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GST Bill : first step in making India an unified market
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GST : सबका एक साथ पहला कदम

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GST : सबका एक साथ पहला कदम
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GST Bill : first step in making India an unified market

वस्तु एवं सेवाकराधान के लिए राज्य सभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित संविधान संशोधित विधेयक-जिस पर दो वर्ष से संशय के बादल छाए हुए थे, मोदी सरकार की सबके साथ सबका विकास की दिशा में बढ़ा यह महत्वपूर्ण कदम है।

हर कदम पर मोदी सरकार के विरोध पर प्रतिबद्ध कांग्रेस-जो इस संशोधन विधेयक की मूल प्रस्तावक थी-के राजी होने में जहां वित मंत्री द्वारा उनके संशयों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

वहीं इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मीडिया-दृश्य, पाठ्य एवं सोशल-के माध्यम से इस आवश्यक विधेयक के मार्ग में कांग्रेस के बाधक बनने को हास्यास्पद करार दिये जाने जनदबाव को कमतर नहीं आंका जा सकता।

यदि यह दबाव नहीं होता तो मोदी सरकार के समावेशी आचरण और राज्य सरकारों की संशोधन के प्रति अनुकूलता निरर्थक साबित होती। मीडिया की इस सार्थक भूमिका के लिए साधुवाद देते हुए, उम्मीद यह करनी चाहिए कि सबके साथ से सबके लिए जो दो मुद्दे लंबित चल रहे हैं, उनमें यही भूमिका रहेगी।

एक मुद्दा है, समान आचार संहित का जिसके लिए संविधान में वादा किया गया है, और सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार संसद में तत्सम्बन्धी विधेयक लाने के लिए सरकार को सचेत किया है।

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय से पूछताछ पर यह मामला सरकार ने विधि आयोग को अभिमत के लिए सौंप रखा है। दूसरा मुद्दा है आरक्षण का। संविधान में पिछड़ा और अनुसूचित जाति जनजाति के लिए जो आरक्षण व्यवस्था है, उसके कारण देश के अनेक भागों में आरक्षण के लिए जातीय या सामुदायिक आधार पर आरक्षण के लिए हिंसात्मक आंदोलन हो रहे हैं।

इस प्रकार के आंदोलन से देश की आंतरिक अशांति को दिन-प्रतिदिन बढ़ावा मिल रहा है। उसे शांत करने के लिए किन्हीं जातियों समुदायों या वर्गों को आरक्षण देने के लिए जितने भी विधेयक विभिन्न राज्यों द्वारा पारित किए गए हैं उन सभी को लगातार न्यायालय संविधान सम्मत न होने के कारण खारिज करता रहा है।

नवीनतम उदाहरण गुजरात में अनसूचित जातियों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के कानून को उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किया जाता है। राजस्थान के गूजर हरियाणा के जाट, कर्नाटका, महाराष्ट्र, आंध प्रदेश के मुस्लिम आरक्षण के विधेयकों का यही हश्र पहले हो चुका है।

इस संदर्भ में चर्चा करने के पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जी.एस.टी के लिए संविधान संशोधन विधेयक मात्र पहला कदम है और जो संकेत मिल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस मोदी सरकार को असफल साबित करने के अपने अवरोध से हटने के बजाय प्रकारान्तर से ही सही डटे रहना चाहती है।

राज्य सभा में वित्त मंत्री से यह आश्वासन मानना कि जी.एस.टी. के लिए जो विधेयक आयेगा वह धन विधेयक न होकर वित्त विधेयक होगा इसी बात का संकेत है।

राज्य सभा में संविधान संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को यह मांग उठाकर वित्त मंत्री को जवाब देने के लिए विवश करने का प्रयास किया गया, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की अहम भूमिका रही है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक में सिर्फ इतना अंतर है कि पहले में राज्य सभा की भूमिका नगण्य होगी उसे जैसा लोकसभा द्वारा स्वीकृत किया गया है, वैसा ही स्वीकृत माना जायेगा। जबकि विधेयक को राज्य सभा द्वारा पारित करने से इंकार करने का अधिकार है।

कोई विधेयक धन विरोधी है या नहीं इस पर निर्णय का अधिकार लोकसभा के अध्यक्ष को होता है। राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यद्यपि स्वयं पी. चिदम्बरम ने कई धन विधेयक पेश किए हैं तथापि इस समय की राज्य सभा में भाजपा के अल्पमत में होने का लाभ उठाकर मोदी सरकार को घेरने के लिए एक बार फिर से सभी विपक्षी दलों को कांग्रेस लामबंद करना चाहती है, जो उसके नेतृत्व की प्रगल्भता के कारण सोनिया गांधी के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल के सांसदों की राष्ट्रपति भवन तक की गई पद यात्रा को निरर्थक साबित करने वाला साबित हुआ।

जहां कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने की पहल में हुई चूक को नये रणनीतिकार चिदंबरम को बुद्धि कौशल पर भरोसा है वहीं वित्त मंत्री अरूण जेटली को भविष्य का विधेयक तैयार करने के लिए सभी राज्यों के वित्त मंत्री को वस्तु एवं सेवाकर परिषद जो उनकी अध्यक्षता में गठित होगी, और विधेयक तैयार करेगी उसके निष्कर्ष पर भरोसा है।

