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भाषा के दलदलीय वातावरण में संघ ने रखा हिन्दी का आग्रह : मृदुला - Sabguru News
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भाषा के दलदलीय वातावरण में संघ ने रखा हिन्दी का आग्रह : मृदुला

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भाषा के दलदलीय वातावरण में संघ ने रखा हिन्दी का आग्रह : मृदुला
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भोपाल। देश में जब हिन्दी भाषा को लेकर चहुंओर दलदलीय वातावरण था और संपूर्ण देश में हिन्दी की स्वीकारता को लेकर तमाम प्रकार की चर्चाएं थीं, उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी अहिन्दी भाषी क्षेत्र से शुरुआत करते हुए हिन्दी पर विशेष जोर दिया था।

निश्चिततौर पर यह संघ के हिन्दी प्रेम को दर्शाता है। यह कहना है गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा का। उन्होंने यह बात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में साहित्यकार देवेन्द्र दीपक की पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दी के विमोचन के मौके पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहीं।

डॉ. सिन्हा ने कहा कि यह संघ की परिपाटी है कि वह आरंभ से ही अपने स्वयंसेवकों के बीच भले ही वह फिर किसी भी भाषा के हों, उनसे हिन्दी में बातचीत करने का आग्रह करता है। उन्होंने कहा कि आज तक संघ के हिन्दी प्रेम पर कभी इस दृष्टि से सोचा ही नहीं गया, जैसा कि डॉ. दीपक ने इस पुस्तक के माध्यम से विचार रखने का प्रयत्न किया है।

संघ ने हिन्दी को न केवल भारत में व्यापक बनाने के लिए प्रयत्न किए हैं बल्कि विश्व भाषा बनाए जाने के लिए भी अपने आरंभिक दौर से प्रयास निरंतर किए हैं और वह अभी भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस विषय पर एक उपन्यास तथा मोटी पुस्तक भी लिखी जा सकती थी लेकिन देवेंद्र दीपक जी ने बत्तीस पृष्ठों की इस पुस्तक में सागर में गागर भरने का काम किया है।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि परमपूज्यनीय गुरूजी ने मार्च 1950 में कहा था कि हिन्दी को विश्व की भाषा बनाना होगा, इसीलिए एक ऐसा संगठन जिसका जन्म गैर हिन्दी राज्य में हुआ, जिसके अधिकतर पदाधिकारी गैर हिन्दी भाषी हैं। लेकिन उनकी सारी गतिविधियां हिन्दी में ही संचालित होती हैं।

अंग्रेजी के कठिन से कठिन शब्दों के स्थान पर हिन्दी के सरल ओर सहज शब्दों का प्रयोग किया जाता है, निश्चित ही संघ हिन्दी की जड़ों को जमाने में नींव के पत्थर की तरह कार्य कर रहा है। हिन्दी को विश्व भाषा बनाने के लिए किसी अभियान की आवश्यकता नहीं है, इसे हम सभी को अपने दैनिक जीवन में लाने की जरूरत है।

उन्होंने अपने जीवन से जुड़े संस्मरण में कहा कि वे स्वयं अहिन्दी भाषी हैं ओर उन्होंने हिन्दी संघ में आकर ही सीखी। और आज मैं हिन्दी लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों का संपादन भी कर सकता हूं।

अपनी पुस्तक की भूमिका के बारे में डॉ देवेन्द्र दीपक ने बताया कि इसकी प्रेरणा उन्हें पं बनारसीदास चतुर्वेदी के दैनिक हिन्दुस्तान में छपे एक लेख से मिली। जिसमें हिन्दी भाषा में योगदान पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को छोड़कर समस्त संस्थाओं का वर्णन था।

जब उन्होंने पं बनारसी दास से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि राजनीतिक कारणों से इसकी ओर ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन हिन्दी भाषा की समृद्धि में संघ के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

दूसरी बार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में जब मेरे द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दी पर लेख दिया गया लेकिन उसे आयोजकों ने यह कह कर नहीं छापा कि यदि हम इसे छापेंगे तो हमें सरकार की ओर से मिलने वाला आर्थिक अनुदान बंद हो जाएगा।

इसीलिए राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही कारणों से संघ के हिन्दी में योगदान की चर्चा अभी तक नहीं की गई। तब मैंने यह निश्चय किया कि मैं इस पर एक पुस्तक लिखूं। मेरा सौभाग्य है कि आज इस प्रकार के राजनैतिक और आर्थिक दोंनो प्रकार के कारण मेरे सामने नहीं है और यह पुस्तक प्रकाशित होकर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत हो सकी है।