पाली। नए परिधान धारण कर गीत गाती माताएं और बहने, हाथ में सजी पूजा की थाली और उसमें सजे व्यंजन। शीतला माता मंदिर की ओर बढते कदम। कुछ ऐसा ही नजारा गुरुवार को पाली शहर के हर गलि और मोहल्ले में नजर आया।
आरोग्य प्रदान करने वाली देवी शीतला माता को सप्तमी के दिन ठंडे भोजन का भोग लगाए जाने की परंपरा बनी हुई है। पाली में ठंडा भोजन षष्टी के दिन बनाए जाने व सप्तमी को उसे खाए जाने की परम्परा है। इसी के चलते एक दिन पहले घरों से विभिन्न व्यंजनों के बनाने की महक से मानों पूरा शहर ही सुगंधित था।
शीतला पूता में दही-चावल से बने ओलिए का भी विषेष महत्व है। कहा जाता है कि ‘दही में शक्कर अण चावल घोलया, लो बण गण टकाटक ओलिया।’ आदर्श नगर, रामदेव रोड स्थित शीतला माता मंदिर तथा खोडि़या बालाजी मन्दिर पर तो मेले जैसा माहौल सुबह से नजर आने लगा। कुछ महिलाओं ने तो गलीं में भी घर के बाहर एकत्रित होकर पूजा की।
शीतला सप्तमी को आदर्श नगर में मेला भरता है। इस मेले में विभिन्न समाजों की गेर भाग लेती हैं जिसमें लोक संस्कृति साकार होती है। शहरवासी इस मेले में बढ़कर भाग लेते हैं।
खोडि़या बालाजी मंदिर के प्रेमशंकर त्रिवेदी ने वताया कि शीतला सप्तमी का यह पर्व होली के पर्व के बाद में सप्तमी को आता है इस दिन माताएं शीतला का पूजन अलसुबह से करना शुरु कर देती हैं। इस दिन माताजी की ठंडे भोजन से पूजा की जाती हैं। माताजी की पूजा और उन्हें ठंडे भोजन का भोग चढ़ाने के बाद ही घरों में भोजन किया जाता है। इस मौके पर बने भोजन को तीन चार दिन खाया जा सकता है।
ममता प्रकाश शर्मा ने वताया है कि सीतला सप्तमी पर्व देश में लगभग सभी स्थानों में सनातन धर्म प्रेमी मनाते है। यह पर्व चेचक जैसी बीमारी और चिकन पॉक्स यानि आम भाषा में अचपड़ा को ठीक करने और मौसम के बदलाव से उत्पन्न होने वाली मौसमी बीमारियों और हानिकारक वैक्टीरिया से बचने के लिए मनाया जाता हे।
सनातन काल में जब कोई डिग्री धारी डॉक्टर नहीं होता था और वैद्य हकीम सब शाही परिवारों की देख रेख करते थे ऐसे में आम लोगों का इलाज कौन करे। ऐसे में शीतला सप्तमी जैसे पर्व एक विश्वास के साथ मनाए जाने लगे।
शीतला सप्तमी चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। इस अवसर पर माताएं मां शीतला की पूजा अर्चना कर उन्हें शीतल भोजन का भोग लगाती हैं। घरों में महिलाएं एक दिन पहले भोजन छाछ मक्की की घाट और पचकुटा साकळिया आदि से खाने की वस्तुएं तैयार करती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि माता शांत रहे और कोई चेचक जैसी महामारी ना फैले और उसके परिवार के बाल बच्चे इस मौसमी बीमारी से बचे रहें।
क्या है लोक परम्परा
लोक परम्परानुसार ग्रामीण अंचल में गांव के मध्य एक चबूतरा होता है, वहां पत्थर के कुछ टुकड़ों को रखकर उन पत्थरो में शीतल माता की छवि को प्रतीक मान कर मोळि काजल कुमकुम व बासौड़ा से पूजा की जाती है। यह पूजा सनातन धर्म के सिद्धांत कण कण में भगवान् है का प्रतिपादन करती है और उससे पहले होली के बाद चैत्र मास की एकम से आठम तक महिलाएं शीतला माता के भजन व गीत गाती हैं। रंग गुलाल लगाकर एक दूसरे की सुख समृद्धि की कामना की कामना मां शीतला माता से करती है।
लगभग सात दिन किसी न किसी गांव में मेला लगा रहता है जो राजस्थानी परम्परा और लोक संस्कृति का प्रतीक हे। इस दौरान अलग अलग जातियों द्वारा अपनी अपनी गैरे भी निकाली जाती है।
पाली में शीतला पूजा
पाली में शीतला सप्तमी को आदर्शनगर स्तिथ मंदिर में रात्रि 3 बजे से लेकर साम तक महिलाएं माता की पूजा करती हैं, दिन भर मेले सा माहोल रहता है और शहर के सभी चाट पकोड़ी आइस्क्रीम के ठेले उस दिन वहीं रहते हैं। मेले का बच्चे भरपूर आंनद लेते है। मुख्य मेला नगर परिषद द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें सभी समाज भाग लेते है।
चौधरी, घांची, बंजारा, पटेल, सीरवी, प्रजापत, मेघवाल, हीरागर, माली आदि सभी जातियों की गेरें निकाली जाती हैं। डीजे और लोक गीतों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इसमें जांगिड़ सोनी मालवीय समाज व अन्य सामाजिक संस्थाएं जल सेवा मिल्क रोज व चिकित्सा सेवाएं देकर मेले में सहयोग प्रदान करते हैं और मेले को सफल बनाने के साथ साथ अपनी समाज की उपस्तिथि भी दर्ज करवाते हैं।