Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
भैया दूज पर बहनों का शाप भी बन जाता है आशीर्वाद - Sabguru News
Home Breaking भैया दूज पर बहनों का शाप भी बन जाता है आशीर्वाद

भैया दूज पर बहनों का शाप भी बन जाता है आशीर्वाद

0
भैया दूज पर बहनों का शाप भी बन जाता है आशीर्वाद

सबगुरु न्यूज। क्या किसी का शाप आशीर्वाद बन सकता है? क्या बद्दुआ भी दुआ में तब्दील हो सकती है? यह सवाल जिससे भी पूछा जाएगा, उसका एक ही जवाब होगा कि प्रश्नकर्ता के दिमाग के नट-बोल्ट शायद ढीले हो गए हैं। वह अपना मानसिक संतुलन खो उठा है।

असंभव कभी संभव नहीं हो सकता लेकिन यह सच है। यह अपने आप में बहुत बड़ा चमत्कार है। भारत में एक बहुत बड़े भू-भाग में बहनें एक खास दिन अपने भाई को शाप देती हैं फिर भी वह उसके लिए आशीर्वाद बन जाता है। उसके अमंगल की कामना करती हैं जिससे उसका सभी दिशाओं में मंगल होता है।

शाप क्रोध होकर और नाराज होकर दिया जाता है। अमंगल कामना भी उसकी की जाती है जिससे विशेष नफरत हो लेकिन बहनें तो अपने भाई पर जान छिड़कती हैं। उसके लिए तो वह अपनी जान देने तक को सन्नद्ध रहती हैं। ऐसे में वह उसके अमंगल की कामना कर भी कैसे सकती है? लेकिन यह सच है। प्रेम करने वाला शाप भी दे तो उसकी अंतरात्मा से आशीर्वाद ही निकलता है।

यम द्वितीया जिसे भैया दूज के नाम से जाना जाता है। उस दिन बहनें अपने भाई को शाप भी देती हैं और उसके अमंगल की कामना भी करती हैं। इस विश्वास के साथ कि यमराज के दूत आज चाहकर भी उसके भाई का बाल बांका नहीं कर सकेंगे क्योंकि भैया दूज के दिन ही यमराज अपनी बहन यमी यानी यमुना से मिलने मथुरा गए थे।

भाई से न मिलने से यमुना बहुत दुखी थीं लेकिन यमलोक के काम इतने अधिक थे कि यमराज अपनी बहन यमी के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। यमुना जल स्वरूप में धरतीवासियों की सेवा कर रही थीं। अपने मौजूदा स्वरूप में उनका यमलोक जाकर अपने भाई से मिलना संभव नहीं था।

सूर्य नारायण और संध्या की संतान हैं यमराज तथा यमुना। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। अपने मूल स्वरूप में वह उनसे जब भी मिलतीं तब यही निवेदन करतीं कि इष्ट मित्रों सहित वे घर आकर भोजन करें। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे लेकिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को यमी ने जिद पकड़ ली। उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण दिया और उनसे अपने घर आने का वचन लिया।

यमराज ने सोचा कि मुझ प्राणहंता को कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सदभावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले सभी जीवों को मुक्त कर दिया।

भाई को अपने समक्ष पाकर यमुना बेहद खुश हुई। उन्होंने अपने भाई की खूब आव-भगत की। यम ने प्रसन्न होकर अपनी बहन यमी को वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है।

यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर-सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह ली। इसी दिन से भाई पूज पर्व मनाने की शुरुआत हुई। ऐसी मान्यता है कि जो बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

बहनें भैया दूज के दिन पीढियों पर चावल के घोल से चैक बनाती हैं। इस चैक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं। तब से आज तक हर साल यम द्वितीया के दिन भाई बहन यमुना में एक साथ स्नान करते हैं। इससे उन्हें यमलोक के त्रास नहीं झेलने होते। यमराज के वरदान के प्रभाव से वे सीधे स्वर्ग जाते हैं।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व पर हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य और लंबी आयु की कामना करती है। भाईदूज भाई-बहनों की स्नेहाभिव्यक्ति का त्योहार है। यम द्वितीया यानी भाई दूज को बहनें अपने भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाती हैं।

उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि रखती हैं और मंत्र बोलते हुए धीरे-धीरे उसके हाथों पर पानी की धारा छोड़ती हैं। जो मंत्र वे बोलती हैं वे मंत्र आशीर्वाद भी लगते हैं और अभिशाप भी। वे कहती हैं कि ‘ गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े।

