श्रावण शुक्ला सप्तमी को तुलसी दास जी का जन्मदिन माना जाता है। तुला लग्न और मूल नक्षत्र में जन्म हुआ तुलसी दास जी का। ज्योतिष शास्त्र में मूल नक्षत्र को गंड मूल नक्षत्र माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस नक्षत्र में जन्मे बालक अपने माता-पिता व कुल तथा अपने शरीर का नाश करने वाला माना गया है।
ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन मान्यता के अनुसार ऐसे बालक का सत्ताईस दिन माता पिता को मुहं नहीं देखना चाहिए इसलिए उनके माता-पिता ने उन्हें पैदा होते ही त्याग दिया। महात्मा नर हरिदास ने उनका पालन पोषण किया तथा तुलसी दास जी को वेद दर्शन आदि की शिक्षा दी।
वे मृत्यु के बाद रामचरित मानस ग्रंथ लिखने के कारण आज तक प्रसिद्ध है। ज्योतिष शास्त्र की मान्यता कुछ भी हो लेकिन तुलसी दास जी अमर हो गए।
तुलसीदास के जीवन की कुछ घटनाएं एवं तिथियां भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। कवि के जीवन-वृत्त और महिमामय व्यक्तित्व पर उनसे प्रकाश पड़ता है।
मूल गोसाईं चरित के अनुसार तुलसीदास का यज्ञोपवीत माघ शुक्ला पंचमी सं० १५६१ में हुआ। कवि के माता-पिता की मृत्यु कवि के बाल्यकाल में ही हो गई थी।
भक्त शिरोमणि तुलसीदास को अपने आराध्य के दर्शन भी हुए थे। उनके जीवन के वे सर्वोत्तम और महत्तम क्षण रहे होंगे। लोक-श्रुतियों के अनुसार तुलसीदास को आराध्य के दर्शन चित्रकूट में हुए थे। आराध्य युगल राम – लक्ष्मण को उन्होंने तिलक भी लगाया था।
चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर ।।
मूल गोसाईं चरित के अनुसार कवि के जीवन की वह पवित्रतम तिथि माघ अमावस्या (बुधवार), सं० १६०७ को बताया गया है।
सुखद अमावस मौनिया, बुध सोरह सै सात ।
जा बैठे तिसु घाट पै, विरही होतहि प्रात ।।
आजीवन काशी में भगवान विश्वनाथ का राम कथा का सुधापान कराते-कराते असी गंग के तीर पर सं० १६८० की श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन तुलसीदास पांच भौतिक शरीर का परित्याग कर शाश्वत यशःशरीर में प्रवेश कर गए।