सबगुरु न्यूज। समुद्र में उठे तूफान की मृत्यु उस वक्त हो जाती है जब उसका वैग खत्म हो जाता है और वह आक्रमक योद्धा की तरह सर्वत्र बरबादी का तांडव करता हुआ आखिर शक्तिहीन होकर धराशायी हो जाता है।
प्रकृति ने अपना इतना विस्तार बना रखा है कि योद्धा कैसा भी हो ओर कोई भी अस्त्र शस्त्र उसके पास क्यो न हो आखिर समुद्र के उस भंवर में फंसकर सदा सदा के लिए अपनी स्मृति शेष छोड़ जाता हैं।
यह सत्य है कि इस जगत में कितने भी बड़े योद्धा क्यो न आएं, लेकिन वे मृत्यु के सामने सभी धराशायी हो गए चाहें फिर दुनिया की किसी भी चिकित्सा पद्धति का सहारा या आध्यात्मिक विज्ञान के योग, तंत्र, पूजा व उपासना ही क्यो न हो।
आखिर इस मृत्यु के बाद क्या होगा। इस विषय को विज्ञान व ऐसी विचार धारा के दर्शन शास्त्रीयों ने नकार दिया लेकिन आध्यात्मिक विज्ञान ने और कई दर्शन शास्त्रीयों ने स्वीकार लिया।
जमीनी हकीकत में मृत्यु का सदैव पुनर्जन्म ही होगा। सर्वत्र तबाही मचा कर गए तूफान के बाद मानव ओर जीव फिर अपनी सूझ बूझ से क्षेत्रों का पुनः निर्माण करेगा समस्त जीव अपना उजडा आशियाना फिर बसाएगा।
जीवों की मृत्यु हो जाती है, भले ही उसी रूप में उसका पुनर्जन्म नहीं हो, उसका बचा कुनबा कितने भी गहरे सदमें या अवसाद में हो, कितने भी साल का शोक रख ले, प्रकृति शनै शनै उसमें नवीन ऊर्जा का संचार कर उसे अवसाद व सदमे से दूर कर मरने वाले व्यक्ति को जीवित रखने के लिए भले ही श्राद्ध न रखें लेकिन अपने कार्यों को सफलता पूर्वक अंजाम दे उस मृत्यु का पुनर्जन्म करा देतीं हैं और मृत तस्वीरे भी मानो आंखों को नम कर अपने कुनबे की सफलता से मोक्ष पा, वे अति आनंदित हो जाती है और मृत्यु का पुनर्जन्म हो जाता है।
संत जन कहते हैं कि ये मानव प्रकृति ने ऋतु परिवर्तन कर मृत्यु तुल्य कष्टों से बचने के लिए जीवों के रहन सहन खानपान को अपनी ही उपज अन्न व वनस्पति को उनन्त् कर बदला है और हमारे आदि ऋषियों ने मृत्यु के बाद श्राद्ध तथा श्राद्ध के बाद अवसाद को हटाने के लिए नवरात्रा में नई ऊर्जा का संचार कर विकास की ओर बढ़ने के निर्देश देकर अपनी मृत्यु का स्वयं ने पुनर्जन्म करा लिया भले वे सशरीर लौट कर ना आएं। इसलिए हे मानव अपनी शक्ति का सृजन इस काल में कर और आगे बढ़।
सौजन्य : भंवरलाल