इसमें तो आशीर्वाद का भाव झलकता है लेकिन अगला मंत्र किसी भी पढ़े-लिखे आदमी को बरबस ही सोचने को बाध्य कर देता है। ‘सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे। अभी काटे। लगता ही नहीं कि यह अपने भाई को बेइंतिहा प्यार करने वाली बहन है लेकिन इसके पीछे बहनों का दृढ़ विश्वास है कि यमराज का अपनी बहन यमी को दिया गया वचन मिथ्या हो ही नहीं सकता।

यमराज मृत्यु के देवता हैं। इस तरह के शब्द बहनें इसलिए भी कहती हैं कि उन्हें भाई-बहन के प्यार पर अगाध विश्वास है। ऐसी लोक मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो भी यमराज के दूत भाई दूज का व्रत करने वाली किसी बहन के भाई के प्राण यमलोक नहीं ले जाएंगे। वे अपने स्वामी का वचन भंग किसी भी सूरत में नहीं करेंगे। बहनों को इस बात की पूर्ण प्रतीति होती है कि आज यमदूत चाहकर भी उसके भाई का बाल बांका नहीं कर सकते।

कहीं-कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर उसकी हथेली पर कलावा बांधती हैं। माखन मिश्री खिलाकर उसका मुंह मीठा कराती हैं। शाम के समय बहनें यमराज के नाम से चर्तुख दीप जलाती हैं और उसे घर से बाहर रखती हैं।

इस समय आसमान में चील का उड़ना देखना अति शुभ माना जाता हैं। चील दिखने का मतलब यह निकाला जाता है कि यमराज ने भाई की मंगल कामना की बहनों की प्रार्थना कुबूल कर ली है अथवा यह चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगी।

आज भी परम्परागत तौर पर भाई बहन के घर जाकर उनके हाथों से बनाया भोजन करते हैं ताकि उनकी आयु बढ़े और यमलोक नहीं जाना पड़े। भाई भी अपने प्रेम व स्नेह को प्रकट करते हुए बहन को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें वस्त्र, आभूषण आदि उपहार देते हैं।

उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन ‘गोधन’ नामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है। भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम को दृढ़ता प्रदान करता है। गोधन को गोवर्धन पूजा से जोड़कर भी देखा जाता है। इस रोज भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर धारण किया था और इंद्र की जल प्रलय से गोकुल की रक्षा की थी। इंद्र की पूजा बंद कर गोवर्धन पूजा शुरू कराई थी।

ब्रजमंडल क्षेत्र में तो गोवर्धन पूजा और परिक्रमा होती ही है, उसी तरह देश के विभिन्न भूभाग में दीपावली के दूसरे दिन प्रतीकात्मक रूप से गोधन पूजा होती है। उसका उद्देश्य देश में गोधन का विकास करना भी है।

भैया दूज का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा-यमुना में स्नान मुमकिन न हो तो भाई को बहन के घर स्नान करना चाहिए।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है। उसके सारे कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनों को अपने भाइयों को चावल जरूर खिलाना चाहिए। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।

पूर्वांचल और बिहार के एक बड़े भूभाग में इस दिन गोधन कूटने की भी परंपरा है। गोबर की मानव मूर्ति बना कर उसकी छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। दोपहर तक यह सब करके बहन-भाई पूजा विधान से इस पर्व को प्रसन्नता से मनाते हैं।

इस दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है। इसके अलावा कायस्थ समाज इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा करता है। ़िचत्रगुप्त यमराज के मंत्री हैं।

यमलोक पहुंचने वाले जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा चित्रगुप्त ही यमराज के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बही-खातों की पूजा भी करते हैं।

भारत एक उत्सवधर्मी देश है। यहां के लोग उत्सव में ही जीना पसंद करते हैं। भाई और बहन का प्रेम अलौकिक है और इसे प्रतिष्ठा देने के लिए देश में दो पर्व हैं। दो माह हैं। एक माह है श्रावण और दूसरा माह है कार्तिक। दोनों महीनों का शुक्ल पक्ष ही भाई-बहन के प्रेम का साक्षी बनता है। रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें भाई बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पड़ने वाले ‘भाई दूज’ को बहनें भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं।

भाई-बहन से बड़ा और पवित्र प्रेम इस धरती पर दूसरा नहीं है। ‘भाई दूज’ इस बात का संदेश देता है कि हम नारी समाज को सम्मान की नजर से देखें।नारी का सम्मान जहां है, संस्कृति का उत्थान वहां है। भारत के पर्व-त्योहार देश को अधुनातन संदेश देते रहे हैं। संबंधों को मजबूत बनाए रखने का काम करते रहे हैं। हम पर्व-त्योहारों का महत्व समझ लें तो संबंधों में आ रही गिरावट को सहज ही रोका जा सकता है।

सियाराम पांडेय ‘शांत’