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मथुरा : गार्ड आफ आनर में निकलते रहे जवानों के आंसू - Sabguru News
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मथुरा : गार्ड आफ आनर में निकलते रहे जवानों के आंसू

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मथुरा : गार्ड आफ आनर में निकलते रहे जवानों के आंसू
funeral of martyr SP City Mukul Dwivedi
funeral of martyr SP City Mukul Dwivedi
funeral of martyr SP City Mukul Dwivedi

मथुरा। उत्तर प्रदेश के मथुरा में पुलिस लाइन के परेड ग्राउण्ड स्थित शहीद स्मारक पर गुरूवार को जवाहर बाग में हुई फायरिंग के दौरान शहीद हुए एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को गमगीन माहौल में अंतिम विदाई दी गई।

एक तरफ पुलिस के जवान गार्ड ऑफ ऑनर दे रहे थे तो दूसरी ओर पुलिसकर्मियों के आंसू निकलते रह़े। गृहसचिव देवाशीष पंडा और डीजीपी जावेद अहमद सहित पुलिस के बड़े अधिकारियों ने उनकी अर्थी को कंधा दिया। उनके शव पर बड़ी संख्या में पुलिस प्रशासन और जनमानस के लोगों द्वारा माल्यार्पण किया गया।

इतनी भारी संख्या में लोगों की भीड़ कि पुलिस प्रशासन को उनको संभाला मुश्किल हो रहा था। शहीद मुकुल द्विवेदी जिंदाबाद के नारों से पूरा परिसर गूंज उठा था। वहां तिल धरने को जगह नहीं थी। लोग कह रहे थे कि किसी बड़े राजनेता और शहीदों की भी अंतिम यात्रा में इतने लोग इकठ्ठे नहीं हुए होंगे।

मुकुल द्विवेदी वास्तव में बहादुर और मथुरा जनपद के लोगों के लिए लोकप्रिय थे। कर्तव्य निष्ठ और अच्छे पुलिस अधिकारियों में उनकी गिनती थी। मथुरा जनपद के लोग उनसे काफी प्रेम करते थे।

छोटे से छोटे लोगों से बातचीत करते थे और उनके दुख दर्द को दूर करने का पूरा प्रयास करते थे। इसीलिए आज पुलिस प्रशासन से ज्यादा स्थानीय लोगों की भीड़ उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद थी। पूरे परिसर शहीद मुकुल द्विवेदी जिंदाबाद के नारे से गूंज रहा था।
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जवाहरबाग ऑपरेशन को लेकर टेंशन में थे मुकुल

ऑपरेशन जवाहरबाग रिहर्सल के दौरान एसपी सिटी मुकुल दिवेदी और एसओ संतोष कुमार यादव शहीद हो गए। इनकी मौत के पीछे सबसे बड़ा कारण इंटेलिजेंस की चूक बताई जा रही है। घटना में शहीद हुए मुकुल द्विवेदी इस ऑपरेशन को लेकर पहले से काफी टेंशन में थे।

बताया जा रहा है कि वह अपने एक ज्योतिषी दोस्त से मिलने गए थे, जिससे उन्होंने ये बातें शेयर की थी। उन्होंने कहा था कि कोर्ट की तलवार उन पर लटक रही है और अधिकारी जवाहर बाग खाली कराने के लिए फोर्स नहीं दे रहे हैं।

वहीं कुछ पुलिस अधिकारियों की मानें तो एसपी सिटी जवाहरबाग खाली कराने के लिए कई बार रणनीति तैयार कर चुके थे, लेकिन हर बार उन्हें रोक दिया जाता था। कभी लखनऊ से प्रेशर पड़ता तो कभी स्थानीय अफसरों का।

डीजीपी रहे थे ताऊ, गम में डूबा गांव

कथित सत्याग्रहियों से मोर्चा लेते शहीद हुए एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को पिता और ताऊ से देश सेवा की प्रेरणा मिली थी। डीजीपी रहे ताऊ के नक्शेकदम पर चल कर वह पीपीएस बने थे। 1998 बैच के पीपीएस मुकुल के ताऊ महेशचन्द्र द्विवेदी प्रदेश के डीजीपी रहे हैं जबकि पिता ने बीडीओ रहते जनता की सेवा की।

शहीद मुकुल का गांव मानी कोठी गम में डूबा है। गांव में रहने वाले उनके माता-पिता गुरुवार देर रात ही मथुरा के लिए रवाना हो गए थे। गांव से सपूत की शहीदी की खबर देर रात ही विधूना थाने की पुलिस लेकर गांव पहुंच गई।

गांव में मुकुल के पिता श्रीचन्द्र, उनकी माता मनोरमा देवी और एक नौकर ही रहते हैं। भाई प्रफुल्ल दुबे दुबई में नौकरी करते हैं। देर रात खबर पहुंचते ही गांव के तमाम लोग शहीद के घर जमा हो गए। सुबह पूरे गांव को अपने सपूत के बारे में पता चल गया।

घर में भले कोई नहीं था लेकिन सुबह कुछ देर के लिए पूरा गांव मुकुल के घर से सामने इकट्ठा हो गया। गम में डूबे पूरे गांव ने नम आखों से उनकी बहादुरी को याद किया, फिलहाल उनके अकेले घर पर पुलिस तैनात कर दी गई है।

मृदुभाषी स्वभाव के थे द्विवेदी

1995 बैच के पीपीएस अधिकारी मुकुल द्विवेदी मूल रूप से औरैया के रहने वाले थे। वह मेरठ, सहारनपुर, मथुरा, आगरा और बरेली में सीओ सिटी रह चुके थे। 7 महीने पहले प्रमोशन के बाद मथुरा में एसपी सिटी के रूप में पहली पोस्टिंग थी। एसपी सिटी का व्यवहार काफी अच्छा था।

जिस जिले में उनकी पोस्टिंग होती थी, वहां वे दोस्तों की लंबी-चैड़ी लिस्ट तैयार कर लेते थे। 5 दिन पहले ही वह पत्नी को मायके छोड़कर आए थे। मुकुल द्विवेदी की शादी साल 2000 में अर्चना से हुई थी। उनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे का नाम कौस्तुभ है।

घर पर एसपी मुकुल के शहीद होने की खबर मिलते ही पूरे परिवार में कोहराम मच गया है। मुकुल द्विवेदी का व्यवहार सभी को उनसे जोड़े रखता था। वारदात का वक्त कुछ भी हो, वो अलर्ट रहते थे और अक्सर पत्रकारों से पहले मौके पर मौजूद मिलते थे।

औरेया के रहने वाले मुकुल द्विवेदी का रुझान पत्रकारिता में भी था। वे अक्सर कहते थे कि पुलिस में ना आता तो पत्रकार होता। यूपी पुलिस की जैसी छवि अमूमन दिखती है, वे उसके विपरीत थे। मृदुभाषी थे और जनता के लिए हमेशा उपलब्ध थे।

पुलिस के काम करने के तरीकों को वो अक्सर बदलना चाहते थे लेकिन वर्तमान व्यवस्था में ये मुमकिन नहीं है इस बात से भी वाकिफ थे। वो अपनी ओर से हर ईमानदार कोशिश करते थे ताकि पीड़ित मदद मिल सके।

साल 2000 में ही उन्होंने पुलिस ज्वाइन की थी। अपने 16 साल के करियर में उन्होंने हमेशा वर्दी का मान रखा। डिप्टी एसपी से एडिश्नल एसपी बने तो भी व्यव्हार नहीं बदला।