धर्मशाला। हिमाचल विधानसभा सत्र से निलंबित भाजपा सदस्यों सुरेश भारद्वाज, राजीव बिंदल और रणधीर शर्मा को गुरुवार को सुरक्षाकर्मियों ने विधानसभा परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया।
इस बात की खबर जैसे ही विपक्षी सदस्यों को लगी तो पूरा विपक्ष उनके समर्थन में विधानसभा परिसर के मुख्य द्वार पर पंहुच गया और गेट को जबरन खुलवाकर तीनों विधायकों को परिसर के भीतर ले आए।
इससे सुरक्षाकर्मियों में कुछ देर के लिए खलबली मच गई तथा पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी इस सुरक्षा चूक के लिए एक-दूसरे से उलझते नजर आए। परिसर में पंहुचने के बाद विपक्षी सदस्यों के साथ तीनों विधायक भी विधानसभा के अंदर जाने वाले मुख्य गेट तक पंहुच गए जहां नेता विपक्ष और अन्य सदस्यों ने निलंबित सदस्यों को विधानसभा परिसर में रोके जाने का कड़ा विरोध किया।
विपक्ष के दूसरे सदस्यों के सदन में जाने के बाद तीनों निलंबित सदस्य मुख्य प्रवेश द्वार पर ही धरने पर बैठ गए। हालांकि कुछ देर के बाद विपक्ष के वॉकआउट के साथ ही तीनों विधायक भी नेता विपक्ष के साथ वहां से उठकर विपक्ष लॉज में चले गए।
नेता विपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि भाजपा ने अपने विधायकों को गलत तरीके से निलंबित करने के निर्णय को वापस लेने की मांग की लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने उनकी बात नहीं मानी जिसके चलते विपक्ष को वॉकआउट के लिए मजबूर होना पड़ा।
उन्होंने एक बार फिर विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव में काम करने का आरोप लगाया। नेता प्रतिपक्ष धूमल ने कहा कि विधायकों को जब भी निलंबित किया जाता है तो उन्हें सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने से लेकर हस्ताक्षर करने की अनुमति नहीं दी जाती है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्हें विधानसभा परिसर में प्रवेश नहीं दिया जाता है।
विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल ने सदन में कहा कि जब यह घटनाक्रम हुआ तो मैं खुद सदन में अपने आसान पर पहुंच रहा था। विधानसभा उपाध्यक्ष सदन में ही मौजूद थे। ऐसे में बिना अनुमति के विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर आना सही नही है।
उन्होंने कहा कि भाजपा सदस्य सुरेश भारद्वाज का कृत्य नियमों के प्रतिकूल है और सदन व अध्यक्ष पद की घोर अवमानना है। उन्होंने कहा कि इसके लिए की गई कार्रवाई नियमानुसार उचित है।
वहीं, सत्र से निलंबित भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज ने कहा कि मैंने सदन में नियमों का पालन किया है। अध्यक्ष, विधानसभा उपाध्यक्ष और आशा कुमारी सदन में मौजूद नहीं थी। ऐसे में सदन की कार्यवाही को चलाना मेरा कर्तव्य बनता है।
उन्होंने कहा कि अध्यक्ष ने 15 मिनट के लिए सदन को स्थगित किया था, लेकिन तय समय तक उनके न आने के बाद अपने कर्तव्य निर्वाहन के लिए ही मैं आसन पर गया था। ऐसे ही एक मामले में 1979 में हिमाचल हाईकोर्ट से मुहर लग चुकी है।