सबगुरु न्यूज। बरसाती नदियां बरसात में जब खतरनाक तरीके से बहती है तो वे एक खूबसूरत मायाजाल का निर्माण करती हैं तथा कुछ समय के लिए ऐसा अहसास करा देती हैं कि मानों वे करोडों लोगों की तस्वीर बदल देंगी। बरसाती नदियों का यह ऊफान देख व्यक्ति अति आनंदित हो जाता है और भावी सपनों के महल में प्रवेश कर जाता है, वहां तरह तरह की संपत्तियों को सजाता रहता है।
थोड़े ही दिनों बाद जब व्यक्ति उन नदियों की तरफ़ देखता है तो उसे दूर दूर तक नदियां ओर खेती बाड़ी नजर नहीं आती है। वहां केवल बालू मिट्टी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है। यह नजारा देख वह हैरान हो जाता है लेकिन अब उसके हाथ में कुछ भी न था। वह बड़ी मायूसी से उस बेरहमी नदियों को कोस रहा था।
व्यक्ति की इस तरह बेलाताप करते देख बरसाती नदियों के किनारे खडी झाड़ियों से आवाज आई कि हे मानव तू हमारा अस्तित्व देख, हम इन नदियों पर आश्रित नहीं है। कारण ये स्वयं भी दूसरों पर आश्रित है। बरसात आने पर ही इनको जाना जाता है।
यह सारी भूमि इस राज्य की धरोहर है और राजा की ओर से उसका सेवक उसका भाग्य निर्धारित कर उन बरसाती नदियों का रूख़ बदल देता हैं। राज्य में गांव व नगर के विकास की एक कहानी के साथ इन बरसाती नदियों को खत्म कर दिया जाता है और राजा का सेवक इसे अपने अनुसार ही काम में लेकर राज्य का नहीं राजा का खजाना भर देता हैं।
राजा का कृपा पात्र बन वह सेवक फिर बरसाती नदियों के किनारे वन और उपवन तथा कृषि भूमि को भी निपटा कर राज्य ओर राजा दोनों के खजाने भर देता हैं और सेवक इन सबमें अप्रत्यक्ष भागीदार बन जाता है।
मानव तू इन बरसाती नदियों से इतना लगाव मत रख क्योंकि ये जब पानी होता है तो उसे बहा देतीं हैं और सूखी होती हैं तो उस जमीन की मिट्टी को भी बिकवा देतीं हैं।
यह प्रकृति का श्रेष्ठ और बेहतरीन विज्ञापन है जो सभ्यता और संस्कृति को अपने किनारे विकसित करने को लालायित करतीं हैं और बाद मे अधिक गर्मी तथा कमजोर मानसून की आड में छिप जाती है। वर्षाऋतु में फिर बढ़ चढ़ कर गरज कर लोगों को रिझाने के लिए सर्वत्र संकट के बादल की दुहाई देती हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, जमीनी हकीकत भी यही होती हैं। व्यक्ति अपने हितों को साधने के लिए अनेक रूप बनाकर उसी अनुरूप व्यवहार कर हर क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए अपनों से ही अपनी पीठ थपथपा कर एक श्रेष्ठ मसीहा बनने का इश्तेहार ज़ारी कर देता है।
अपने फरेबी और मायावी मसीहा रूप को विजयी करवा लेता है। इसलिए हे मानव तू इन फरेबी मसीहाओं के जाल में अपने क्षणिक लाभ के लिए मत फंस अन्यथा तेरा लाभ बरसाती नदियों के पानी की तरह बह जाएगा, जहां तू खडा होगा तेरे पांवों की मिट्टी भी बिक जाएगी।
तीर्थों में स्नान से पाप नहीं धूलते। ये तो आस्था व उपासना वालों के लिए ही वरदान होते हैं। आस्था व श्रद्धा उपासना वालों के मेले लगते रहेंगे और वहां भी फरेबी धर्म बनकर अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास करेंगे। हे मानव तू सत्य के मार्ग की ओर बढ़, तेरा स्नान घर बैठे ही तीर्थ बन जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल