सबगुरु न्यूज़-सिरोही। वेराविलपुर गांव में नेशनल हाईवे 62 से पिपलेश्वर महादेव की ओर जाने वाले नए तरमीम मार्ग पर शिवगंज के राजस्व विभाग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान सरकार के नियमों के विपरीत जाकर अपने स्तर पर ही गोचर भूमि की किस्म बदलकर उसे रास्ते में तब्दील कर दिया।
एक तरफ पूरा देश जहाँ गोचर और गोवंशों को बचाने की बात कर रहा है वहां सिरोही के अधिकारियों की ये कार्रवाई शक के दायरे में नजर आ रही है। विभागीय सूत्रो के अनुसार् प्रशासन ने इस मामले में सिर्फ तरमीम निरस्त करके जमाबंदी को फिर से गोचर किया, प्रकरण में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है।
-एमपी-एमएलए संस्तुति नही करते तो मामला नहीं खुलता
नेशनल हाईवे संख्या 62 से पिपलेश्वर महादेव जाने वाली कथित नियम विरुद्ध तरमीम की गयी भूमि पर सड़क बनाने के लिए नरेगा, डबटेल के अलावा गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी और संसद देवजी पटेल ने एमएलए लेड से राशि दिए जाने की संस्तुति की दी गयी थी।
जब ये पत्रावली जिला प्रशासन के पास गयी और उन्होंने एमपी एमएलए लेड के तहत किये जाने वाले कार्यों की संस्तुति से पहले जब इस जमीन के दस्तावेजों को टटोला तो ये पूरा प्रकरण बाहर आ गया कि किस तरह शिवगंज के प्रशासनिक अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान सरकार के आदेशों के विपरीत जाकर गोचर को ही रास्ते के लिए तरमीम कर दिया।
इस पर भी जिला प्रशासन ने ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति करने की बजाय सिर्फ इस मार्ग की तरमीम और ख़ारिज दाखिल को निरस्त करके अपने कर्तव्यों की इति श्री कर ली। अगर गाहे-बगाहे सांसद और विधायक निधि से यहाँ सड़क बनाने की संस्तुति नहीं की गयी होती तो राजस्व रिकॉर्ड में नियमों के विपरीत जाकर की गयी इतनी बड़ी अनियमितता सामने नहीं आती।
-दिसम्बर में तरमीम हुई जनवरी में पक्की सड़क की संस्तुति
जिले में जिस तेजी से वेरविलपुर गांव की पिपलेश्वर महादेव की ओर् जाने वाली सड़क को तरमीम और दाखिल ख़ारिज के बाद सीसी रोड में बदलने की कार्रवाई के लिए नरेगा, डवटेल और एमएलए-एमपी लेड से सीसी रोड बनाने के प्रस्ताव भेजे गए थे वैसे शायद ही किसी सड़क के लिए भेजे गए होंगे।
ये स्थिति तब है जब पिपलेश्वर महादेव जाने के लिए वेराविलपुर गांव से पहले ही एक रास्ता जा रहा है। यदि इन योजनाओं के तहत कुछ काम करवाना भी था तो उस मार्ग पर करवाते जिसका लाभ पूरे गांव को मिलता। वैसे भी एमपी-एमएलए लेड में मंदिर और अबादीविहीन क्षेत्रों में काम करवाने का प्रावधान नहीं है।
इसी कारण जब प्रशासन ने नियमों के तहत इस मार्ग की पूरी पत्रावली और रिकॉर्ड खंगाला तो पता चला कि 21 दिसम्बर 2016 को ही इस जमीन को नियमों से परे जाकर गोचर की किस्म परिवर्तित करके तरमीम किया गया और इस मार्ग पर आबादी भी कम है।इस प्रकरण में बात के लिए एमपी ने फ़ोन नही उठाया और उनके पीए ने बात करवानेके कहकर फ़ोन रख दिया।
