आगरा। शिक्षकों को छात्रों के साथ पुत्रवत प्रेम करना चाहिए ताकि उसके अन्दर संस्कार व आत्मीयता का भाव उत्पन्न हो सके। जब आत्मीयता होगी तो शिक्षक की समाज में जो उपेक्षा हो रही है उसको दूर किया जा सकता है।
आज राष्ट्रीयता का पाठ शिक्षकों को छात्रों को पढ़ाने की आवश्यकता है। ताकि उनका गांव, प्रदेश व देश के प्रति छात्र अपनी जिम्मेदारी महसूस करें।
आगरा काॅलेज के ग्राउन्ड में विश्वविद्यालय व महाविद्यालय शिक्षक सम्मेलन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए सरसंघचालक भागवत ने कहा कि संघ किसी भी समस्या को लेकर आन्दोलन नहीं करता वह स्वयंसेवक निर्माण का कार्य करता है। जो कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचार के साथ आगे बढ़कर समस्याओं का समाधान करता है।
शिक्षा नीति में बदलाव के शिक्षकों के सवाल पर उन्होंने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन के लिये पहल उनको करनी होगी। सरकार में उनके विचार के लोग हो सकते हैं। संघ केवल सुझाव दे सकता है। समाज में अलग अलग विषयों को लेकर अनुशासन संगठन कार्य कर रहे हैं।
वे अपनी अपनी समस्यायें सरकार को बताते हैं। किसी भी समस्या के समाधान के लिये स्वयं आगे आना होगा। आज समाज का व्यक्ति अपने व अपने परिवार तक सीमित रह गया है। लेकिन यह प्रवृति गलत है। आज सभी को समाज व राष्ट्र के प्रति चिंतन करने की आवश्यकता है। जब समाज बदलेगा तभी व्यवस्था परिवर्तन होगी।
जातिवाद को लेकर उन्होंने ने कहा कि जाति से पहले हम एक हिन्दू हैं। और भारत हमारी मां। इस विचार के साथ हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को भी संस्कारित करना चाहिए। माता पिता के बाद शिक्षक पर ही एक छात्र का भविष्य निर्भर होता है।
छात्र कक्षा में आते नहीं शिक्षकों के सवाल पर कहा कि पहले कक्षाएं छात्रों ने नहीं शिक्षकों ने छोड़ी शिक्षकों पर छात्रों को संस्कारित स्वाभिलम्बी व जागरूक बनाने की जिम्मेदारी है। शिक्षक देश का भविष्य तैयार करते हैं। शिक्षक सम्मेलन में ढाई हजार शिक्षक शिक्षिकाओं ने भाग लिया।