परमात्मा ने तुझे पूरी छूट दी थी कि तू खुलकर अपने जीवन को जी भरकर जी। जिसे तू मिट्टी का ढेर समझता था अब वही मिट्टी तेरे हाथों में है। इस मिट्टी से तू देव या दानव कुछ भी बना लेकिन याद रखना तू यहा चयनकर्ता है अतः तेरे चयन के अनुसार ही तुझे फल की प्राप्ति होगी।क्योंकि तेरे जीवन का कर्मो से नाता है ओर तू खुद अपना ही भाग्य विधाता है।
अहंकार के नगाड़ों जैसे तेरे स्वर तेरी शान में मनगढ़ंत काढे गए कशीदे और तुझे महिमामंडित करते हुए तेरे सर्वत्र बैठे हुए बहुरूपिये। इन सभी को मजदूरी देते हुए दलाल। काल बेला लगा तार तेरे साथ इन सब के पेड की डालिया को अब धीरे-धीरे काटती जा रही है।
हे मुसाफ़िर, अब तू जाग सके तो जाग क्योंकि अब तेरे जाने का समय आ गया है। पूर्व जन्म के कारण मानव की देही मिली है। तेरे जीवन की यात्रा के आखिरी पडाव पर है लेकिन अब भी कोई बड़ा बदलाव तेरे कर्मो मे आएगा ऐसी कोई झलक दिखाई नहीं दे रही है।
एक बार देवराज इंद्र के स्वर्ग पर, समस्या आ गई थी कि अब इन्द्र के स्थान पर किसे राज गद्दी पर बैठाया जाए। देवराज की शासन नीति के कारण उसे ब्रह्म हत्या का दोष लगा। पृथ्वी लोक से नुहुष नाम के एक आदर्श शासक को इन्द्र के स्थान पर बैठाया।
राज सता में आते ही व्यक्ति की आन्तरिक नीति में बदलाव के कारण व्यक्ति भोग विलासी बन जाता है। इन्द्र लोक की सता मिलते ही नुहुष भोग विलासी बन गया। उसकी दमन वाली नीति से स्वर्ग में महिला वर्ग असुरक्षित हो गया। धर्म का मूल्य बदल गया और साधु संत भी परेशान हो गए।
नुहुष ने देवराज इंद्र की पत्नी को अपनी पत्नि बनाने के लिए आज्ञा जारी की लेकिन साधु-संत व ऋषि के कारण नुहुष भी श्रापित हो गया तथा स्वर्ग से गिर गया।
छल कपट धोखा ये सब व्यक्ति के व्यक्तित्व को गिरा देते हैं। जिस डाली पर बैठा है उस को परमात्मा समय से पहले ही तोड़ देता है।
सौजन्य : भंवरलाल