सबगुरु न्यूज, सिरोही। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार की छवि सुधारने और जनता को अच्छे दिन का अहसास करवाने की जुबानी कोशिश तो कर रही हैं, लेकिन उनकी मेहरबानी पर सिरोही मे बत्तियां लगाकर घूम रहे जनप्रतिनिधि और अधिकारी इससे कोई सरोकार नहीं रखते।
यही कारण है कि सत्ता में आए डेढ साल हो गए अभी तक लोगों को यह विश्वास नही हो पाया है कि आओ साथ चले के नारे में मुख्यमंत्री में मुख्यमंत्री जनता को साथ लेकर चलने की बात कर रही थी कि भाजपा के नेताओं, अधिकारियों और माफिया के गठजोड को साथ लेकर चलने की बात कर रही थी। हालात ऐसे हैं कि खुद भाजपाई यह भी कहने लगे हैं कि यदि वाकई सिरोही भी कार्टूनिस्ट की नजर में होता तो यहां पर वैसे कार्टूनों की भरमार होती जिस तरह नब्बे के दशक में कांग्रेस को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में नजर आ रहे थे। कार्टूनिस्ट यहां पर भी प्रभारी मंत्री, भाजपा जिला कार्यकारिणी और जिला प्रशासन को सरकार की छवि और भाजपा को जमीदोज करते हुए दिखाते जिस तरह उस समय कांग्रेस के नेताओं को कांग्रेस को जमीदोज करते हुए दिखाया जाता था।
डेढ साल में सिरोही को सत्ता पक्ष के नेताओं यहां तैनात अधिकारियों और भू माफिया व अन्य अपराधियों ने बदहाल किया है वैसे हालात शायद ही पिछले दो दशकों में कभी बने हों। कमजोर प्रभारी मंत्री के कारण अधिकारियों और माफिया में इस बात का डर नहीं है कि कानून सम्मत क्या है और क्या नहीं। प्रभारी मंत्री की कमजोरी और जिला प्रशासन की लचरता का ही परिणाम रहा कि सिरोही के लोगों में यह विश्वास जम गया है कि सरकार गूंगी, बहरी और अत्याचारी है। ऐसे में जन आंदोलनों के सिवाय अपने अधिकारों को पाने का कोई रास्ता नहीं है।
सिरोही में प्रभारी मंत्री, भाजपा के जिलाध्यक्ष व पदाधिकारी, जिला प्रशासन की घटिया कार्यप्रणाली को समझने को सबसे बेहतर उदाहरण जा यहां का जल आंदोलन। इसके जनक यह तीनों ही थे। जो समस्याएं आंदोलन के बाद खतम हुई, उसे समय रहते ही दुरुस्त किया जा सकता था, लेकिन इन लोगों ने कोई सकारात्मक प्रयास नहंी किया। शर्मनाक स्थिति तो यह थी कि जिस आंदोलन को लेकर जयपुर गंभीर था उसे लेकर प्रभारी मंत्री, भाजपा जिला कार्यकारिणी और जिला प्रशासन बिल्कुल गंभीर नहीं था। जयपुर के निर्देशों के बाद भी यह लोग इस प्रयास में थे कि समस्या के निराकरण के बिना ही धरने को कुचल दिया जाए। स्थिति यह थी कि जनता की ओर से ठुकराए हुए आत्मसम्मान को गिरवी रख चुके कुछ चापलूस नेता तो गुलामी की छाया में इस तरह से जकडे हुए थे कि इसके लिए मीडिया पर भी कठोर कदम उठाने की हास्यास्पद दलील देते नजर आए।
सरकार के खिलाफ जनता का आक्रोश तब और बढ गया जब आंदोलन में अनशन पर बैठे एक युवक को प्रशासन ने अपने स्थानीय आकाओं को खुश करने और सीट् के लालच के लिए शांति भंग करने के आरोप में चार दिन तक जमानत नहीं होने दी और इस मामले में जब आक्रोश बढता दिखा तो जमानत होने दी भी तो तस्दीक शुदा। हालात इतने विकट होने के बाद भी इन अधिकारियों को जिले के माथे पर थोपने का पूरा श्रेय यहां की जनता प्रभारी मंत्री और जिला कार्यकारिणी को दे रही है।
सरकार जमीनों को उद्योगों के लिए सुरक्षित रखने के लिए जिला कलक्टरों केा आडे हाथों ले रही है यहां पर भाजपा के जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी इन सरकारी जमीनों को हडपने और खुर्द-बुर्द करने के खेल में लिप्त नजर आ रहे हैं। सिरोही नगर परिषद में तो भाजपा बोर्ड सरकारी जमीनों को ऐसा दुश्मन बना हुआ है कि सिरोही के दोनों छोर पर हडपने के लिए स्थित किसी जमीन को वो छोडना नहीं चाहता। एक एक आदमी के नाम से अतिक्रमण नियमन के कई-कई पटटे जारी कर दिए गए हैं। प्रभारी मंत्री की जानकारी में होने पर भी उनका मौन इन सब भ्रष्टाचारों, अनियमितताओं और अनितियों को सरकार की मंशा होने का संदेश जनता के बीच पहुंचा रहा है।
सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि जिस जिला प्रशासन, भाजपा जिला कार्यकारिणी और सरकार के प्रतिनिधि ने जिले को बदहाली में धकेल दिया है वहीं गुरुवार को जयपुर में जिले के हालातों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। सरकार के प्रतिनिधि प्रभारी मंत्री और भाजपा जिला कार्यकारिणी के प्रतिनिधि भाजपा जिलाध्यक्ष वहां पर जिला कलक्टर पर प्रशासनिक ढांचे के लचर होने का आरोप भी नहीं लगा सकते क्योंकि यदि जयपुर में मुख्यमंत्री के सामने यह राज खुला कि अतिक्रमण हटाने की बजाय सिरोही की हजारों हैक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण करने, पानी की समस्या को दूर करने की बजाय पानी की राह में आई बाधाओं को नहीं हटाने का दबाव बनाने, सत्ता को जनता के हित का औजार बनाने की बजाय खुद के लिए हथियार लाइसेंस लेने का माध्यम बनाने, अपराधियों को पकडने की बजाय सत्ता का उपयोग अपने अधिकारों के लिए लडने वालों को शांति भंग में गिरफतार करके चार दिनों तक जमानत नहंी देकर सरकार के प्रति आक्रोश पैदा करने, गोयली चैराहे पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर दलित महिलाओं के वस्त्र फाडकर लहूलुहान करने और भूमाफियाओं के अतिक्रमण ध्वस्त करने की बजाय पटटे देकर शराब पीने वाले अधिकारियेां को संरक्षण देने का जिला प्रशासन व जिला पुलिस पर दबाव डालने वाले कोई और नहंी बल्कि सरकार और पार्टी के ही प्रतिनिधि हैं तो इनकी कुर्सियां भी हिल सकती हैं।
सिरोही मे जल आंदोलन, शिवगंज में भाजपा के पदाधिकारी की ओर से धरना और टावर पर चढने की घटना, पिण्डवाडा में सरकारी भूमियों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए कांग्रेस का धरना और नौ अगस्त को सिरोही में प्रस्तावित धरना सिरोही जिले में सरकार के प्रतिनिधि और भाजपा के जिले के प्रतिनिधि की ही देन है। यदि इन लोगों ने सत्ता, प्रशासन और पुलिस का उपयोग निजी हितों की जगह जनहित साधने में किया होता तो आज सरकार की जिले में और बेहतर छवि होती और भाजपाई मरणासन्न कांग्रेस में शामिल नहीं होते।