पाली। पाली में सेवा समिति की ओर से संचालित वृद्धाश्रम में रविावार को गेर नृत्य का आयोजन किया गया जिसमें शहर व आस पास के गांवों के गेर नर्तकों ने वृद्धाश्रम में जमकर ढोल की थाप पर नृत्य किया।
मातेश्वरी गेर नवयुवक मंडल के मुकेश शर्मा पंडितजी, चेतन प्रजापत, लोकेश देवासी, प्रकाश चौधरी, सुनील लोहार, अर्जुनसिंह, दिनेश कुमावत, सौरभी भाटी, कमलेश भाटी, इंदरराज, पंकज, केसाराम एवं भेरव मित्र मंडल खुटाणी की गेर के सदस्य श्रवणसिंह राजपुरोहित, मेवाराम पटेल, भगवान राम पटेल, रामाराम, भीमाराम, पानाराम, नारायणराम, जोगाराम, डुंगाराम पटेल, सोनाराम भील एवं भांवरी गांव गेर नृृत्य मंडल के सदस्य लालाराम पटेल, गोपाराम पटेल , मंगलाराम पटेल, मुलाराम, सुरेष, मुकेष, ओमप्रकाश, हनुमानराम, कैलाश, लालाराम आदि ने गेर नृत्य किया।
गैर नृत्य के अवसर पर वृद्धजनों के चेहरे पर उत्साह देखते ही बना। इस अवसर जीवन के सौवें वसंत देख रहे अजीतसिंह देवल ने भी गेर नृत्य देख अपने जीवन की यादें ताजा कीं और व्हील चेअर को गैर नर्तकों के घेरे पास रखा जिससे अच्छे से आनंद लिया जा सके।
विधायक ज्ञानचंद पारख ने उनसे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली एवं चर्चा की। इस अवसर पर समाजसेवी घीसुलाल पारख, विजयराज बंब, सुभत मल सिंघवीए राजेंद्र मेहता, हरिलाल दवे डाक्टर आर के गर्ग, डाक्टर प्रतिभा गर्ग, डाक्टर के एम शर्मा, बजरंगलाल हुरकट, आनंदीलाल चतुर्वेदी, विधायक ज्ञानचंद पारख, सभापति महेन्द्र बोहरा, उप सभापति मूलसिंह भाटी, पार्षद त्रिलोक चौधरी, पार्षद जितेन्द्र व्यास, पार्षद अशोक वाफना आदि उपस्थित थे। विधायक ज्ञानचंद पारख के सभी गेर नर्तकों को सम्मानित किया। इस दौरान सैकड़ों महिला पुरुषों ने गेर नृत्य का आनंद लिया।
गेर के बारे में परंपरागत मान्यता
गैर के बारे में शहर के प्रकाश चंद जांगिड ने वताया कि गैर नृत्य राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। इस नृत्य में ग्रामीण एक घेरा बनाकर और स्वांग रचकर रंग बिरंगे वस्त्र धारण कर दोनों हाथों में लाठिया ले कर संगीत के साथ धइडो रे धइडो कहते हुए नृत्य करते हैं। इसमें श्रृंगार व वीर रस के संगीत का चलन है। इस नृत्य में ढोल और चंग की थाप के साथ नृत्य किया जाता है।
गैर के पीछे कारण
ये गैर ग्रामीणों में आपसी भाई चारे को बढ़ावा देने और राजस्थानी संस्कृति को जिन्दा रखने के उदेश्य से निकली जाती है। लोक परम्परा के अंतर्गत मान्यता है कि होलिका दहन के पश्चात ईलोजी एकांकी जीवन जीने को बजबूर हो जाते हैं। चूंकि ईलोजी एक अमर प्रेमी के रूप में जाने जाते हैं और उन्होंने होलिका के प्रेम में पुनः विवाह ना कर होलिका की यादों में जीवन जीना स्वीकार किया था इसलिए लोक परम्परानुसार एक तरह से गैर नृत्य और फ़ाग ईलोजी के सम्मान में भी गया जाता है।
गैर नृत्य राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में किया जाता है। पाली के ग्रामीण इलाकों में फाल्गुन लगते ही गैर नृत्य शुरू हो जाता है। वहीं यह नृत्य डंका पंचमी से भी शुरू होता है। फाल्गुन के पूरे महीने रात में चौहटों पर ढोल और चंग की थाप पर यह नृत्य किया जाता है।
मेवाड़ तथा बाड़मेर क्षेत्र में डांडी गैर नृत्य बहुत होता है और यह इस इलाके में ख़ासा लोकप्रिय है। यहाँ फाग गीत के साथ गालियां भी गाई जाती हैं। इन क्षेत्रों में लकड़ी हाथों में लेकर पुरुष गोल घेरे में जो नृत्य करते है वह गैर नृत्य कहलाता है। गैर नृत्य करने वालों को गैरीया कहा जाता है।
राजस्थान के कुछ ग्रामों में यह नृत्य होली के दूसरे दिन से प्रारम्भ होता है और लगभग पंद्रह दिन तक चलता है। खुले मैदान में होने वाले इस नृत्य में चौधरी, ठाकुर, पटेल, पुरोहित, माली आदि जाति के पुरुष उत्साह के साथ शामिल होते हैं।
वृत्ताकार घेरे में होने वाला यह नृत्य स्वच्छंद एवं अत्यंत स्वाभाविक मुद्राओं में होता है। ढोल बांकिया और थाली आदि वाद्यों के साथ किए जाने वाले गैर नृत्य के साथ भक्ति रस और श्रृंगार गीत भी गाए जाते हैं। गैर नृत्य करने वाले सफ़ेद रंग की धोती, सफ़ेद अंगरखी, सिर पर लाल रंग अथवा केसरिया रंग की पगड़ी बांधते हैं।