मथुरा। गिर्राज धाम में दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा के दिन देशी-विदेशी श्रद्धालु भक्त बैंड बाजों की सुर लहरियों के साथ नाचते गाते नजर आए। वही सप्तकौशिय गिर्राज तलहटी में जगह-जगह अन्नकूट व छप्पन भोग लगाए गए।
भारत में पश्चिम की ओर एक शामली-नामक दीप है। उस दीप में पर्वत राज द्रौणाचल उपस्थित हैं। उन्ही द्रौणाचल की पत्नी के गर्भ से श्री गोवर्धन का जन्म हुआ था। देवों के देव गोवर्धन महाराज बाल अवस्था में एक दिन पुलस्त मुनि द्रौणाचल के घर गए वहां पर्वतराज और उनकी पत्नी ने साष्टांग दण्डवत-प्रणाम कर उनका यथोचित सम्मान किया।
उन्होंने अपने पुत्र गोवर्धन को भी ऋषि के चरणों में डालकर आशीर्वाद लेने को कहा और द्वापर युग में इस भूमि पर श्री कृष्ण के रूप में अपनी सोलयों कलाओं सहित भगवान अवतार लेगे। यदि मै यही पर रूक जाउॅ तो मुझे प्रभु की लीलाओं के दर्शन का अवसर प्राप्त हो जाए।
इन विचारोें के मन में आते ही गिर्राज महाराज ने योग बल द्वारा अपने शरीर के बोझ को अधिक बडा लिया जिससे ऋषि की हथेली में दर्द होने लगा उन्होने गिर्राज महाराज को नीचे रख दिया और कहने लगे हे पुत्र में स्नान संध्या बन्दन आदि से निवृत होने जा रहा हूं। और कहने लगे कि उसके बाद में तुम्है ले चलूंगा। जब ऋषि लौटकर कर आये तो गोवर्धन को फिर से हथेली पर रखना चाहा।
लेकिन गोवर्धन महाराज ने कहा कि हे ऋषि अपनी स्वीकृती स्मरण करें। जब आप जहां मुझे जमीन पर रख देगें तो उससे आगे में नही जाउॅगा जिससे ऋषि क्रोधित हो गए और गोवर्धन को श्राप दे दिया कि तेरा शरीर तिल भर रोज घटता रहेगा।
परन्तु द्वापर युग में जब परब्रहम्म प्रभु बृज में अवतार लेगें तब वे स्वयं तेरी पूजा करके तुझे सम्मान देंगें और कलयुग में तेरी महिमा बढेगी। बही द्वापर युग में भादों की अधियारी अष्टमी के दिन सोलहो कलाओं से अवतारित योगी राज भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, तब बृज में इन्द्र की पूजा होती थी।
राक्षसों का वोलवाला था लेकिन योगीराज भगवान श्री कृष्ण की सात साल की उम्र थी तभी भगवान कृष्ण ने देखा कि इस बृज में तो इन्द्र का बोल वाला है और उसी की पूजा होती है।
तो योगीराज कृष्ण ने बृजवासियों को वुलाया और भगवान ने पूछा कि हे बृजवासियौ तुम इस अत्याचारी की पूजा क्यों करते हो तो बृजबासी वोले कि हे कन्हैया इसकी हम बृजबासी पूजा नही करेगे तो हमें दण्ड देगा।
योगीराज कृष्ण बृजबासियों की बात को सुन हसने लगे और कहा कि आज से बृज में गोवर्धन महाराज की पूजा होगी। इस बात को सुन इन्द्र क्रोधित हो गया और बृज में मूसलधार सात रात सात दिन तक मैह वर्षायों। पूरे बृज में चारों तरफ अन्धकार आंधी तूफान चलने लगा लेकिन योगीराज भगवान श्री कृष्ण सात वर्ष की उम्र गोवर्धन पर्वत अपनी किन्नी उंगुली पर धारण कर लिया और इन्द्र ने सात रात दिन मैह वर्षायौ और छींटा तक नाये बृज में आयौ।
तभी इन्द्र ने भगवान कृष्ण के शरणागत आ गया और योगीराज भगवान श्री कृष्ण ने श्री गोवर्धन महाराज की बृजबासियों के साथ पूजा की और सवालाख मन समिग्री पकवान आदि ब्यंजनों से गिर्राज प्रभु का भोग लगायौ।
तभी से दीपावली के वाद वृज में देश ही नही वल्कि बिदेशी भक्त बृज में आकर गिर्राज महाराज की सप्तकौशिय परिक्रमा गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट व छप्पन भोग गिर्राज प्रभु को अरोगते है। तभी से गोवर्धन पूजा की परम्परा चली आ रही है।