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कुआ पर ऐकली रे कान्हा थारी गाया ने - Sabguru News
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कुआ पर ऐकली रे कान्हा थारी गाया ने

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कुआ पर ऐकली रे कान्हा थारी गाया ने

वो प्रेम मे इतनी भाव विभोर हो गई थी कि अपने आप को रोक नहीं पा रही थी। उसकी निगाहें रास्ते पर बड़ी बैचेनी के साथ उसका इन्तजार कर रही थीं।

वो उसके मीठे ख्यालों में इतनी डूब गई थी और सोचने लगी कि वो आज उसके साथ क्या क्या बातें करेंगी। इतने मे वो उसके सामने से निकल गया और उसे मालूम नहीं पड़ा।

अचानक उसे होश आया ओर उसने देखा कि वो आगे निकल चुका है तो वो जोर जोर से गाकर उसे बुलाने लगी। अरे कान्हा आज तू गाये चराने मत जा, अरे सुन आज मे अपने खेत के कुएं पर अकेली हूं।

तेरी गायों को वापस घुमा कर मेरे खेत पर ले आ। आज हम दोनों खूब बाते करेंगे। अरे रोज तो मेरी सखियां साथ रहती हैं और तू मुझे छेडता है तो मुझे बहुत लाज आती है।

आज तुम मुझे मुरली की धुन सुनाओगे ओर मै मदमस्त हो कर मेरे कन्हाई के सामने नाचुंगी। अरे कान्हा तुम्हारे बिना हमसे रहा नहीं जाता।

प्रेम रस की पराकाष्ठा परमात्मा से मिलन करा देती है। जैसे ध्यान योगी अपने शरीर के ऊर्जा चक्रो को खोलता हुआ वह सहत्राधार चक्र में परमात्मा से संयोग कर अति आनंदित हो जाता है और वैसे ही भक्ति रस में रमा भक्त सर्वत्र परमात्मा के ही दर्शन करता है।

तीनों ही मार्ग प्रेम, योग व भक्ति में प्रेमी, योगी ओर भक्त इतना रम जाता है कि वह अपने आप को भूल जाता है और वो हद तथा बेहद से भी आगे निकल जाता है जैसे एक फकीर हद और बेहद दोनों को तप लेता है तब वो फकीर कहलाता है।

गोपियों को श्री कृष्ण के वियोग में जान उद्धव जी उन्हें ज्ञान वैराग्य का उपदेश देते हैं लेकिन गोपियां उनकी एक बात भी नहीं मानती है तथा उनसे कहती है कि हे उद्धव जी कृष्ण तो हमारे रोम रोम मे बसा है, वृन्दावन की कुंज गलियों मे बसा है।

कान्हा तो हमारे नयनों में बसा है आप कोई दूसरे कृष्ण के बारे में बता रहे हो क्या। वो तो हमसे दूर ही नहीं गया। गोपियों की इस प्रेमा भक्ति मे ही परमात्मा रूपी कृष्ण उन्हे सर्वत्र नज़र आते है ।यही प्रेम की पराकाष्ठा है जैसे भाव ओर भक्ति की पराकाष्ठा में करमा बाई ने भगवान् श्रीकृष्ण को बाजरे का खिचडा खिला दिया।

मंदिर के पुजारी जब तीर्थ यात्रा पर गए तो करमा बाई को समझा गए की कृष्ण को रोज मंदिर में भोजन कराना तथा बाद में आप भोजन करना।

करमा ने बाजरे का खींचडा बना ओर कृष्ण की मूर्ति के सामने रख दिया ओर बोली अरे कान्हा खा ले, इसमे बहत मक्खन मिलाया है।लेकिन कृष्ण मूर्ति ने भोजन नहीं किया।

करमा बार बार उसे समझा रही है कि देख वो तेरा पुजारी अब महीने बाद आएगा। इसलिए चुपचाप खा ले ओर फालतू की जिद मत पकड नहीं तो भूख से तेरे गाल सूख जाएंगे। फिर भी मूर्ति नहीं खाती है। तब वह क्या सोचती है।

लगता है ये बच्चा शर्मिला है तब वह अपने घाघरे का पर्दा लगा कर कहती है अब तेरे पर्दा लगा दिया है तथा मैंने भी मुख मोड लिया है, अब तो खा ले।

करमा के यह भाव देख कृष्ण मुस्करा गए ओर पर्दे की आड मे सारा खिचडा खा गए। ऐसे करमा जाटनी ने रिझाया भगवान् को। सच्चे भाव व प्रेम से अपने ही हो जाते हैं भगवान्।