नई दिल्ली। भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाने वाली हरियाली तीज का काफी महत्व है।
ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन जो सुहागन महिलाएं शिव और पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा और मन से कामना करती हैं, उनका सुहाग लंबे समय तक बना रहता है।
जानकारी हो कि यह व्रत शिव-गौरी की आराधना का दिन है। तीज के दिन गौरी और शिव सुखद व सफल दांपत्य जीवन को परिभाषित करते हैं अतः इनकी पूजा इसी अभिलाषा से की जाती है कि वे पूजन तथा व्रत करने वाली को भी यही वरदान दें। यह त्योहार वैसे तो तीन दिन मनाया जाता है लेकिन समय की कमी की वजह से लोग इसे एक ही दिन मनाते हैं।
हरियाली तीज पर झूलों का विशेष महत्व है। बिना झूले तीज का त्यौहार अधूरा ही माना जाता है। आज के युग में पेड़ों की संख्या कम होने के कारण सामाजिक परिवेश की वजह से किशोरी और युवतियों ने घरों में ही झूला डालना शुरू कर दिया। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे।
अंततः मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस दिन वृक्षों, फसलों, नदियों तथा पशु-पक्षियों को पूजा जाता है, उनकी आराधना की जाती है ताकि समृद्धि के ये सूचक हम पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।
देश में कई स्थानों पर कुंवारी युवतियां भी इस दिन अच्छे वर की कामना से व्रत रखती हैं। यह दिन स्त्रियों के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। हरी-भरी वसुंधरा के ऊपर इठलाते इंद्रधनुषी चुनरियों के रंग एक अलग ही छटा बिखेर देते हैं।
स्त्रियां पारंपरिक तरीकों से श्रृंगार करती हैं तथा मां पार्वती से यह कामना करती हैं कि उनकी जिंदगी में ये रंग हमेशा बिखरे रहें। विवाहित स्त्रियां इस दिन खासतौर पर मायके आती हैं और यहां से उन्हें ढेर सारे उपहार दिए जाते हैं, जिसे तीज का शगुन कहा जाता है। इसी तरह जिस युवती का विवाह तय हो गया होता उसे उसके ससुराल से ये शगुन भेजा जाता है।