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गीली लकड़ी से उठता हुआ धुआं - Sabguru News
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गीली लकड़ी से उठता हुआ धुआं

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गीली लकड़ी से उठता हुआ धुआं

सबगुरु न्यूज। गीली लकड़ियां जलती कम है और धुआं ज्यादा देती। यह धुआं आग की कहानी बयां करता है कि हकीकत की दुनिया में आग अपना प्रंचड रूप धारण नहीं कर पा रही हैं क्यो कि उसमें इतना दम खम नहीं है कि वह पानी की कहानी को खत्म कर दे, जो लकड़ियों में अपना घर बसाए बैठा है। अपनी कमजोरी का लांछन आग लकड़ी पर लगा कर उसे गीली लकड़ी बता रहीं हैं।

अपनी प्रचंडता को धारण करने के लिए आग एक सहारा ढूंढ़ती है उस सहारे की आड में वह अपना प्रंचड रूप धारण करनें की कोशिश करतीं हैं। इतनें समय में गीली लकड़ी अपना वर्चस्व कायम कर आसमान को धुएं से भर आग की असलियत का बयां कर देतीं हैं।

शमशान में चीता पर लेटा शव आग का इंतजार करता है लेकिन गीली लकड़ियां उसे जलने नहीं देती हैं और वह मुस्कुरा कर कहती हैं हे मृत शरीर इस आग ने तुझे जीते जी हर तरह से जलाया है। कभी बल से कभी छल से तो कभी भूखा रख कर और यहां तक कि तेरा सब कुछ लूट कर तुझे शमशान पहुंचा दिया है अब इस आग में दम नहीं रहा जो तुझे जला दे।

हे मृत शरीर ये तुझे जला नहीं पा रहीं हैं और मुझे बदनाम कर रही हैं कि ये लकड़ियां गीली हैं। अब यह किसी के सहारे जला भी दे तो भी यह आग ही बदनाम होगी। गीली लकड़ियां बोलती है कि अब देख तमाशा इस आग का अब यह मेरे ऊपर शक्कर डलवा रहीं हैं और मेरे ही कुनबे की कुछ घास फूस को लेकर तुझको जलवा रही है। दूसरों की बैसाखी के सहारे ये फिर पंचड रूप धारण कर मेरे सहारे ही तुझको जला रही हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू सकारात्मक सोच से जीवन मे चलता चल नहीं तो नकारात्मक सोच की आग से तू दुनिया को जला देगा और खुद भी जल जाएगा। ईर्ष्या, जलन और दगे की आग का आखिर हश्र यही होता है कि वह गीली लकड़ी को जला नहीं पाएगी और वसीयत में अधजली लकड़ियां ही रह जाएंगी। इसलिए हे मानव तू अपने मन में मलिनता की आग को घर में मत घुसने दे, तू निश्चित रूप से बदले की आग को बुझाने में समर्थ हो जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल