अखंड सुहाग की कामना का पर्व तीज चार सितंबर को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला उपवास रख कर पति के सौभाग्य और दीर्घायु की कामना के लिए भगवान शंकर और मां पार्वती की पूजा करती हैं।
सुहागिनें हरितालिका व्रत की कथा का श्रवण करेंगी और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करेंगी। शनिवार को नहाय खाय के दिन निरामिष भोजन ग्रहण कर रविवार को महिलाएं व्रत रखेंगी।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीय तिथि को यह व्रत किया जाता है। व्रत में भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति मिट्टी से बनाकर पूजा की जाती है। लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं। पति की सलामती और तरक्की के लिए पत्नियां भी इस व्रत को करती है।
सुहागिनों के लिए तीज का व्रत बड़े महत्व का होता है। वे पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत करती है। ऐसी मान्यता है कि जो महिला इस व्रत को करेंगी उसके पति की आयु लंबी होगी।
तीज के त्योहार को लेकर सुहागिन महिलाएं कई दिनों से तैयारियों में जुटी हैं। नई-नई साड़ियां, चूड़ियों और श्रृंगार के सामानें की खरीदारी में व्यवस्त है। बाजारों में तीज को लेकर विशेष चहल-पहल दिख रही है। तीज को लेकर बाजारों में भी खूब रौनक दिख रही है।
महिलाएं तीन के दिन मंदिरों में हरितालिका तीज व्रत कथा सुनकर शहद, अगरबत्ती , जल, बेलपत्र, अक्षत, हल्दी, चंदन, रोड़ी व गोटे फल इत्यादि से पूजा अर्चना करेंगी।
महिलाओं ने अपने पति के नाम की मेंहदी हाथों में रचाकर उनके सुख और समृ़िद्व के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती से आशीर्वाद मांगेंगी।
यह व्रत कुंवारी लड़कियां भी करती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत को पार्वती जी ने शादी से पहले किया था।
इस बार सुखद संयोग
ज्योतिषाचार्य पंडित रामदेव पांडेय ने बताया कि इस बार तीज का पर्व काफी सुखद संयोग लेकर आया है। तृतीया तिथि 4 तारीख को सुबह 5 बजे से लग जाएगी इसलिए व्रत रखने वाली महिलाएं और लड़कियां इससे पहले ही सरगी कर लें।
पूजा का मुहूर्त
उन्होंने कहा कि पूजा का सही मुहूर्त शाम 6 बजकर 04 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट तक है। इस दौरान की गई पूजा बहुत सारी खुशियां और लाभ जातक को पहुंचाएगा।
तीज की कथा
तीज को लेकर मान्यता है कि मां पार्वती ने जंगल में जाकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक बिना पानी पिए लगातार तप किया था जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रुप में स्वीकारा था।
तपस्या और निष्ठा के साथ स्त्रियां यह व्रत रखती है क्योंकि यह बड़ा कठिन है, क्योंकि यह व्रत बिना पानी के रखा जाता है। इस व्रत का खास तौर पर उत्तर भारत में विशेष मान है। कहते हैं इस व्रत को करने से सात जन्मों तक महिलाओं को उनके पति सात जन्मों तक मिलते हैं।