कैलाश मानसरोवर का मार्ग अत्यन्त ही दुर्गम था। पैदल यात्रा में करीब बीस दिन लगते थे। तीन अन्य सन्यासियोें के साथ मानसरोवर की यात्रा पर चल पडे। कै लाश मानसरोवर की यात्रा से वापस आते समय अल्मोडा से कुछ आगे उन्हें हैजा हो गया और अत्यधिक उल्टी-दस्त के कारण अचेत हो गए। साथी सन्यासियों ने महंत को मृत मानकर उसी दशा में छोड़कर आगे चले गए थे।
धर्म की रक्षा महंत अवैद्यनाथ को अपने गुरूदेव से विरासत में प्राप्त हुई। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 1962 मेंं मानीराम विधानसभा से विजयी होकर महन्त अवैद्यनाथ पहली बार विधानसभा के सदस्य बनें और लगातार 1967, 1969, 1974 और 1977 के विधानसभा चुनाव जीतते रहे। लोकसभा चुनाव में महन्त दिग्विजयनाथ के ब्रह्मलीन होने पर वर्ष 1970 के उपचुनाव में महन्त अवैद्यनाथ को गोरखपुर की जनता ने ससम्मान संसद में भेजा।
इसके बाद लोकसभा के 1989, 1991 के मध्यावधि चुनाव तथा 1996 के लोकसभा चुनाव में महन्त अवैद्यनाथ विजयी होते रहे। लोकसभा में महन्त 1971, 1990 एवं 1991 में भारत सरकार के गृहमंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहें। 1986 की नई शिक्षा नीति में जब त्रिभाष्ाा के अन्तर्गत समाहित संस्कृत विष्ाय को बाहर किया गया तो महन्त अवैद्यनाथ ने विरोध किया था।
1980-81 में मीनाक्षीपुरम तमिलनाडु और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कराए गए धर्म परिवर्तन ने महन्त को अन्दर से व्यथित कर दिया और वह राजनीति से सन्यास लेकर हिन्दू समाज की एकता और सामाजिक समरसता के यज्ञाभियान पर निकल पड़े। महंत अवैद्यनाथ ने धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण की संज्ञा दी और गांव-गांव जाकर छुआछूत के खिलाफ अभियान छेड़ दिया।
22 सितम्बर 1989 को महन्त की अध्यक्षता में दिल्ली में वोट-क्लब पर विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में वे नौ नवम्बर 1989 को श्रीरामजन्म भूमि पर शिलान्यास कार्यक्र म घोçष्ात किया। देशभर में शिलान्यास समारोह के लिए श्रीरामशिला पूजन अभियान प्रारम्भ हुआ। निर्धारित कार्यक्र म के अनुसार प्रस्तावित श्रीरामजन्म भूमि मन्दिर का शिलान्यास समारोह प्रारम्भ हुआ।
शुभ घड़ी के अनुसार 10 नवम्बर को एक बजकर पैतीस मिनट पर वर्तमान गर्भगृह से 192 फीट दूर पूर्व निधारित स्थान पर हवन और भूमि पूजन के पश्चात महन्त ने सांकेतिकरू प से नींव खोदने के बाद शिलान्यास के लिए पहली शिला हिन्दू समाज में तथाकथित अछूत दक्षिणी बिहार के कामेवर प्रसाद चौपाल हरिजन से रखवाकर एक और नये युग की शुरूआत कर दी। इसके पश्चात सरकार के उपेक्षात्मक रवैये से दुखी महन्त ने घाोष्ाणा कर दी कि अब अयोध्या में श्रीरामशिलाएं ही नहीं श्रीराम भक्त भी आएंगे। इस घोष्ाणा के पश्चात हरिद्वार के सन्त सम्मेलन में श्रीरामजन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण की तिथि 30 अक्टूबर 1990 घोçष्ात कर दी गई।
इस सन्दर्भ में महंत ने पांच अक्टूबर 1990 के दिन महाराणा प्रताप इन्टर कालेज के मैदान में श्रीरामभक्तों की ऎतिहासिक रैली आयोजित की। वे 30 अक्टूबर को अयोध्या में प्रस्तावित कार सेवा में भाग लेने के लिए 26 अक्टूबर को दिल्ली से अयोध्या के लिए प्रस्थान किए। गुप्तचर संस्थाओं की सूचना पर सरकार ने महन्त को पनकी कानपुर में ट्रेन रूकवाकर गिरफ्तार कर लिया गया।
दिसम्बर 1990 को महन्त अवैद्यनाथ ने जगद्गुरू रामानुजाचार्य सहित लगभग एक हजार कारसेवकों के साथ अयोध्या कारसेवा के लिए जाते हुए अपनी गिरफ्तारी दी। अयोध्या में श्रीरामजन्म भूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण के लिए जनजागरण अभियान चलाते हुए महन्त ने अनेकों सभाएं की।
27 फरवरी 1991 को गोरखपुर में महाराणा प्रताप इन्टर कालेज के मैदान में एक बार फिर महन्त के आह्वान पर हिन्दू समाज जुटा। सभा में महंत ने आहवान किया कि 11 से 15 मार्च तक देश के सभी प्रान्तों में जिला मुख्यालयों पर हिन्दू जनता प्रदान करे और वष्ाü प्रतिपदा 17 मार्च को सभी हिन्दूओं ने अपने-अपने घारों पर भगवाध्वज फहराया।
30 अक्टूबर 1991 के दिन अयोध्या में शौर्य दिवस का आयोजन हुआ। इस समारोह की अध्यक्षता महन्त अवैद्यनाथ ने किया। तेईस जुलाई 1992 को श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के लिए महन्त अवैद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंहराव से मिला था। इसके बाद 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में आयोजित पांचवी धर्म संसद का आयोजन हुआ। धर्म संसद में छह दिसम्बर 1992 से श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए कारसेवा प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया था।
महन्त अवैद्यनाथ के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन के समय से श्रीगोरक्षपीठ ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थय सेवा का दीप जलाया। वर्षü 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिष्ाद की स्थापना की गई थी। महाराणा प्रताप शिक्षा परिष्ाद ने 1949-50 में महाराणा प्रताप महाविद्यालय स्थापित किया गया था। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वर्ष 1958 में महन्त दिग्विजयनाथ ने इसी विद्यालय को समर्पित कर गोरखपुर विश्वविद्यालय की नींव रखी।
महंत अवैद्यनाथ ने पुन: वर्ष 2005 में जंगल धूसड गोरखपुर में महाराणा प्रताप महाविद्यालय तथा वर्ष 2006 में गोरखपुर महानगर के रामदत्तपुर में महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय की स्थापना की। अवैद्यनाथ शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थय सेवा के क्षेत्र में भी गुरू गोरक्षनाथ चिकित्सालय, गुरू गोरक्षनाथ योग संस्थान तथा महन्त दिग्विजयनाथ आयुर्वेदिक चिकित्सालय की स्थापना एवं उनका उत्तरोत्तर विकास महन्त अवैद्यनाथ की जन-सेवा के क्षेत्र की उल्लेखनीय उपलब्धि है।
गोरक्षपीठाधीवर महन्त अवैद्यनाथ अखिल भारत हिन्दू महासभा से जुडे रहे। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अखिल भारत हिन्दु महासभा का नेतृत्व किया। अनेक बार महंत हिन्दू महासभा के महामंत्री रहें। अवैद्यनाथ का 14 सितम्बर को मंदिर परिसर में नाथ सम्प्रदाय के अनुसार समाधि दी जाएगी।