आरक्षण के मुद्दे को लेकर अचानक एक नाम सामने आता है और देखते ही देखते वह मीडिया में छा जाता है, जब तक मीडिया उसकी समूची जानकारी जुटाने में लगता है, तब तक एक आन्दोलन का महाविस्फोट होता है और यह शख्स कुछ ही मिनटों में उन सभी का हीरो बन जाता है, जो एक वर्ग विशेष के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे होते हैं।
आज हम सभी जानते हैं कि वह गुजरात के एक पाटीदार समाज से है और उसका पूरा नाम हार्दिक पटेल है। लेकिन उसे लेकर जिस तरह का पुलिसवालों को मारने की सलाह वाला विवादास्पद वीडियो वायरल हुआ है, उसको देख व सुनकर देश में लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हार्दिक कौन-सी राजनीति करना चाह रहे हैं।
यदि यह वीडियो झूठा है तो उसकी जांच होनी चाहिए और सच्चा है तो जरूर रातोंरात आरक्षण को लेकर पटेल समुदाय में हीरो बने हार्दिक पटेल से पूछा जाना चाहिए कि जिस गुजरात की पहचान आज महात्मा गांधी और सरदार पटेल के कारण दुनिया में है तथा जिन्होंने ताउम्र अहिंसक आंदोलन पर जोर दिया, क्या उनके राज्य में अब आरक्षण आंदोलन के नाम पर पुलिसवालों का खून बहाया जाएगा।
वैसे भी लगता तो यही है कि जैसे अभी तक देश में उभरे राजनीतिक आंदोलनों का हश्र हुआ है, वही हाल आरक्षण के मुद्दे को लेकर चलाए जा रहे हार्दिक के इस आंदोलन का होगा।
ऐसा कहने के पीछे वाजिब तर्क यह है कि जेपी आंदोलन से जुड़े तत्कालीन समय के युवा नेताओं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर या समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हों अथवा असम में बना संगठन असम गण परिषद, जिसने बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत की सीमा में घुसने से रोकने के लिए अपने आंदोलन की शुरुआत की थी और प्रफुल्ल कुमार महन्त जैसा नेतृत्व इस पार्टी ने असम राज्य को दिया था और वे असम के मुख्यमंत्री भी रहे।
ऐसे तमाम नेता और अन्य लोग जो समय-समय पर देशभर में उठ खड़े हुए संगठन एवं आंदोलन के बूते हीरो बने हैं, आखिर उनका हुआ क्या? गहराई से पड़ताल की जाए तो ये सभी नेता मौका देखकर सत्ता का सुख भोगने और अपनी कुर्सी को बनाए रखने के लिए अपनी विचारधारा से भी समझौते करते देखे गए हैं।
जिस समता, समानता और बन्धुत्व की आस में जयप्रकाश नारायण ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ बिगुल फूंका था, इन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि वे समानता आज तक क्यों नहीं आ सकी, जबकि वे उन्हीं जेपी आंदोलन की उपज हैं और स्वयं को जयप्रकाश जी के विचार का अनुगामी मानते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार इस मामले में देश के दो बड़े राज्य आज हमारे सामने मौजूद हैं। यहां बार-बार सत्ता परिवर्तन हुआ मुलायम से लेकर उनके पुत्र अखिलेश यहां मुख्यमंत्री हैं लेकिन समूचे उत्तर प्रदेश में समता कहीं नजर नहीं आती।
देश में जातिगत स्तर पर जितने ज्यादा आपसी फसाद और धर्म आधारित जितने भी दंगे होते हैं, उनमें यूपी नंबर एक पर रहता है। यही हाल बिहार का है, लालू यादव से लेकर उनकी अर्धान्गिनी राबड़ी देवी यहां मुख्यमंत्री रही हैं, स्वयं लालू केंद्र में भी कई दफे मंत्री रहे, ऐसे ही नीतीश कुमार बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जो अपनी विवादास्पद एकतरफा कार्य प्रणाली के लिए जाने जाते हैं।
हार्दिक पटेल के बहाने ही सही प्रश्न यहां यह है कि आखिर ये सभी लोग अवसर मिलने के बाद बल्कि यूं कहना चाहिए कि बार-बार सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद आवश्यक समाज सुधार या समाज परिवर्तन क्यों नहीं कर पाए? निश्चित ही सभी का इसे लेकर उत्तर यही होगा कि ये अपने मूल सिद्धांतों से भटक गए या सत्ता सुख में इतने ज्यादा तल्लीन हो गए कि इन्हें यह सुध ही नहीं रहा कि आखिर वे कौन से उद्देश्यों को लेकर चले थे।
वस्तुत: गुजरात के जरिए समुचे देश में आरक्षण को लेकर आंदोलन खड़ा करने वाले हार्दिक पटेल के मामले में भी यही लगता है कि उन्होंने जो पटेल नवनिर्माण सेना के माध्यम से अपनी पैठ शासन-प्रशासन में बनाना शुरू की है, उसके दूरगामी परिणाम बहुत अच्छे नहीं आने वाले हैं।
हार्दिक के रूप में उभरे युवा नेतृत्व से भले ही पटेलों को लगे कि उन्होंने अपने लिए भविष्य का नेता खोज लिया है, किंतु यह नेता कितना कारगर सिद्ध होगा, इस पर अभी तक कोई विचार नहीं किया गया है। अब जब पुलिसवालों को मारने संबंधी वीडियो वायरल हुआ है तो जरूर एक बार इस नेता के बारे में गंभीरता से सोचना तो बनता ही है।
इसे लेकर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल इस वीडियो को फर्जी बताते हुए कह रहे हैं कि आंदोलन को गलत दिशा में धकेलने के लिए बदनाम किया जा रहा है। हार्दिक ने इसमें खुद की आवाज नहीं होने की बात कहते हुए बचाव किया है। लेकिन जांच होने पर सच सामने आ ही जाएगा। वैसे भी अक्सर देखा यही गया है कि जब किसी नेता की पोल खुल जाती है या ऐसी कूट रचना की जाती है तो वह कहता यही है कि यह सच मेरा नहीं है। हार्दिक भी ऐसा कह रहे हैं तो कोई अचरज भी किसी को नहीं है।
यहां यही कहा जा सकता है कि आरक्षण को लेकर जो बात वह कह रहे हैं, आखिर उसका अनुपालन तो भारतीय संविधान के दायरे में रहकर ही होगा। जब भारतीय संविधान में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की गई है तो भला कोई राज्य अपने यहां संविधान को मजाक बनाते हुए आरक्षण सीमा का उल्लंघन कैसे कर सकता है? अत: अंत में हार्दिक पटेल और उसके द्वारा चलाए जा रहे आरक्षण प्राप्ति के आंदोलन को लेकर यही कहा जा सकता है कि इस उभरते युवा नेता का भी हश्र वही होगा, जो मुलायम, नीतीश, लालू और प्रफुल्ल कुमार का हुआ है।
नेता बनते ही ऐसा होगा कि हार्दिक को भी अपने संविधान की गरिमा का ख्याल आ जाएगा। गुजरात में यदि विकास के साथ दैन्यता की स्थिति है वह यथावत बनी रहेगी और ये महाशय होंगे भविष्य में गुजरात के कद्दावर नेता। यह सच गुजरात सहित समुचा देश जितनी जल्दी जान ले, उतना ही अच्छा है।
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्य क्षेत्र प्रमुख एवं केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की एजवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं)