हे नाथ, मैं जल की भिक्षा लेकर आया हूं, आप इसे स्वीकार करें। हे स्वामी, मैं कुएं व कुएं ओर बावड़ी के पास नहीं गया ओर हां खारा ओर मीठा दोनों की जांच करके मैं जल की भिक्षा लेकर आया हूं। आप ने कहा था कि लाना तो कमण्डल भर के लाना तो हे प्रभु मैने वैसा ही किया है। मेरी भिक्षा को आप स्वीकार करें। हे नाथ जल बिन जीवन नहीं है।
चेले को अपने सामने देख, गुरु महाराज कहते हैं कि वह कमण्डल कहां हैं जिसमे तुम जल लेकर आए हो।
हे गुरूदेव शरीर रूपी देह मैं आत्मा बैठी है जो शरीर को जिन्दा बनाए रखती है यदि ये शरीर से निकल जाए तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। तो हे नाथ मैं शरीर रूपी कमण्डल में मेरे दिल में बसे प्रेम रूपी जल को को भरकर लाया हूं जिसमें स्वच्छ और निर्मल विचार है। स्वच्छ और निर्मल विचार रूपी प्रेम से भरे इस जल को आप स्वीकार करे।
चेले की बात सुनकर गुरूदेव प्रसन्न हो जाते हैं और उसे कहते है कि बेटा निश्चित ही तुम सत्य के नजदीक हो। जल रूपी भिक्षा जो तुम लेकर आए हो यह मुझे स्वीकार है।
हे चेले, प्रेम रूपी जल ही व्यक्ति को अभिमान का शिकार नहीं होने देता है क्योंकि उसमें शुद्ध और निर्मल विचार होते हैं जो लोभ व अंहकार से परे होते हैं और वाणी की वाचालता बड़े से बड़े साम्राज्य को डुबो देती है क्योंकि उस वाणी मे छल कपट लोभ भरा होता है जो मात्र अपने को बेदाग साबित करने के लिए हद ओर बेहद दोनों की सीमा से पार हो नीचे गिर जाता है।
एक गुरू ने कहा कि जब मेरी मृत्यु होगी तब आकाश से बैंड बाजे की ध्वनि सुनाई देगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो सब चेलो मे उदासी छा गई। एक होशियार चेला था उसने कहा ठहरों मैं देखता हूं। वो चेला गुरूजी की लाश के पास सो गया ओर ऊपर की तरफ देखने लगा। थोड़ी देर बाद वो तुरंत उठा ओर लाश जिस पेड के नीचे थी उस पेड पर चढ़ा। वो बैर का वृक्ष था। लाश के उपर एक पका हुआ मीठा बैर था चेले ने तुरंत ही उसे तोड कर फोड दिया ओर एक दम आकाश से बैड बाजे की आवाज आने लगी तथा गुरू का वचन सत्य हुआ। उस चेले ने सभी को समझाया कि अंत समय मे गुरूजी का मोह बैर में आ गया था ओर उनकी आत्मा कीड़ा बन बैर खा रही थी इस कारण मैने बैर को फोड दिया ओर गुरूजी का मोक्ष हो गया।
सौजन्य : भंवरलाल