आबूरोड। वनवासियों का उमड़ा सैलाब…, परम्परागत वेशभूषा में सज-संवरे वनवासी…, मनपसंद वस्तुओं की खरीद करती महिलाएं…, गोदना गुदवाती नवयौवनाएं…, लोकगीतों की गूंज…, गलबहियां डालकर वालर नृत्य करती युवतियां…, झूलों का लुत्फ उठाते वनवासी…।
कुछ ऐसा ही नजारा बुधवार को सियावा में देखने को मिला। मौका था सियावा में आयोजित वनवासियों के मेले का।
राजस्थान गुजरात की सीमा पर स्थित सियावा गांव में मंगलवार रात से शुरु हुआ मेला बुधवार शाम तक चला। वनवासियों के कुंभ में उनका उत्साह देखते ही बनता था। मेले के चलते पुलिस द्वारा सुरक्षा के माकूल इंतजाम कए गए। जगह-जगह तैनात जवान सुरक्षा की कमान संभाले रहे।
वनवासियों के लिए कुंभ का पर्याय माना जाने वाला सियावा मेला मंगलवार रात से परवान चढ़ना शुरु हुआ। रात गहराते ही पारम्परिक वेशभूषा में सजे-संवरे युवक-युवतियों का मेले में पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। लोकगीतों पर समूहों में थिरकते चल रहे वनवासियों का उत्साह देखते ही बनता था। जैसे-जैसे रात गहराती गई, वैसे-वैसे मेले में वनवासियों के पहुंचने का सिलसिला परवान चढ़ता चला ष्या।
रात भर मेले में युवा वनवासियों की धमचक रही। गोदना गुदवाती युवतियां, समूह में वनवासी गीतों पर थिरकते युवक-युवतियों के समूह आकर्षण का केंद्र रहे। बुधवार शाम तक युवक-युवतियां के गलबहियां डाले नजारे आम रहे। मेले में खाकी की ओर से सुरक्षा के माकूल इंतजाम किए गए। मेले में उदयपुर, कोटड़ा, गुरात के अम्बाजी, डीसा, कोटेश्वर आदि स्थानों से बड़ी संख्या में वनवासियों ने शिरकत की।
-आदिवासी संस्कृति हुई साकार
वनवासी मेले में पारम्परिक वेशभूषा व आभूषणों से सजधज कर पहुंचे। समूह में गीत गाते, थिरकते व झूमते वनवासियों ने समां बांध दिया। वनवासियों में कुंभ मेले का पर्याय माना जाने वाले मेले में युवाओं ने भावी जीवन साथी का चुनाव किया। रात भर चले मेले में वनवासियों ने गणगौर की पूजा-अर्चना की। मेले में विभिन्न प्रकार के आकर्षक झूले, खान-पान की स्टॉलें वनवासियों में आकर्षण का केंद्र रही।
-गोदने में गुदवाया नाम
मेले में मशीन से नाम गोदने वाली स्टॉल पर युवतियों का हुजूम उमड़ा रहा। गोदने के प्रति वनवासी युवतियों का आकर्षण देखते ही बनता था। युवतियों ने अपने हाथों में नाम, पति का नाम व आकर्षक कलाकृतियां गुदवाई।