सबगुरु न्यूज। हे सृष्टि के परम अध्यक्ष इस जगत का सत्य क्या है और इसे क्यो रचा गया है, इसका कोई तो कारण होगा। यह भी सत्य है कि इसका जबाब तेरे सिवा और कोई भी नहीं दे सकता है क्योंकि इस जगत में जो भी विद्वान व्यक्ति पैदा हुआ है वह दुनिया बनने के बाद ही हुआ है। विद्वानों ने अपनी आस्था, दर्शन, ध्यान, तर्क, योग और जितने भी तरीकों से तेरे अस्तित्व को प्रमाणित करने का एक श्रेष्ठ प्रयास ही किया है।
आदि ऋषियों ने अपने आप को परमात्मा के ध्यान में रख कर वेद पुराण और कई दर्शन के माध्यम से इस जगत का आधार, उत्पति, पालन और संहार के विषयों में लिखा है। उन्हीं ग्रंथों ने प्रकृति की शक्ति को जगत का आधार माना है। सृष्टि रचने के लिए उसने अपने स्त्री व पुरुष रूप धारण कर जगत को उतपन्न किया।
आगे सृष्टि रचाने के लिए उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न कर सृष्टि निर्माण, पालन व संहार का कार्य करने के लिए अधिकृत किया। यही त्रिदेव जगत का संचालन करते हैं ऐसी मान्यता है। भगवान शंकर सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी का स्तवन कर पूछते हैं कि आप कहां विराजेंगे तब भगवान् शंकर ने ब्रह्माजी का स्तवन किया – – –
कमल के समान नेत्रोवाले देवेश्वर आपको नमस्कार है। आप संसार की उत्पत्ति के कारण है और स्वयं कमल के फूल से प्रकट हुए हैं, आप देवता और असुरो के पूर्वज हैं। संसार की सृष्टि करने वाले परमात्मा हैं। सम्पूर्ण देवताओं के ईश्वर हैं। सबका मोह दूर करने वाले जगदीईश्वर हैं। आप विष्णु की नाभि से प्रकट हुए हैं, कमल के आसन पर आपका आविर्भाव हुआ है। आप मूंगे के समान लाल अंगों तथा कर पल्लवों से शोभायमान है।आपको नमस्कार है।
ब्रह्माजी ने कहा –पुष्कर में मैं देव श्रेष्ठ ब्रह्मा जी के नाम से प्रसिद्ध हूं।
इन्हीं मान्यताओं के आधार पर जगत पिता ब्रह्माजी ने सृष्टि यज्ञ कराया। कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यहां यज्ञ हुआ। इस यज्ञ में देव और दानव सभी को बुलाया गया।
उसके बाद वर्तमान स्वरूप तक तीर्थ गुरु पुष्कर राज में सदा ही आस्था व श्रद्धा का सैलाब उमडता है।
हे दुनिया बनाने वाले आखिर तेरे मन में क्या है और कब तक ऐसा ही होता रहेगा। भले ही आप हमें अपने राज मत बताओ लेकिन हमारी एक प्रार्थना आपको पूरी करनी होगी ताकि हम भी इस जगत में सार्थक बन कुछ कर जाएं।
हे नाथ कृपा कर आने वाली रचना में तू प्रेम भाईचारे का भरपूर रंग भर दे ताकि व्यक्ति सदियों तक विवादों में ना उलझा रहे वरना इस जगत में व्यक्ति का आना ही अनर्थकारी है। यदि हमें रिश्ते दिएं तो उसे निभाने की शक्ति व धैर्य प्रदान कर तथा धन दौलत और वैभव दिया है तो हमें अंहकारी नहीं त्यागी बना। शक्ति दी तो मुझे रक्षक बना भक्षक नहीं। मुझे बुद्धि और विवेक दिया है तो मुझे विध्वंसक मत बना।
यदि मुझे राजा बनाया है तो मुझमें पालने का गुण भी पैदा कर ताकि मैं अपने गरीब और बेसहारे को रोज़ी रोटी के लिए मोहताज न होने दूं। यदि मुझे अमीर बनाया है तो तो मुझे बांटने का गुण दे लूटने का नहीं।
यदि मुझे गरीब बनाया तो मुझे मोहताज मत बना ताकि मैं किसी राजा और अमीर के टुकड़ों पर नहीं पलूं। यदि मुझे सेवक बनाया तो मैं भरपूर सेवा करता रहूं ना कि मैं सेवा कर राज चलाने का अपराधी बनूं। भले ही तेरे पास ऐसा मोडल नहीं है तो तू नया मोडल बना और हमारा ध्यान रख। इस तरह की दुनिया बना भले ही तेरे मन में कोई ओर दुनिया का मोडल हो।
संत जन कहते हैं कि ये मानव तू सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को दिल से प्रणाम कर और प्रेम, त्याग और धैर्य के गुणों को प्राप्त कर, तेरा जीवन सफ़ल हो जाएगा और ये कार्तिक पूर्णिमा देवताओं की दीपावली बन तेरे घर में भी नई रोशनी का दीपदान कर देगी।
सौजन्य : भंवरलाल