चंडीगढ। होली महोत्सव पर यूं तो पूरा देश रंगों में रंगा जाता है, लेकिन हरियाणा के पलवल और होडल के बीच एक गांव ऐसा भी है, जहां होली खेलने का अंदाज कुछ अलग है।
बंचारी गांव की इस होली को हरियाणा का ब्रज कहा जाता है, जहां ब्रज की तरह होली खेली जाती है। 24 गांव के लोग एक साथ होली खेलने के लिए जुटते हैं। उत्सव यहीं नहीं रुकता रात में भी गांव में अलग-अलग जगह चौपाल लगती है, जहां भजन और चोपाई गाई जाती है।
इसके साथ-साथ दाऊजी के मंदिर में पूजा अर्चना के बाद मेला लगता है। इस गांव के रहने वाले रंजीत बताते हैं कि गांव में होली से पहले गौत्र की चौबीसी में होली खेलने आने के लिए चिट्ठी भेजी जाती है।
होली के दिन अलग-अलग गांव के लोग यहां जुटते हैं। जब ये लोग गांव की अलग-अलग गलियों से अंदर आते हैं तो नगाड़ों के साथ इनका स्वागत किया जाता है। महिलाएं गीत गाकर नृत्य करती हैं।
रंजीत बताते हैं कि गांव के चौंक पर बड़ी-बड़ी पिचकारियां और रंगों से भरी टोकनी लेकर लोग चौंक पर इकट्ठा हो जाते हैं। दो धड़े आमने-सामने होते हैं।
होली खेलने से पहले एक व्यक्ति रस्सी लेकर बीच में खड़ा हो जाता है, जिसके रस्सी छोड़ने पर ही दोनों धड़ों में होली की मस्ती शुरू होती है। जैसे ही रस्सी छोड़ी जाती है, लंबी-लंबी पिचकारियों से छोड़ी जाने वाली रंगों की धार आसमान को सतरंगी बना देती है।
शाम होते-होते गांव की अलग-अलग चौपालों पर मंच सज जाते हैं। इन मंचों पर रात भर गाने वालों की टोलियां गीत सुनाती हैं। भारी संख्या में लोग जुटते हैं। इससे पहले दाऊजी के मंदिर पर पूजा अर्चना के बाद मेला भी लगता है।
होली के इसी रंग के कारण इस गांव को हरियाणा का ब्रज कहा जाता है। देश ही नहीं विदेशों से भी लोग यहां की होली के रंग को देखने के लिए पहुंचते हैं।