वहीँ गोपालन मंत्री के कार्यालय से जानकारी मिली की लोगों की मांग पर mla लेड की राशी जारी करने की संस्तुति की जाती है ये नियमों के तहत आता है तभी प्रशासन इसे स्वीकृत करता है। इस प्रकरण में नियमानुसार जाँच करने पर mla लेड के काबिल नहीं माना और स्वीकृति नहीं दी गयी। एक तरह से देखा जाये तो इस प्रकरण में सांसद और विधायक सड़क बनाने के लिए संस्तुति नहीं देते तो शायद इतनी बड़ी गड़बड़ी कागजों में ही कहीं दफ़न होकर रह जाती।
लेकिन, जाँच का बिंदु ये है कि एक अबादिविहीन इलाके का रास्ता तरमीम करने के पीछे प्रशासनिक अधिकारियों की मंशा जनहित थी या जनता के धन से किसी को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाना। प्रशासन ने इस प्रकरण में सिर्फ तरमीम निरस्त करके इस नियमविरुद्ध काम में शामिल अधिकारियों को बचाने के लिए राज्य सरकार से शिकायत करने की बजाय राजस्व मंडल से मार्गदर्शन मांग कर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली है।
-यूँ किया नियमों का दुरूपयोग
नवंबर 2016 में राज्य सरकार का एक आदेश आया था, जिसके तहत राजकीय/सिवायचक भूमि से कोई रास्ता काम में आ रहा है तो उसे तरमीम करने के निर्देश थे। इस नियम की आड़ में जिले के कई अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत वन विभाग और गोचर की भूमि की जमीन से निकल रहे रस्ते को भी तरमीम कर दिया। गोचर / वन भूमि की किस्म बदल दी गयी।
जबकि इसका अधिकार किसी अधिकारी को नहीं है। वेराविलपुर गांव में एन एच 62 से पिपलेश्वर महादेव जाने वाले नए रास्ते पर सीसी रोड बनाने की पत्रावली की जांच के दौरान जब ये बात सामने आयी कि गोचर और वन भूमि को भी नियमो के विपरीत तरमीम कर दी है तो जिला प्रशासन के पांव से जमीन सरक गयी। उन्होंने उन नियमों के तहत की गयी तरमीम और किस्म परिवर्तन की जाँच कार्रवाई।
इसमें ऐसे और भी मामले निकले जिसमें नियमों से परे जाकर गोचर या वन विभाग की भूमि की किस्म बदलकर तरमीम कर दिया गया था। जिला प्रशासन ने ऐसा करने वाले अधिकारियों को नोटिस नहीं देकर सीधे ही तरमीम और किस्म परिवर्तन को निरस्त कर दिया और ऐसा करने वाले अधिकारियों को बचा लिया।
लेकिन ये तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को तोड़ उसकी अवमानना करके अपनी नौकरी दांव पर लगाने का काम कोई अधिकारी जनहित में तो शायद ही करता होगा, ऐसे में प्रशासनिक अधिकारी या सरकर ऐसे प्रकरण में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करती तो इस नियम विरुद्ध तरमीम की मंशा उजागर हो सकती थी।
-सिर्फ दस्तावेजी इंद्राज बदले हैं मौके पर यथास्थिति…
नवम्बर में आदेश आये थे कि राजकीय/सिवायचक भूमि पर कोई मार्ग हो तो उसे तरमीम क्र दिया जाये। इसमें गोचर भूमि की तरमीम का निर्देश नहीं था। मामला सामने आया तो तरमीम को निरस्त करके इस गोचर या वन भूमि को तरमीम किये जाने के सम्बन्ध में राजस्व विभाग से मार्गदर्शन माँगा है। इन प्रकरणों में सिर्फ दिसम्बर में किये गए दस्तावेजी फेरबदलों को ही निरस्त किया है, मौके पर इसके इस्तेमाल आदि से कोई छेड़छाड़ नहीं की है वो पूर्ववत ही हैं।
कुलराज मीना
एसडीएम, शिवगंज।