जहां एक बात स्पष्ट है कि दो वर्ष तक संविधान संशोधन के लिए राज्यसभा की बाधा को सुलझाने के लिए सरकार को जितने पापड़ बेलने पड़े हैं उससे बचने के लिए वह इस संशोधन को लागू करने वाले विधेयक को धन विधेयक के रूप में ही लाना चाहेगी वहीं कांग्रेस ने वित्त विधेयक के स्वरूप के लिए दबाव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।

ऐसे में परिषद की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी जिसमें सभी राज्यों के मंत्री होने और प्राय: सभी राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व भी।

यदि वित्त मंत्रियों की परिषद ने संविधान संशोधन के लिए विधेयक का प्रारूप तैयार करने के समान ही सबके हितों का ध्यान रखकर आचरण किया तो सरकार के लिए कोई कठिनाई नहीं होगी लेकिन हर वर्ष होने वाले चुनावों में हानि लाभ का आंकलन कर यदि व्यवहार किया गया तो शायद एक अप्रैल, 2017 से विधेयक को लागू कर पाना संभव नहीं हो पाएगा।

मैं यहां वस्तु एवं सेवाकर लागू होने से होने वाले लाभ हानि के ब्यौरे में नहीं जाना चाहता क्योंकि उसकी बड़े विस्तार से मीडिया में चर्चा हो चुकी है और यह स्थापित हो चुका है कि असंतुलित विकास को संतुलित कर अगड़े और पिछड़े राज्यों के बीच का भेद मिटाने की दिशा में यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम होगा, वहीं कराधन की सरलता से ‘भारत में बनाओ’ अभियान में विदेशी मुद्रा निवेश की अबाध आवक से रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

संविधान संशोधन विधेयक के समान ही सरकार के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है। संविधान के प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार समान नागरिक संहित कानून बनाने की। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नागरिक को समान अधिकार होते हैं और समान कर्तव्य निर्वहन की अपेक्षा।

भारत एकमात्र ऐसा लोकतांत्रिक देश है, जिसने समानता के सिद्धांत को आप्त करने के बावजूद नागरिक में भेद को मान्यता दी है। यह मान्यता एक तो बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का भेद खड़ा करके किया गया है और दूसरे पिछड़ेपन के लिए जाति की पहचान बनाकर।

जैसे सभी नागरिकों को एकमत देने का अधिकार है, उसमें बहुसंख्यक का अल्पसंख्यक का संज्ञान निहित नहीं है वैसे ही जो भी गरीब है, वही पिछड़ा है और गरीबी जातिगत न होकर व्यक्ति या परिवार के आधार पर आंका जाना चाहिए जिसका अनुपालन हम गरीबी की रेखा के नीचे या ऊपर जीवन निर्वाह करने वालों के रूप में करते हैं लेकिन जब गरीब और पिछड़ी को समानान्तर लाने की बात होती है तो वह जाति या वर्ग गत आंकलन के आधार पर अंजाम पाती है।

सबका साथ और सबके विकास में यह दोनों भी बहुत बड़ी बाधा है। जैसे कराधन की संपूर्ण देश में समान प्रक्रिया आर्थिक विकास के लिए जरूरी समझी गई वैसे ही समान नागरिक संहिता और पिछड़ेपन की पहचान को आर्थिक आधार प्रदान करने की भी नितांत आवश्यकता है।

दोनों ही मुद्दों पर निहित स्वार्थों के कारण या वोट बैंक बनाने या बनाए रखने की नीयत से जो आचरण हो रहा है, उससे व्यामोह से बाहर निकलने के लिए मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस व्यामोह से निकलने के लिए व्यापक जागृति अभियान की आवश्यकता होगी जिसमें मीडिया का रोल उसी प्रकार सकारात्मक होना चाहिए जैसे जी.एस.टी. के बारे में है।

वस्तुओं और सेवाकर के मार्ग की अभी एक बाधा दूर हुई है। अनेक बाधाएं अभी प्रगट होने बाकी है। सबसे बड़ी बाधा होगी धन या वित्त विधेयक के रूप में लाने की। संविधान में दोनों प्रकार के लिए प्रावधान है।

राज्य सभा में सत्तारूढ़ पक्ष के अल्पमत में होने और उसके द्वारा लिए जाने वाले निर्णय को चुनावी लाभ के लिए चुनाव के समय तक टलवाते रहने के लिए धन या वित्त का जो विवाद है खड़ा किया जा रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है।

औचित्य है क्या उससे संपूर्ण देश का सम्यक विकास होगा या नहीं। यदि सम्यक विकास का प्रावधान है तो फिर वह धन विधेयक या वित्त विधेयक के रूप में आये या न आये का विवाद उठाना बेमानी है। मीडिया इस संदर्भ में सहमति के लिए जन जागृति हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

: राजनाथ सिंह ‘सूर्य’