नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असम में दो साल पहले रहस्यमयी हालात में गायब हुए 300 करोड़ रुपये के सोने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई आगामी 6 मई को करेगी।
खुफिया विभाग के एक पूर्व अधिकारी मनोज कौशल ने इस मामले में शीर्ष अदालत में एक याचिक दायर की थी। याचिका में इस खजाने का पता लगाने और इसमें शामिल लोगों पर कार्रवाई की मांग भी की गई है। अदालत मामले की अगली सुनवाई आगामी 6 मई को करेगी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि वो करीब दो साल पहले असम में तैनात था तो उसको पता चला कि बोडो उग्रवादी अक्सर वहां के व्यापारियों से रुपयों की वसूली करते रहे हैं। उग्रवादियों को देने के लिए 2014 में असम टी ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मृदुल भट्टाचार्य ने 300 करोड़ रुपए जमा किए थे।
उग्रवादियों की मांग के मुताबिक 300 करोड़ के सोने के साथ कुछ एके-47 राइफल वगैरह असम के ही एक चाय के बागान में गाड़ कर छिपा दिया गया था। ताकि समय आने पर यह सोना बोडो उग्रवादियों को दिया जा सके।
इसकी जानकारी सिर्फ मृदुल भट्टाचार्य को थी लेकिन मृदुल भट्टाचार्य और उनकी पत्नी रीता को 2012 में ही तिनसुकिया के उनके बंगले में जला कर मार दिया गया। याचिकाकर्ता मनोज कौशल ने बताया कि भट्टाचार्य हत्याकांड की जांच के दौरान उन्हें वो जगह भी मिल गई, जहां पर बोडो उग्रवादियों के लिए 300 करोड़ रुपए का सोना छिपाया गया था।
उन्होंने तत्काल यह सूचना सेना अधिकारियों को दी। इसके बाद सेना अधिकारियों ने तय किया कि वो 1 जून 2014 को उस जगह से खुदाई कर सोना निकाल लेंगे। मगर कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के चलते यह सूचना लीक हो गई और कुछ अज्ञात लोगों ने 30 मई की रात को ही उस जगह पर खुदाई कर 300 करोड़ रुपए का सोना और हथियार चुरा लिए।
मनोज कौशल ने इस मामले में शामिल अधिकारियों की जांच व उन पर कार्रवाई के लिए कई अधिकारियों को शिकायत की, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि केंद्र सरकार को इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराने के निर्देश दिया जाएं और सोने की जानकारी को लीक कराने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही सोना निकालने वाले लोगों और गायब सोने का पता लगाकर उसे भारत सरकार के खजाने में जमा कराया जाए।