मुंबई। रूपहले पर्दे पर ईद जैसे पवित्र त्योहार से जुड़े गीत और दृश्य कभी फिल्म के मुख्य आकर्षण हुआ करते थे लेकिन अब तो इस त्योहार की खूशबू फिल्मों में कम ही देखने को मिलती है।
राजा नवाथे की वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म सोहनी महिवाल एक ऐसी ही फिल्म थी जिसमें मशहूर गीत ईद का दिन तेरे बिन फीका फिल्माया गया था। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की सुमधुर आवाज में रचे बसे ईद के यह गीत आज भी लोकप्रिय है।
सत्तर के दशक में कई फिल्मों में ईद पर आधारित गीत और ²श्य रखे गए। इनमें अमिताभ बच्चन और प्राण पर फिल्माया गीत यारी है इमान मेरा यार मेरी जिंदगी आज भी शिद्दत के साथ सुना जाता है। इसी तरह वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म कुर्बानी में भी इस पर्व से जुड़ा तुझपे कुर्बां मेरी जान गीत दर्शकों को बहुत पसंद आया था।
वर्ष 1982 में प्रदर्शित पिल्म तीसरी आंख में लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के संगीत निर्देशन में मोहमद रफी की दिलकश आवाज में रचा बसा गीत ईद के दिन गले मिल ले राजा विशेष रूप से इस अवसर पर सुनने को मिलता है। वैसे भी अन्य दिनों भी जब यह गीत फिजाओं में गूंजता है तो यह श्रोताओं को अभिभूत कर देता है।
निर्माता निर्देशक सावन कुमार अक्सर अपनी फिल्मों में ईद से जुड़े ²श्य और गीत रखते आए हैं। इनमें वर्ष 1992 में सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘सनम बेवफा’ खास तौर पर उल्लेखनीय है। फिल्म का यह गीत बिना ईद के ही चांद का दीदार हो गया श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ था। सावन कुमार ने सलमा पे दिल आ गया, सनम हरजाई जैसी पिल्मों में भी ईद पर आधारित गीत और ²श्य पेश किए।
वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म हीरो हिंदुस्तानी में भी ईद पर आधारित एक गीत फिल्माया गया था। अरशद वारसी अभिनीत इस फिल्म में सोनू निगम और अलका याज्ञनिक की दिलकश आवाज में गाया हुआ यह गीत चांद नजर आ गया ईद गीतों में अपना विशिष्ट मुकाम रखता है।
इसी तरह वर्ष 2002 में प्रदर्शित पिल्म तुमको ना भूल पाएंगे में भी ईद का गीत फिल्माया गया था। सोनू निगम की दिलकश आवाज में प्रस्तुत यह गीत मुबारक ईद मुबारक श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ थे। इस गीत के बिना ईद के गीतों की कल्पना ही नही की जा सकती है।
इसी तरह समय समय पर ईद पर आधारित गीत फिल्मों में पेश किए गए। इन गीतों में जिसे तू ना मिला उसे कुछ ना मिला, ईद का दिन है, नूरे खुदा और अल्लाह के बंदे हंस दे प्रमुख है। कैसी खुशी लेकर आया चांद ईद का मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का जैसे गीत सत्तर-अस्सी के दशक तक सुनाई पड़ते थे लेकिन ऐसे गीत अब गीतकारों की कलम से नहीं निकल पा रहे हैं।